भारतीय विकसित देशों की नागरिकता क्यों ले रहे हैं
केंद्र सरकार ने दिनांक 9 दिसम्बर 2022 को भारतीय संसद को सूचित किया कि वर्ष 2011 से 31 अक्टोबर 2022 तक 16 लाख भारतीयों ने अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, की नागरिकता प्राप्त कर ली है। वर्ष 2022 में 225,000 भारतीयों द्वारा अन्य देशों की नागरिकता ली गई है। इसी प्रकार, मोर्गन स्टैन्ली द्वारा वर्ष 2018 में इकोनोमिक टाइम्ज में प्रकाशित एक प्रतिवेदन में बताया है कि वर्ष 2014 से वर्ष 2018 के बीच भारत से डॉलर मिलिनायर की श्रेणी के 23,000 भारतीयों ने अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त की। डॉलर मिलिनायर उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसकी सम्पत्ति 10 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक रहती है। साथ ही, ग्लोबल वेल्थ मायग्रेशन रिव्यू आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में डॉलर मिलिनायर की श्रेणी के 7,000 भारतीयों ने अन्य देशों की नागरिकता प्राप्त की है। उक्त संख्या भारत में डॉलर मिलिनायर की कुल संख्या का 2.1 प्रतिशत है। सबसे अधिक संख्या में चीन से डॉलर मिलिनायर श्रेणी के 16,000 नागरिकों ने अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त की है। इस सूची में चीन के बाद भारत एवं रूस का स्थान आता है। हेनली प्राईवेट वेल्थ मायग्रेशन डेशबोर्ड ने सम्भावना व्यक्त की है कि पूरे विश्व से वर्ष 2022 में सबसे अधिक 4000 डॉलर मिलिनायर ने यूएई की नागरिकता प्राप्त की है। आस्ट्रेलिया में 3500 डॉलर मिलिनायर ने, सिंगापुर में 2800 डॉलर मिलिनायर ने, इजरायल में 2500 डॉलर मिलिनायर ने, स्विट्जरलैंड में 2200 डॉलर मिलिनायर ने एवं अमेरिका में 1500 डॉलर मिलिनायर ने नागरिकता प्राप्त की है। इस प्रकार विश्व के कई देशों से डॉलर मिलिनायर विकसित देशों की नागरिकता ले रहे हैं।
भारतीय किन कारणों के चलते अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं, इस विषय पर विचार करने पर ध्यान में आता है कि इसके पीछे दरअसल कई आर्थिक कारण ही जिम्मेदार हैं। सबसे पहिले तो भारत में लगातार तेजी से हो रहे आर्थिक विकास के चलते कई भारतीय अन्य देशों में अपना व्यवसाय फैला रहे हैं, इस व्यवसाय की देखभाल करने के उद्देश्य से कई भारतीय परिवार अपने कुछ सदस्यों को अन्य देशों विशेष रूप से विकसित देशों में नागरिकता प्रदान करवा रहे हैं। क्योंकि वर्तमान में जारी नियमों के अनुसार कोई भी व्यक्ति केवल एक देश की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। यदि किसी व्यक्ति ने अमेरिकी नागरिकता प्राप्त कर ली है तो उसे भारतीय नागरिकता छोड़नी होगी। दूसरे, विशेष रूप से सूचना प्रौद्योगिकी जैसे तकनीकी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीय नौजवानों को रोजगार के अधिकतम अवसर विकसित देशों में ही उपलब्ध हो रहे हैं, और इन देशों में वेतन भी भारत की तुलना में बहुत अधिक प्राप्त होता है। आज अमेरिका में भारतीय मूल के नागरिक जो उच्च शिक्षा एवं उच्च कौशल वाले क्षेत्रों में कार्यरत हैं उनका औसत वेतन प्रतिवर्ष 125,000 डॉलर से अधिक है जबकि अमेरिका में निवास कर रहे नागरिकों का औसत वेतन प्रतिवर्ष लगभग 70,000 डॉलर के आसपास है। एक तो नौकरियों की अधिक उपलब्धता दूसरे बहुत अधिक वेतन, ये बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं जो उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयों को अन्य देशों में रोजगार प्राप्त करने हेतु आकर्षित कर रहे हैं। तीसरे, कई विकसित देशों ने अन्य देशों के नागरिकों को शीघ्रता से नागरिकता प्रदान करने के उद्देश्य से विशेष निवेश योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत यदि कोई विदेशी नागरिक इन देशों में एक पूर्व निर्धारित राशि का निवेश करता है एवं पूर्व निर्धारित संख्या में रोजगार के नए अवसर उस देश में निर्मित करता है तो उसे उस देश की नागरिकता ‘गोल्डन वीजा रूट’ के अंतर्गत शीघ्रता से प्रदान कर दी जाती है। इसी कारण के चलते भी कई भारतीय इन देशों में अपनी बहुत बड़ी राशि का निवेश कर रहे हैं एवं इस चैनल के माध्यम से इन विकसित देशों की नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं। अब तो इस प्रकार की योजनाएं यूरोपीय देश, पुर्तगाल, माल्टा, ग्रीस, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, सिंगापुर, यूएई, आदि भी लागू कर भारतीयों को अपने अपने देशों में आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों में उन्हें सफलता भी मिल रही है क्योंकि इन देशों में व्यापार करने हेतु बहुत आसान नियम लागू किए गए हैं। इन देशों में बहुत अधिक मात्रा में जमीन उपलब्ध है एवं पर्यावरण की दृष्टि से भी ये देश तुलनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस किए जाते हैं। इन देशों में शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं भी बहुत उच्च मानदंडों के आधार पर उपलब्ध हैं। यह समस्त देश विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं अतः हर प्रकार की सुविधा यहां उचित मात्रा में उपलब्ध है। व्यवसाय को बढ़ाने हेतु उचित वातावरण है, नागरिकों के रहने का स्तर भी बहुत ऊंचा है।
देश में लगातार तेज गति से हो रहे आर्थिक विकास के चलते कई भारतीयों की आर्थिक स्थिति में इतना अधिक सुधार हुआ है कि वे सपरिवार कई विकसित देशों की, पर्यटन की दृष्टि से, यात्रा पर जाने लगे हैं। वर्ष 2019 में 252,71,965 भारतीयों ने अन्य देशों की यात्रा की है, कोरोना महामारी के चलते यह संख्या वर्ष 2020 में 66,25,080 एवं वर्ष 2021 में 77,24,864 पर आकर कम हो गई थी परंतु वर्ष 2022 में (31 अक्टोबर तक) पुनः तेजी से बढ़कर 183,12,602 हो गई है। विकसित देशों की यात्रा के दौरान ये भारतीय वहां रह रहे नागरिकों के रहन सहन के स्तर एवं बहुत आसान जीवन शैली से बहुत अधिक प्रभावित होकर इन देशों की ओर आकर्षित होते हैं। भारत में आने के बाद ये परिवार लगातार यह प्रयास करना शुरू कर देते हैं कि किस प्रकार इनके बच्चों को इन विकसित देशों में रोजगार प्राप्त हों और मौका मिलते ही अर्थात रोजगार प्राप्त होते ही कई भारतीय इन विकसित देशों में बसने की दृष्टि से चले जाते हैं।
दरअसल वैश्वीकरण के इस युग में पूरा विश्व ही एक गांव के रूप में विकसित हो रहा है। समस्त देश एक तरह से आपस में जुड़ से गए हैं। इन विकसित देशों में रह रहे वहां के मूल नागरिकों का भारतीय मूल के नागरिकों पर विश्वास भी बढ़ता जा रहा है, क्योंकि भारतीय मूल के नागरिकों का चाल चलन, जो भारत की महान सनातन संस्कृति का अनुसरण करता हुआ दिखाई देता है, को देखकर भी इन देशों के मूल नागरिक भारतीय मूल के नागरिकों से बहुत प्रभावित हो रहे हैं एवं आसानी से भारतीय मूल के नागरिकों को इन देशों में उच्च पदों पर आसीन कर रहे हैं। एक तो उच्च शिक्षा प्राप्त, दूसरे उच्च कौशल प्राप्त एवं तीसरे भारतीय सनातन संस्कृति का अनुसरण, इन तीनों विशेषताओं के साथ भारतीय मूल के नागरिक विशेष रूप से विकसित देशों में अपना विशेष स्थान बनाने में लगातार कामयाब हो रहे हैं।
आज लगभग समस्त विकसित देश भारतीय मूल के नागरिकों को अपने देशों की नागरिकता प्रदान करने के लिए लालायित नजर आ रहे हैं। यह सब इसलिए सम्भव हो रहा है क्योंकि जो 3.20 करोड़ से अधिक भारतीय मूल के नागरिक आज विश्व के कई देशों में रह रहे हैं, उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा, कौशल, ईमानदारी, मेहनत के बल पर एवं महान भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए इन देशों में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज की है तथा इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को गतिशील बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया है। विशेष रूप से आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका, सिंगापुर, जापान सहित अन्य कई विकसित देश आज इस प्रकार की नई नीतियां बनाने में जुटे हैं कि किस प्रकार इन देशों में रह रहे भारतीय नागरिकों को वहां के राजनैतिक क्षेत्र में भी भागीदार बनाया जाय ताकि इन देशों की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था में सुधार किया जा सके। इन समस्त देशों के मूल नागरिकों में आज महान भारतीय संस्कृति की ओर बढ़ता रुझान भी स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। यह समस्त देश आज भारतीय मूल के अपने नागरिकों को राष्ट्रीय आर्थिक सम्पत्ति मानने लगे हैं, जो इन देशों के आर्थिक विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। भारतीय मूल के अधिक से अधिक नागरिकों के अपने देश में आकर्षित करने के लिए आज इन देशों के बीच एक तरह से आपस में प्रतियोगिता सी चल रही है।
विशेष रूप से वर्ष 2014 के बाद एक बड़ा बदलाव भी देखने में आ रहा है। वह यह कि अब भारतीय मूल के लोग इन देशों में भारत की आवाज बन रहे हैं इससे इन देशों में भारत की छवि में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है। पूर्व के खंडकाल में भारत की पहिचान एक गरीब एवं लाचार देश के रूप में होती थी। परंतु, आज स्थिति एकदम बदल गई है एवं अब भारत को इन देशों में एक सम्पन्न एवं सशक्त राष्ट्र के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय संस्कृति की विचारधारा का प्रवासी भारतीय आज सही तरीके से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
आज अमेरिका, यूरोप एवं अन्य विकसित देश कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं एवं इन समस्याओं का हल निकालने में अपने आप को असमर्थ महसूस कर रहे हैं। दरअसल विकास का जो मॉडल इन देशों ने अपनाया हुआ है, इस मॉडल में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे कई छिद्रों को भर नहीं पाने के कारण इन देशों में कई प्रकार की समस्याएं बद से बदतर होती जा रही है। जैसे नैतिक एवं मानवीय मूल्यों में लगातार ह्रास होते जाना, सुख एवं शांति का अभाव होते जाना, इन देशों में निवास कर रहे लोगों में हिंसा की प्रवृति विकसित होना एवं मानसिक रोगों का फैलना, मुद्रा स्फीति, आय की बढ़ती असमानता, बेरोजगारी, ऋण का बढ़ता बोझ, डेफिसिट फायनान्सिंग, प्राकृतिक संसाधनों का तेजी से क्षरण होना, ऊर्जा का संकट पैदा हो जाना, वनों के क्षेत्र में तेजी से कमी होना, प्रतिवर्ष जंगलों में आग का लगना, भूजल का स्तर तेजी से नीचे की ओर चले जाना, जलवायु एवं वर्षा के स्वरूप में लगातार परिवर्तन होते रहना, आदि। इन सभी समस्याओं के मूल में विकसित देशों द्वारा आर्थिक विकास के लिए अपनाए गए पूंजीवादी मॉडल को माना जा रहा है। भारत चूंकि हिंदू सनातन संस्कृति को मानने वाले लोगों का देश है और इसे राम और कृष्ण का देश भी माना जाता है, इसलिए यहां हिंदू परिवारों में बचपन से ही “वसुधैव कुटुम्बमक”, “सर्वे भवन्तु सुखिन:” एवं “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की भावना जागृत की जाती है। अतः विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों के लिए अब उचित समय आ गया है कि वे आगे बढ़कर महान भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए इन देशों की उक्त वर्णित समस्याओं का हल निकालने में अपना योगदान दें। उक्त प्रकार की समस्यायों का हल निकलने के बाद इन देशों के नागरिकों का भारतीय सनातन संस्कृति की ओर रुझान और अधिक तेजी से बढ़ेगा।
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