भारत में वित्तीय समावेशन से गरीबी में आ रही भारी कमी  

भारत में हाल ही के वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में आई भारी कमी के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं विकसित देशों के कई वित्तीय एवं आर्थिक संस्थानों ने भारत की आर्थिक नीतियों की मुक्त कंठ से सराहना की है। यह सब दरअसल भारत में तेज गति से हुए वित्तीय समावेशन के चलते सम्भव हुआ है। याद करें वर्ष 1947, जब देश ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी, उस समय देश की अधिकतम आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर थी। जबकि, भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है एवं भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। परंतु, पहिले अरब से आक्रांताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने भारत को जमकर लूटा तथा देश के नागरिकों को गरीबी की ओर धकेल दिया। भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत से ‘गरीबी हटाओ’ के नारे तो बहुत लगे परंतु, गरीबी नहीं हटी। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ राजनैतिक दलों ने कई बार सता हासिल की किंतु देश से गरीबी हटाने के गम्भीर प्रयास शायद कभी नहीं हुए और गरीब वर्ग को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा। 


वर्ष 2014 में देश के गरीब वर्ग के बचत खाते खुलवाकर बैकों से जोड़ने का गम्भीर प्रयास प्रारम्भ हुआ एवं      दिनांक 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी  ने ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ की घोषणा की और बिना समय गवाएं 28 अगस्त 2014 से यह योजना पूरे देश में प्रारम्भ कर दी गई। केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय ने देश में अर्थव्यवस्था के क्षेत्र की दशा एवं दिशा बदल दी। इस योजना का दूसरा संस्करण अधिक लाभों को जोड़ते हुए वर्ष 2018 में प्रारम्भ किया गया। इस दूसरे संस्करण में प्रत्येक परिवार के स्थान पर प्रत्येक उस व्यक्ति को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ने की घोषणा की गई थी जो बैंकिंग सुविधाओं से वंचित थे। इस पहल का नतीजा आज हम सभी के सामने है कि देश आर्थिक विकास के रास्ते पर इतना आगे बढ़ चुका है कि पूरी दुनिया भारत को वैश्विक आर्थिक पटल पर एक चमकता हुआ सितारा मान रही है। 

किसी भी देश का आर्थिक विकास उस देश के नागरिकों के वित्तीय सेवाओं से जुड़े होने पर भी निर्भर करता है। जितनी अधिक जनसंख्या वित्तीय सेवाओं से जुड़ी होगी, उस देश की आर्थिक स्थिति उतनी ही मजबूत होगी।  लेकिन, आजादी के बाद से भारत में आबादी का एक बहुत बड़ा भाग और समाज का निम्न आय वर्ग बड़ी संख्या में वित्तीय सेवाओं से वंचित रहा है। जबकि गरीबी को कम करने में वित्तीय समावेशन एक प्रमुख प्रवर्तक माना जाता है। वर्ष 2014 में देश के करोड़ों नागरिकों के पास मोबाइल फोन तो था परंतु उनका बैंक में बचत खाता नहीं था। देश के नागरिक बैंक में जाने से डरते थे। नागरिकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एक ऐसी योजना की आवश्यकता थी जिससे सभी नागरिक इससे होने वाले लाभ अर्जित कर सकें एवं भारत के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें। अतः नागरिकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनधन योजना की शुरुआत की गई थी। इससे हाल के दिनों में सामान्य रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में एवं विशेष रूप से बैंकिंग सेवाओं में बहुत ही तेज गति से प्रगति हुई है। 

प्रधानमंत्री जनधन योजना के माध्यम से आम नागरिकों के बैंकों में बचत खाते खोले गए, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की गई, धन के प्रेषण की सुविधा, बीमा तथा पेंशन सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। इस योजना के अंतर्गत जमाराशि पर ब्याज मिलता है, हालांकि बचत खाते में कोई न्यूनतम राशि रखना आवश्यक नहीं है। एक लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा भी मिलता है। साथ ही, इस योजना के माध्यम से दो लाख रुपए का जीवन बीमा उस लाभार्थी को उसकी मृत्यु पर सामान्य शर्तों पर मिलता है।

भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को सफलता पूर्वक लागू करने के बाद प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना (Direct Benefit Transfer Scheme) को भी लागू किया गया जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग के हितार्थ चलाई जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि को सीधे ही हितग्राहियों के बचत खातों में जमा कर दिया जाता है। इससे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को 100 प्रतिशत लाभ की राशि सीधे ही उनके हाथों में पहुंच जाती है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत, वर्ष 2013 के बाद से 31 मार्च 2022 तक, 24.8 लाख करोड़ रुपए की राशि सीधे ही लाभार्थियों के बचत खातों में जमा की जा चुकी है, इसमें अकेले वित्तीय वर्ष 2021-22 में ही 6.3 लाख करोड़ रुपए की राशि लाभार्थियों के बचत खातों में हस्तांतरित की गई थी। वर्ष 2014 के पूर्व तक जब इन लाभार्थियों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में नहीं खुले थे तब तक कांग्रेस एवं अन्य सरकारों के शासनकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि सामान्यतः नकद राशि के रूप में इन लाभार्थियों को उपलब्ध कराई जाती थी। 

आपको शायद ध्यान होगा कि एक बार देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी ने कहा था कि केंद्र सरकार से विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि के एक रुपए में से केवल 16 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंच पाते हैं। शेष 84 पैसे इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र की जेब में पहुंच जाते है। अब आप स्वयं आंकलन करें कि यदि बैंक में 50 करोड़ लाभार्थियों के बचत खाते नहीं खुले होते और यदि उक्त वर्णित केवल 8 वर्षों के दौरान उपलब्ध कराई गई 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक की सहायता राशि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न लाभार्थियों को नकद राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती तो इन लाभार्थियों के पास केवल 4 लाख करोड़ रुपए की राशि ही पहुंच पाती एवं शेष 21 लाख करोड़ रुपए की राशि इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र के पास ही रह जाती। अब आप आगे एक और कल्पना कर लीजिये कि पिछले 70 वर्षों के दौरान कितनी भारी भरकम राशि इन गरीब हितग्राहियों तक नहीं पहुंच पाई होगी। इस राशि का आकार शायद आपकी कल्पना से भी परे है। सहायता की यह राशि यदि गरीबों तक पहुंच गई होती तो शायद हो सकता है कि देश से अभी तक गरीबी भी दूर हो चुकी होती। अब जब प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत सहायता की राशि हितग्राहियों के खातों में सीधे ही पहुंच रही है तो देश से गरीबी भी तेजी से कम होती दिखाई दे रही है, जिसकी तारीफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुक्त कंठ से हो रही है। 

एक और बात, शायद राजनैतिक दलों ने कभी भी गम्भीरता से यह चाहा ही नहीं कि देश से गरीबी दूर हो क्योंकि यह वर्ग इन राजनैतिक दलों का वोट बैंक जो बना हुआ था। यदि यह वर्ग तरक्की की राह पर चल पड़ता तो इन राजनैतिक दलों को वोट कौन देता और यह दल बहुत पहिले ही सत्ताच्युत हो गए होते। गरीबी हटाओ के केवल नारे ही दिए जाते रहे और गरीबी हटाने के लिए गम्भीर प्रयासों का नितांत अभाव दिखाई देता रहा है। प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपए के बजट गरीबी हटाने के उद्देश्य से बनाए जरूर जाते रहे परंतु वह राशि लाभार्थियों तक पहुंच रही है कि नहीं इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया। 

पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैंकों के माध्यम से इस दृष्टि से बहुत ठोस कार्य किया गया है। न केवल 50 करोड़ से अधिक बचत खाते विभिन्न भारतीय बैंकों में खोले गए हैं बल्कि आज इन बचत खातों में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी जमा हो गई है और बचत की यह भारी भरकम राशि बैंकों द्वारा देश के आर्थिक विकास में उपयोग की जा रही है। इस प्रकार, भारत का गरीब वर्ग भी इन बैंक खातों के माध्यम से देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देता हुआ दिखाई दे रहा है। उक्त 50 करोड़ से अधिक बचत खातों में 50 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए हैं, अर्थात अब भारतीय महिलाएं, ग्रामीण महिलाओं सहित, भी आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं। 

भारी मात्रा में खोले गए इन बचत खातों के माध्यम से गरीब वर्ग के नागरिकों का बैकिंग सम्बंधी इतिहास भी धीरे धीरे विकसित हो रहा है, जिससे इस वर्ग के नागरिकों को बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में आसानी होने लगी है। केंद्र सरकार द्वारा बैकों के माध्यम से लागू की जा रही विभिन्न प्रकार की ऋण योजनाओं का लाभ भी अब गरीब वर्ग को मिलने लगा है। कोरोना महामारी के तुरंत बाद जब देश में स्थितियां सामान्य बनने की ओर अग्रसर हो रहीं थीं तब केंद्र सरकार ने खोमचा वाले, रेहड़ी वाले एवं ठेलों पर अपना सामान बेचकर छोटे छोटे व्यवसाईयों द्वारा अपना व्यापार पुनः प्रारम्भ करने के उद्देश्य से एक विशेष ऋण योजना प्रारम्भ की थी। इस योजना के अंतर्गत उक्त वर्णित छोटे छोटे व्यवसाईयों को बैंक द्वारा आसानी से ऋण प्रदान किया गया था क्योंकि इस वर्ग के नागरिकों के पूर्व में ही बैकों में बचत खाते खुले हुए थे। बैकों द्वारा यह ऋण बगैर किसी व्यक्तिगत गारंटी के प्रदान किया गया था। और, हजारों की संख्या में छोटे छोटे व्यवसाईयों ने निर्धारित समय सीमा में इस ऋण को अदा कर, पुनः बढ़ी हुई राशि के ऋण बैकों से लिए थे और अपने व्यवसाय को तेजी से आगे बढ़ाया था। बैकों में खोले गए बचत खातों से गरीब वर्ग को इस प्रकार के लाभ भी हुए हैं।  

पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत के नागरिकों ने वित्तीय क्षेत्र में कई सकारात्मक बदलाव देखे हैं। केंद्र सरकार द्वारा प्रयास किया गया है कि भारत में सर्वसमावेशी, सर्वांगीण एवं सर्वस्पर्शी  विकास हो। देश में खाद्यान की चिंता दूर हुई है। ग्रामीण इलाकों के प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से लगभग एक करोड़ नए मकान निर्मित किए गए हैं, हर घर नल योजना के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में घरों तक पीने का पानी उपलब्ध कराया गया है एवं मातृशक्ति को कुकिंग गैस उपलब्ध कराई गई है। 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जा रहा है।  प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के अंतर्गत 11.8 करोड़ किसानों को 6,000 रुपए प्रतिवर्ष सम्मान निधि सीधे उनके खातों में जमा की जा रही है। 4 करोड़ किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ मिल रहा है। फसलों की विभिन्न पैदावार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से किसानों की आय को बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं। कुल मिलाकर, पिछले 10 वर्षों के दौरान 25 करोड़ नागरिकों को गरीबी रेखा के ऊपर लाने में सफलता मिली है। इससे अब भारतीय नागरिकों की अपेक्षाएं भी बढ़ गई है।

भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना ने देश के हर गरीब नागरिक को वित्तीय मुख्य धारा से जोड़ा है। समाज के अंतिम छोर पर बैठे गरीबतम व्यक्तियों को भी इस योजना का लाभ मिला है। आजादी के लगभग 70 वर्षों के बाद भी भारत के 50 प्रतिशत नागरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ अर्थात बैकों से नहीं जुड़े थे। प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खाताधारकों को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाओं का लाभ भी भारी मात्रा में नागरिकों ने उठाया है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना से 15.99 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 49 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का जीवन बीमा केवल 436 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना से 33.78 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 48 प्रतिशत महिला लाभार्थी हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा केवल 20 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। अटल पेंशन योजना से 5.20 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं। मुद्रा योजना के अंतर्गत 40.83 करोड़ नागरिकों को ऋण प्रदान किया गया है 

प्रधानमंत्री जनधन योजना अपने प्रारम्भिक समय से ही वित्तीय समावेशन के लिए एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खातों में से लगभग 67 प्रतिशत बचत खाते ग्रामीण एवं अर्धशहरी केंद्रों पर खोले गए हैं, जिसे मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। भारत में बैंकिंग व्यवस्था को आसान बनाने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाने का कार्य भी सफलतापूर्वक किया गया है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खाताधारकों को रूपे डेबिट कार्ड प्रदान किया गया है। यह रूपे कार्ड उपयोगकर्ता द्वारा समस्त एटीएम, पोस टर्मिनल एवं ई-कामर्स वेबसाइट पर लेनदेन करने की दृष्टि से उपयोग किया जा सकता है। वर्ष 2016 में 15.78 करोड़ बचत खाताधारकों को रूपे कार्ड प्रदान किया गया था एवं अप्रेल 2023 तक यह संख्या बचकर 33.5 करोड़ तक पहुंच गई है। 

वित्तीय समावेशन के माध्यम से देश के प्रत्येक परिवार के साथ साथ प्रत्येक नागरिक को इस लायक बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वह देश की आर्थिक प्रगति में अपने योगदान को सार्थक कर सके। परिवार के कुछ सदस्य नहीं बल्कि परिवार के समस्त सदस्य गरीबी रेखा से बाहर आ जाएं। देश का पूरा समाज एवं समस्त प्रदेश ही आर्थिक रूप से विकसित बन जाएं। देश के समस्त समाजों को बगैर किसी भेदभाव के आगे बढ़ाया जा रहा है। वित्तीय समावेशन ने आज देश के आर्थिक परिदृश्य को पूरे तौर पर बदल दिया है। यूपीआई के माध्यम से आज ऑनलाइन पैसे का तुरंत भुगतान सम्भव हो सका है एवं अब पैसे बैंक में जमा किए जाते हैं तो वह भी ब्याज के रूप में आय अर्जित करते हैं। पहिले, यह रकम घर पर पड़ी रहती थी एवं अनुत्पादक आस्ति बनी रहती थी।  

आज वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में, दुनिया के कई देश, भारत को मिसाल के तौर पर देखने लगे हैं कि किस प्रकार 140 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश ने बैंकों से उन नागरिकों को भी जोड़ा है जो अब तक इन सुविधाओं से वंचित थे। जब तक समावेशी विकास नहीं होगा, तब तक देश का आर्थिक विकास भी गति नहीं पकड़ सकता है। पहिले लोग जहां बैंकों में जाने से डरते थे, वहीं अब उन्हें बैंकिंग सुविधाएं बैंक मित्रों के माध्यम से घर बैठे ही पहुंचाई जा रही है। आज नागरिकों को बैंक जाने की आवश्यकता ही नहीं है, ऑनलाइन बैंकिंग व्यवहार आसानी से सम्पन्न किए जा रहें हैं। कुल मिलाकर भारत में बैंकिंग क्षेत्र में अतुलनीय परिवर्तन आया है, जिससे देश में वित्तीय समावेशन भी बहुत आसान बन पड़ा है। 


प्रहलाद सबनानी 

सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,

भारतीय स्टेट बैंक 

के-8, चेतकपुरी कालोनी,

झांसी रोड, लश्कर,

ग्वालियर - 474 009

मोबाइल क्रमांक - 9987949940

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