विदेशी निवेशकों के भारतीय अर्थव्यवस्था पर लगातार स्थापित हो रहे विश्वास के चलते देश में तेज़ी से बढ़ रहा है विदेशी निवेश
कोरोना वायरस महामारी के चलते भारत सहित पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत रूप से प्रभावित होने के बाद, आर्थिक विकास ही आज भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गया है। इसी क्रम में दिनांक 1 फ़रवरी 2021 को वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए भारतीय संसद में प्रस्तुत किए गए बजट में देश में बुनियादी ढांचे के विकास एवं स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ख़र्च की जाने वाली राशि में भारी बढ़ोतरी की गई है। देश में तेज़ गति से चालित परिवहन व्यवस्था विकसित करने के लिए नए-नए राजमार्गों का निर्माण किया जा रहा है। बड़े-बड़े शहरों में मेट्रो रेल्वे का जाल बिछाया जा रहा है। बंदरगाहों एवं हवाई अड्डों को आधुनिक बनाया जा रहा है। इन सभी क्षेत्रों में भारी मात्रा में निवेश किया जा रहा है। भारत में बुनियादी ढांचे के विकास पर आज जितना निवेश भारत सरकार कर रही है उतना निवेश देश में पहिले कभी नहीं किया गया है। देश में शहरीकरण भी तेज़ गति से हो रहा है। शहरों का न केवल विस्तारीकरण हो रहा है बल्कि नागरिकों को नई तकनीकी के साथ अति-आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध कराए जाने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं। ग्रामीण इलाक़ों एवं शहरों में नया आधारभूत ढांचा खड़ा किया जा रहा है।
भारत ने अपना रक्षा क्षेत्र भी निवेश के खोल दिया है। रक्षा के क्षेत्र में भारत में स्वयं के लिए ही रक्षा उपकरणों की बहुत बड़ी मांग है। भारत का प्रयास है कि रक्षा उपकरणों का उत्पादन भारत में किया जाय ताकि इस क्षेत्र में न केवल देश को आत्म निर्भर बनाया जा सके बल्कि भारत से इन उपकरणों का निर्यात भी किया जाय। देश में ग़रीबों एवं मध्यम वर्ग के लिए करोड़ों की संख्या में घरों का निर्माण किया जा रहा है। यह विश्व में, घरों के निर्माण की अपने आप में शायद सबसे बड़ी परियोजना है।
भारत, आर्थिक विकास की कहानी में अब गुणात्मक एवं परिमाणात्मक दोनों ही स्थितियों में छलांग लगाने को तैयार है। अब भारत ने अपने विकास के लिए एक बड़ा लक्ष्य तय कर लिया है। वर्ष 2024-25 तक देश को 5 ट्रिल्यन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का। जब 2014 में वर्तमान सरकार सत्ता में आई थी, तो देश की अर्थव्यवस्था क़रीब-क़रीब 2 ट्रिल्यन अमेरिकी डॉलर की थी। पिछले पांच साल के दौरान लगभग 1 ट्रिल्यन अमेरिकी डॉलर अर्थव्यवस्था में जोड़ा गया है और अब देश चाहता है की इसे 5 ट्रिल्यन अमेरिकी डॉलर का बनाया जाय। इस बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश के पास योग्यता भी है, साहस भी है और परिस्थितियां भी अनुकूल हैं। भारत के विकास की कहानी में आज चार अहम कारक हैं जो अपने आप में एक दुर्लभ मेल है। यथा, जनतंत्र (डिमॉक्रेसी), जनसांख्यिकी (डिमॉग्रफ़ी), मांग (डिमांड) एवं निर्णायकता (डिसाईसिवनेस)।
देश में आर्थिक वातावरण को सहज एवं सरल बनाने के उद्देश्य से अभी हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा कई निर्णय लिए गए हैं। कुछ मुख्य निर्णयों का वर्णन यहां किया जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही भारत में कारपोरेट कर में भारी कमी की गई है। निवेश के प्रोत्साहन के लिए यह एक बहुत क्रांतिकारी क़दम है और इस फ़ैसले के बाद विश्व व्यापार जगत के सभी धुरंधर भारत के इस फ़ैसले को एक एतिहासिक क़दम मान रहे हैं। इसके अलावा भी भारत सरकार द्वारा देश में व्यापार को आसान बनाने के लिए कई फ़ैसले लिए हैं, जैसे अभी हाल ही में भारी संख्या में ऐसे क़ानूनों को समाप्त कर दिया गया है जो विकास के कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। एक विविध संघीय जनतंत्र होने के बावजूद बीते 5 वर्षों में पूरे भारत के लिए सीमलेस, समिल्लित एवं पारदर्शी व्यवस्थाएं तैयार करने पर बल दिया गया है। जहां पहिले भारत में अप्रत्यक्ष कर ढांचे का एक बहुत बड़ा जाल फैला हुआ था, वहीं अब जीएसटी के रूप में केवल एक ही अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पूरे देश के व्यापार संस्कृति का एक हिस्सा बन चुकी है। देश में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को लागू कर दिया गया है, जिससे फ़ार्मा, ऑटोमोबाइल, टेक्स्टायल, इलेक्ट्रॉनिक्स, आदि क्षेत्रों में विदेशी निवेश की अपार सम्भावनाएं निर्मित हुई हैं। कृषि क्षेत्र एवं श्रमिक क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार कार्यक्रम लागू किए गए हैं। इसी तरह ही दिवालियापन की समस्या से निपटने के लिए इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरपटसी कोड लागू किया गया है, जिससे बैकों को चूककर्ता बकायादारों से निपटने में आसानी हो गई है। कर प्रणाली से जुड़े क़ानूनों और ईक्विटी निवेश पर कर को वैश्विक कर प्रणाली के बराबर लाने के लिए देश में ज़रूरी सुधार निरंतर हो रहे हैं। कर प्रणाली में सुधार के अलावा देश में दुनिया की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशी योजना को भी बहुत कम समय में लागू कर लिया गया है। क़रीब 40 करोड़ लोगों को बीते 5-6 सालों में बैंकों से पहली बार जोड़ा गया है। आज भारत के क़रीब क़रीब हर नागरिक के पास यूनिक आईडी है, मोबाइल फ़ोन है, बैंक अकाउंट है, जिसके कारण लक्षयित सेवाओं को प्रदान करने में तेज़ी आई है। धनराशि का रिसाव बंद हुआ है और पारदर्शिता कई गुना बड़ी है। नए भारत में अविनियमन, डीरेग्युलेशन और व्यापार में परेशनियां ख़त्म करने की मुहिम चलाई गई है। साथ ही, विमानन, बीमा एवं मीडिया जैसे कई क्षेत्र, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए हैं।
इसी प्रकार, आर्थिक सुधारों के लागू करने के कारण ही देश वैश्विक रैंकिंग में आगे बढ़ता जा रहा है। ये रैंकिंग अपने आप नहीं सुधरती है। भारत ने बिलकुल ज़मीनी स्तर पर जाकर व्यवस्थाओं में सुधार किया है। नियमों को आसान बनाया है। उदाहरण के तौर पर यह बताया जा सकता है कि देश में पहिले बिजली कनेक्शन लेने के लिए उद्योगों को कई महीनों का समय लग जाता था। परंतु, अब कुछ दिनों के भीतर बिजली कनेक्शन मिलने लगा है। इसी तरह कम्पनी के रेजिस्ट्रेशन के लिए पहिले कई हफ़्तों का समय लग जाता था। परंतु, अब कुछ ही घंटो में कम्पनी का रेजिस्ट्रेशन हो जाता है। ब्लूम्बर्ग की एक रिपोर्ट में भी भारत में आ रहे बदलाव की तस्वीर पेश की गई है। ब्लूम्बर्ग के नेशन ब्राण्ड 2018 सर्वे में भारत को निवेश के लिहाज़ से पूरे एशिया में पहिला नम्बर दिया गया है। 10 में से 7 संकेतकों - राजनैतिक स्थिरता, मुद्रा स्थिरता, उच्च गुणवत्ता के उत्पाद, भ्रष्टाचार विरोधी माहौल, उत्पादों की कम लागत, सामरिक स्थिति और आईपीआर के प्रति आदर की भावना - इन सभी में भारत नम्बर एक रहा है। बाक़ी संकेतकों में भी भारत की स्थिति काफ़ी ऊपर रही है।
उक्त वर्णित कारणों के चलते आज विदेशी निवेशकों का भारत की अर्थव्यवस्था पर विश्वास बढ़ा है इसलिए भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगातार बढ़ रहा है। यह वर्ष 2016-17 में 4348 करोड़ अमेरिकी डॉलर, 2017-18 में 4486 करोड़ अमेरिकी डॉलर, 2018-19 में 4437 करोड़ अमेरिकी डॉलर, 2019-20 में 4998 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं 2020-21 में अप्रेल से सितम्बर 2020 तक 3000 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है। बीते 5 सालों में भारत में जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है, यह बीते 20 साल में भारत में हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का आधा है। अमेरिका ने भी जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में बीते दशकों में भारत में किया है उसका 50 प्रतिशत सिर्फ़ पिछले चार सालों के दौरान हुआ है। और, ये निवेश तब हुआ है जब पूरी दुनिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का स्तर लगातार कम हो रहा है। भारत में विदेशी निवेश के बढ़ते जाने से विदेशी मुद्रा का भंडार भी नित नई ऊचाईयां छू रहा है। परंतु, भारत में विदेशी मुद्रा के भंडारण का आदर्श स्तर क्या होना चाहिए, इस विषय पर आज विचार किए जाने की आवश्यकता है।
किसी भी देश में विदेशी मुद्रा भंडार का आदर्श स्तर क्या हो इस विषय पर लम्बे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस होती आ रही है। विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर को कई मानकों के साथ जोड़ा जाता है। जैसे, देश में विदेश से आयात की जा रही वस्तुओं एवं अन्य चालू देयताओं के कुछ माह के औसत राशि के बराबर विदेशी मुद्रा का भंडार निर्मित होना चाहिए। दूसरे, विदेशी मुद्रा में लिए गए अल्पकालिक ऋणों एवं परिवर्तनशील बाहरी देयताओं की मात्रा को भी विदेशी मुद्रा भंडार के आदर्श स्तर को बनाए रखते समय ध्यान में रखना चाहिए। तीसरे, विदेशी मुद्रा भंडार के आदर्श स्तर को बनाते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि यह स्तर, अप्रत्याशित एवं चक्रीय झटकों को सहने में सक्षम है, विदेशी मुद्रा में लिए गए पूंजीगत ऋणों की किश्तों एवं उस पर बक़ाया ब्याज की राशि का भुगतान करने में सक्षम है, एवं किसी अपरिहार्य कारण से पूंजीगत निवेश तय सीमा से पहिले वापिस करने की स्थिति को सम्हालने में सक्षम है। उक्त वर्णित कई मानकों को ध्यान में रखने के बाद भी भारतीय रिज़र्व बैंक के लिए यह एक कठिन निर्णय हो जाता है कि विदेशी मुद्रा भंडार का कितना आदर्श स्तर बनाए रखा जाना चाहिए।
भारत में लगातार बढ़ रहे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी दिनांक 21 जनवरी 2021 को 59,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है जो अपने आप में एक रिकार्ड है। अतः अब समय आ गया है कि इस बात पर भी गम्भीरता से विचार किया जाय कि इस विदेशी मुद्रा भंडार का निवेश इस प्रकार किया जाय कि इस निवेश से अधिक से अधिक आय अर्जित की जा सके ताकि इस बढ़ी हुई आय को केंद्र सरकार देश के विकास को और अधिक गति देने हेतु ख़र्च कर सके। दूसरे, देश में विदेशी मुद्रा की लगातार आवक के चलते रुपए की क़ीमत डॉलर की तुलना में मज़बूत होना शुरू हो जाएगी। यह देश के निर्यातकों के हित में नहीं होगा क्योंकि इससे उनके द्वारा निर्यात किए जा रहे उत्पाद विश्व बाज़ार में प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाएंगे। अतः इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में रुपए की क़ीमत को किस प्रकार स्थिर रखा जा सके। तीसरे, अब इस बात पर भी गंभीरता से विचार होना चाहिए कि विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग देश के विकास हेतु देश में ही किस प्रकार किया जा सकता है। इससे कई लाभ होंगे। एक तो, अर्थव्यवस्था में तरलता की स्थिति में सुधार होगा। दूसरे, देश में पूंजी के एक बफ़र के रूप में इस धन को इस्तेमाल किया जा सकेगा, जिससे देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी। तीसरे, तुलनात्मक रूप से भारतीय रिज़र्व बैंक की आय में सुधार होगा, क्योंकि भारतीय रिज़र्व बैंक को इस निवेश पर कम ब्याज दर के स्थान पर अधिक ब्याज की दर मिलनी शुरू होगी। इस विषय पर गम्भीरता एवं विस्तार से चर्चा करने के बाद एवं फ़ायदे एवं नुक़सान का आकलन करने के बाद, इस बारे में एक विस्तृत नीति का निर्माण किए जाने की आज आवश्यकता है।
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