भारत के आर्थिक विकास में भारतीय नागरिकों का है भरपूर योगदान
प्रत्येक वर्ष भारतीय संसद में बजट प्रस्तुत किए जाने के एक दिन पूर्व देश का आर्थिक सर्वेक्षण माननीय वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। देश की आर्थिक स्थिति के सम्बंध में गहराई से अध्ययन करने के उपरांत यह आर्थिक सर्वेक्षण संसद में पेश किया जाता है। दिनांक 31 जनवरी 2023 को भारत की वित्त मंत्री माननीया श्रीमती निर्मला सीतारमन द्वारा वर्ष 2022-23 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया गया। इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में भारत की आर्थिक स्थिति के सम्बंध में कई ऐसी जानकारीयां उभरकर सामने आई हैं, जिनसे भारतीय नागरिकों को संतोष प्राप्त होगा।
कोरोना महामारी एवं रूस यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों ने गम्भीर आर्थिक समस्याओं का सामना किया है। परंतु, यह सुखद तथ्य उभरकर सामने आया है कि भारतीय नागरिकों के सहयोग से भारत ने इन आर्थिक समस्याओं का सामना बहुत सहज तरीके से किया है जिससे इनमें से कई गम्भीर आर्थिक समस्याओं से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत शीघ्रता से उबर सकी है। जबकि अन्य कई देश, विकसित देशों सहित, अभी भी इन समस्याओं से उबरने का गम्भीर प्रयास करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
सबसे पहिले तो कोविड महामारी से संबंधित चुनौतियों के कारण वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में गम्भीर रुकावटें आई। अभी यह रुकावटें दूर भी नहीं हुईं थीं कि रूस-यूक्रेन युद्ध प्रारम्भ हो गया जिसका प्रतिकूल प्रभाव वैश्विक स्तर की आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ा। विशेष रूप से खाद्य पदार्थों (गेहूं, आदि), ईंधन तथा उर्वरक की आपूर्ति में अत्यधिक बाधा उत्पन्न हुई और इसके कारण कई देशों में महंगाई की दर इन देशों के पिछले 40 से 50 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। इसके उपरांत, महंगाई की दर को कम करने के लिए अमेरिका में फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दरों में उच्च स्तरीय वृद्धि करते जाने के कारण अन्य कई देशों की केंद्रीय बैंकों के सामने अपने देश की मुद्रा के अवमूल्यन की समस्या खड़ी हो गई। अमेरिकी डॉलर अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में लगातार मजबूत होता चला गया जिसके परिणामस्वरूप इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आयात मुद्रा स्फीति की दर बढ़ती गई एवं इन देशों का व्यापार चालू खाता घाटा भी लगातार बढ़ता चला गया। कई देशों ने तो इस समस्या के चलते अपने आयात ही कम कर दिए। अन्य देशों की तुलना में भारत ने उक्त वर्णित सभी समस्याओं के प्रभाव को कम करने में बहुत तीव्र गति से सफलता पाई एवं भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर लौट आई। आज भारत विश्व की लगभग समस्त बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पुनः सबसे तेज गति से आर्थिक विकास करती हुई अर्थव्यवस्था बन गया है। बल्कि, वर्ष 2022-23 में ही सकल घरेलू उत्पाद के स्तर के अनुसार भारत विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
भारत में एक विशेषता दिखाई दी है कि देश के नागरिकों ने देश की आर्थिक समस्याओं को हल करने में केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं आर्थिक क्षेत्र के विभिन्न संस्थानों का भरपूर सहयोग किया है। क्योंकि, वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान भारत के आर्थिक विकास का मुख्य आधार निजी खपत और छोटी छोटी बचतों के माध्यम से किया गया पूंजी निर्माण रहा है, जिसने रोजगार के सृजन में मदद की है। साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण भी हुआ है जिससे करों के संग्रहण में जबरदस्त सुधार दिखाई दिया है। कोविड के टीकाकरण में देश के नागरिकों को 220 करोड़ से अधिक खुरांके दी गई ताकि कोविड महामारी से बचाव हो सका एवं उपभोक्ता के मनोभाव को मजबूती मिली। यह सब भारतीय नागरिकों के सहयोग के बिना सम्भव नहीं था।
वित्तीय वर्ष 2022-23 में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमियों (एमएसएमई) द्वारा ऋण के उपयोग में तेज वृद्धि दर्ज की गई है, यह जनवरी-नवम्बर, 2022 के दौरान औसत आधार पर 30.6 प्रतिशत की गति से बढ़ा है और इसे केन्द्र सरकार की आपात ऋण से जुड़ी गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) का भरपूर समर्थन मिला है। इससे सिद्ध होता है कि एमएसएमई क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां तेज हुई हैं एवं उनके द्वारा भुगतान की जाने वाली वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) की धनराशि में भी अत्यधिक वृद्धि परिलक्षित हुई है। कुल मिलाकर बैंक ऋण में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि लगातार बनी हुई है जो उधार लेने वालों के बदलते रुझानों को दर्शाता है एवं अर्थव्यवस्था में केंद्र सरकार के अलावा अब निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है। जैसी कि भरपूर सम्भावना है कि भारत में मुद्रास्फीति की दर वित्त वर्ष 2024 में नियंत्रण में रहेगी इससे उद्योग जगत द्वारा उत्पादित की जा रही वस्तुओं की वास्तविक लागत नहीं बढ़ेगी, अतः वित्त वर्ष 2024 में भी ऋणराशि में तेज वृद्धि के बने रहने की भरपूर सम्भावना है।
केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) भी वित्त वर्ष 2023 के पहले 8 महीनों में 63.4 प्रतिशत तक बढ़ गया है, जो चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का प्रमुख घटक रहा है। वर्ष 2022 के जनवरी-मार्च तिमाही से निजी पूंजीगत व्यय में भी वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। वर्तमान रुझानों के अनुसार ऐसा आभास हो रहा है कि वित्तीय वर्ष 2023 के लिए निर्धारित पूंजीगत व्यय के बजट को हासिल कर लिया जाएगा। केंद्र सरकार एवं निजी क्षेत्र से पूंजीगत व्यय के बढ़ने से वित्तीय वर्ष 2023 में आर्थिक गतिविधियों को गति मिली है और सकल घरेलू उत्पाद में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर की कल्पना की गई है। कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों जैसे गोल्डमेन सेच्स, मूडी, फिच, एशियाई विकास बैंक आदि ने भी वित्तीय वर्ष 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 7 प्रतिशत से आगे बढ़ने के संकेत दिए हैं। एसएंडपी ने तो 7.3 प्रतिशत का अनुमान दिया है।
भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत सम्बंधी आह्वान को भी भारतीय नागरिकों द्वारा बहुत गम्भीरता से लिया गया है एवं चीन से आयात किए जा रहे ऐसे कई उत्पादों (खिलौने, फटाके, रंग, बिजली की झालरें, भगवान की मूर्तियां, आदि), जिनका भारत में ही आसानी से उत्पादन किया जा सकता है, का एक तरह से बहिष्कार ही किया है। केंद्र सरकार ने भी अपने नागरिकों का भरपूर ध्यान रखते हुए ऐसी कई योजनाएं लागू की हैं जिससे विशेष रूप से गरीब वर्ग के नागरिकों की रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सम्बंधी जरूरतें पूरी हो सकें। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार प्रदान किया जा रहा है इससे अप्रत्यक्ष तौर पर ग्रामीण परिवारों को अपनी आय के स्रोतों में बदलाव करने में मदद मिल रही है। प्रधानमंत्री किसान योजना एवं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के माध्यम से देश के गरीब वर्ग के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है और इन योजनाओं के भारतीय नागरिकों पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों की संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने भी प्रशंसा की है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के परिणामों ने भी दिखाया है कि वित्त वर्ष 2016 से वित्त वर्ष 2020 के दौरान ग्रामीण कल्याण संकेतक बेहतर हुए हैं, जिनमें लिंग, प्रजनन दर, परिवार की सुविधाएं और महिला सशक्तिकरण जैसे विषय शामिल हैं।
आर्थिक सर्वेक्षण में आगे आने वाले वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के सम्बंध में आशावादी दृष्टिकोण बताया गया है जो कि कई विभिन्न सकारात्मक तथ्यों पर आधारित है। जैसे, निजी खपत में लगातार मजबूती आ रही है जिससे उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है; केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) लगातार उच्च स्तर पर बना हुआ है; सार्वभौमिक टीकाकरण कवरेज का बहुत बड़े स्तर पर हो रहा है, जिससे संपर्क आधारित सेवाओं – रेस्टोरेंट, होटल, शोपिंगमॉल, सिनेमा, परिवहन, पर्यटन आदि जैसे क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला है; शहरों में विभिन्न निर्माण स्थलों पर प्रवासी श्रमिकों के वापिस लौटने से भवन निर्माण सम्बंधित गतिविधियों में तेजी देखाई दे रही है; कॉरपोरेट जगत के लेखा विवरण पत्रों में मजबूती आई है क्योंकि इस बीच उनकी लाभप्रदता में भरपूर सुधार दिखाई दिया है; पूंजी युक्त सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऋण देने में वृद्धि के लिए तैयार हो गए हैं एवं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमियों के ऋण में तो बढ़ोत्तरी दिखाई भी देने लगी है। साथ ही, आर्थिक विकास से सम्बंधित कई आर्थिक गतिविधियों को लोक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ले जाने तथा केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे ऐतिहासिक उपायों जैसे पीएम गतिशक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से भी देश में आर्थिक गतिविधियों को बल मिलता दिखाई दे रहा है और इससे निर्माण उत्पादन गतिविधियों को भी बढ़ावा मिल रहा है।
कुल मिलाकर, अब भारतीय नागरिकों में देश की आर्थिक गतिविधियों को गति देने के प्रति चेतना जागृत हो रही है। इससे आगे आने वाले समय में भारत में आर्थिक विकास दर को और अधिक तेज करने में निश्चित ही मदद मिलेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर शीघ्र ही पहुंचाया जा सकेगा।
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