देश व हिन्दुओं के समक्ष समस्याएं एवं संघ का दृष्टिकोण
अति प्राचीन काल में लगभग पूरे विश्व में हिंदू सनातन संस्कृति का ही बोलबाला था। अन्य किसी धर्म, यदि कोई था भी तो, उसको मानने वाले नागरिक लगभग नहीं के बराबर थे। धीमे धीमे इस धरा पर जब जनसंख्या में वृद्धि हुई तो कुछ अन्य मत पंथ भी स्थापित हुए। इनमें से ईसाई एवं इस्लाम पंथ तेजी से फैले एवं इसके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। ईसाई पंथ को मानने वाले नागरिकों ने प्रलोभन का रास्ता चुनते हुए विभिन्न देशों में नास्तिक अथवा सनातन संस्कृति के अनुयायियों को लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन करवाया और ईसाई पंथ को तेजी से आगे बढ़ाते हुए कई देशों में ईसाई अनुयायियों की संख्या में वृद्धि कर उन देशों को ईसाई देश घोषित कर दिया। इसी प्रकार इस्लाम पंथ के अनुयायियों ने कई देशों में तलवार के दम पर स्थानीय नागरिकों (ईसाई, नास्तिक एवं सनातन संस्कृति को मानने वाले) का बलात धर्म परिवर्तन करवाया और इन देशों को इस्लामी देश घोषित कर दिया। आज पूरे विश्व में लगभग 150 देशों में ईसाई पंथ को मानने वाले नागरिकों का बहुमत है तो लगभग 57 देशों में इस्लाम पंथ को मानने वाले नागरिकों का बहुमत है। हिंदू सनातन संस्कृति के अनुयायियों ने कभी भी न तो लालच के दम पर और ना ही अत्याचार के दम पर पूरे विश्व में किसी भी नागरिक का बलात धर्म परिवर्तन नहीं करवाया है। और तो और, भारत जैसे राष्ट्र में जहां हिंदू सनातन संस्कृति के अनुयायियों की संख्या लगभग 100 करोड़ है और इनका भारत में भारी भरकम बहुमत है, फिर भी भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित नहीं किया गया है एवं भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है जहां हिंदू सनातन संस्कृति के अनुयायियों के साथ अन्य समस्त मत पंथों को मानने वाले नागरिक भी शांतिपूर्वक रहते आए है।
इस धरा पर धीमे धीमे जैसे ही ईसाई एवं इस्लाम पंथ के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी और वर्ष 712 ईसवी में ईरान के खलीफा के प्रतिनिधि मोहम्मद बिन कासिम ने आक्रांताओं के रूप में भारत पर आक्रमण किया तो उनका उद्देश्य भारत को लूटने का था क्योंकि भारत उस समय पर सोने की चिड़िया के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध था और भारत में स्वर्ण के अथाह भंडार उपलब्ध थे। परंतु, 712 ईसवी के पश्चात जब आक्रांता सिंध के रास्ते से भारत में घुसे तो यहां उनके ध्यान में आया कि भारत में छोटे छोटे राज्य हैं एवं यहां के राजाओं में आपस में एकता का नितांत अभाव हैं और यह तो एक दूसरे के दुश्मन बने बैठें हैं। अतः उन्होंने स्वर्ण लूटने के साथ साथ यहां पर अपना राज्य स्थापित करने के बारे में भी सोचना शुरू किया और हिंदू राजाओं के आपसी विद्वेष के चलते इसमें उन्हें सफलता भी मिली। एक हिंदू राजा को दूसरे हिंदू राजा से लड़वाकर आसानी से कुछ हिंदू राजाओं को अरब से आए इन आक्रांताओं ने अपने अधीन कर लिया। जिन राजाओं ने विरोध भी किया तो उनके राज्य में मारकाट मचा कर इन राज्यों के निरीह नागरिकों का बलात धर्म परिवर्तन करवाते हुए उन्हें इस्लाम पंथ का अनुयायी बना दिया। इस प्रकार, इन आक्रांताओं ने भारत में इस्लाम पंथ को फैलाया।
इसी प्रकार, अंग्रेज भी “ईस्ट इंडिया कम्पनी” के माध्यम से भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आए थे। परंतु, उन्हें ध्यान में आया कि भारत के विभिन्न समाजों में समरसता का नितांत अभाव है, इससे उनमें यहां अपना राज्य स्थापित करने की लालसा जगी। उन्होंने भारत की विभिन्न जातियों को आपस में जाति, मत, पंथ, भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर बांटकर आसानी से अपना राज्य स्थापित कर लिया।
दरअसल, मुगलकाल एवं ब्रिटिश शासनकाल के अंतर्गत हिन्दू लोक जीवन विखंडित हो गया था। हिन्दू धर्म के मूल रहस्यों से अनभिज्ञ आक्रांताओं ने न केवल वैयक्तिक अधिकारों का हनन किया अपितु हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथों को भी नष्ट कर दिया। लगभग 1000 वर्षो तक सनातन संस्कृति, विधर्मियों के प्रहार को झेलती हुई, लगभग मृतप्राय बना दी गई थी और भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण के काल का आरम्भ हो चुका था। वर्ष 1920 में देश में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। मुसलमानों का नेतृत्व मुल्ला-मौलवियों के हाथों में था। इस खंडकाल में मुसलमानों ने देश में अनेक दंगे किए। केरल में मोपला मुसलमानों ने विद्रोह किया। उसमें हजारों हिंदू मारे गए। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण के कारण हिंदुओं में अत्यंत असुरक्षिता की भावना फैली थी। हिंदू संगठित हुए बिना मुस्लिम आक्राताओं के सामने टिक नहीं सकेंगे, यह विचार अनेक लोगों ने प्रस्तुत किया। और, इस प्रकार हिंदू हितों के रक्षार्थ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना वर्ष 1925 में विजया दशमी के पावन पर्व पर हुई। शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि ’संघ शक्ति कलौ युगे' अर्थात् कलयुग में संगठन ही सर्वोपरि है। इस वाक्य के अनुरूप ही संघ में संगठन को विशेष महत्व प्रदान किया जाता है। अब आवश्यकता है कि मूल्य परक हिन्दू जीवन पद्धति जिससे न केवल मानव अपितु प्रकृति एवं जीव-जन्तु जगत का भी उत्थान सम्भव है, उसे पुनः प्रतिष्ठित किया जाए। इस प्रकार, संघ के प्रयासों से भारत में विस्मृत राष्ट्रभाव का पुनर्जागरण प्रारम्भ हुआ है।
संघ के संस्थापक परम पूज्य डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी की दृष्टि हिंदू संस्कृति के बारे में बहुत स्पष्ट थी एवं वे इसे भारत में पुनः प्रतिष्ठित कराना चाहते थे। डॉक्टर साहब के अनुसार, “हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान का प्राण है। अतएव हिंदुस्तान का संरक्षण करना हो तो हिंदू संस्कृति का संरक्षण करना हमारा पहला कर्त्तव्य हो जाता है। हिंदुस्तान की हिंदू संस्कृति ही नष्ट होने वाली हो तो, हिंदू समाज का नामोनिशान हिंदुस्तान से मिटने वाला हो, तो फिर शेष जमीन के टुकड़े को हिंदुस्तान या हिंदू राष्ट्र कैसे कहा जा सकता है? क्योंकि राष्ट्र, जमीन के टुकड़े का नाम तो नहीं है …… यह बात एकदम सत्य है।” स्वामी विवेकानंद के इस विचार को - कि हिंदुओं को एक ऐसे कार्य दर्शन की आवश्यकता है जो इतिहास और संस्कृति पर आधारित हो, जो उनके अतीत का हिस्सा हो और जिसके बारे में उन्हें कुछ जानकारी हो - डॉक्टर हेडगेवार ने व्यवहार में बदल दिया। आज संघ की शाखाएं इस महान कार्य को आगे बढ़ाते हुए “स्व” के भाव को परिशुद्ध कर उसे एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं। संघ की शाखाओं में अनोखी पद्धति का अनुपालन करते हुए युवाओं में राष्ट्रीयता का भाव विकसित किया जाता है। शाखा की इस अनोखी पद्धति की सराहना आज पूरे विश्व में ही की जा रही है। वस्तुतः यह कह सकते हैं कि हिंदू राष्ट्र को स्वतंत्र करने व हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना की। आज संघ का केवल एक ही ध्येय है कि भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित किया जाय।
संघ द्वारा स्थापित की गई शाखाओं की कार्यपद्धति पर आज विश्व के अन्य कई देशों में शोध कार्य किए जा रहे हैं कि किस प्रकार संघ द्वारा स्थापित इन शाखाओं से निकला हुआ स्वयंसेवक समाज परिवर्तन में अपनी महती भूमिका निभाने में सफल हो रहा है और पिछले लगातार 100 वर्षों से इस पावन कार्य में संलग्न है। हाल ही में, दिनांक 14 जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक (44 दिन) प्रयागराज में लगातार चले एवं सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए महाकुम्भ के मेले में पूरे विश्व से 66 करोड़ से अधिक हिंदू धर्मावलम्बियों ने पवित्र त्रिवेणी में आस्था की डुबकी लगाई। इतनी भारी संख्या में हिंदू समाज कभी भी किसी महान धार्मिक आयोजन में शामिल नहीं हुआ होगा और संभवत: पूरे विश्व में कभी भी इस तरह का आयोजन सम्पन्न नहीं हुआ होगा। इस महाकुम्भ में समस्त हिंदू समाज एकजुट दिखाई दिया, न किसी की जाति, न किसी का मत, न किसी के पंथ का पता चला। बस केवल सनातनी हिंदू हैं, यही भावना समस्त श्रद्धालुओं में दिखाई दी। इसी का प्रयास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 100 वर्षों से करता आ रहा है।
भारत में झूठे विमर्श गढ़ने का इतिहास रहा है। अंग्रेजों के शासन काल में भी कई प्रकार के झूठे विमर्श गढ़ने के भरपूर प्रयास हुए थे, जैसे - पश्चिम से आया कोई भी विचार वैज्ञानिक एवं आधुनिक है, भारत सपेरों का देश है एवं इसमें अपढ़ गरीब वर्ग ही निवास करता है, भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति रूढ़िवादी एवं अवैज्ञानिक है, शहरीकरण विकास का बड़ा माध्यम है अतः ग्रामीण विकास को दरकिनार करते हुए केवल शहरीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, शहरी, ग्रामीण एवं जनजातीय के बीच में आर्थिक विकास की दृष्टि से शहरी अधिक महत्व के क्षेत्र हैं, विदेशी भाषा को जानने के चलते नागरिकों में आत्मविश्वास बढ़ता है, संस्कृति से अधिक तर्क को महत्व दिया जाना चाहिए, व्यक्ति एवं समश्टि में व्यक्ति को अधिक महत्व देना अर्थात व्यक्तिवाद को बढ़ावा देना चाहिए (पूंजीवाद की अवधारणा), कम श्रम करने वाला व्यक्ति अधिक होशियार माना गया, सनातन हिन्दू संस्कृति पर आधारित प्रत्येक चीज को हेय दृष्टि से देखना, जैसे दिवाली के फटाके पर्यावरण का नुक्सान करते हैं, होली पर्व पर पानी की बर्बादी होती है, आदि। आज एक बार पुनः पश्चिमी देशों द्वारा हिंदू सनातन संस्कृति पर आधारित हिन्दू परम्पराओं पर लगातार प्रहार किए जा रहे हैं और हिंदू सनातन संस्कृति पर हमला करते हुए “माई बॉडी माई चोईस”; “हमको भारत में रहने में डर लगता है”; आदि नरेटिव स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। वाशिंगटन पोस्ट एवं न्यूयॉर्क टाइम्ज लम्बे लम्बे लेख लिखते हैं कि भारत में मुसलमानों पर अन्याय हो रहा है। कोविड महामारी के दौरान भी भारत को बहुत बदनाम करने का प्रयास किया गया था। हैपीनेस इंडेक्स एवं हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति को झूठे तरीके से पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों से भी बदतर हालात में बताया जाता है। आज भारत के विरुद्ध गढ़े जा रहे उक्त झूठे विमर्षों से निपटने में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी विशेष भूमिका निभाता हुआ नजर आ रहा है।
आज भारतीय मूल के लगभग 4 करोड़ नागरिक हिंदू सनातन संस्कृति के संवाहक के रूप में विश्व में विभिन्न देशों के आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं। इन देशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिकों के व्यवहार के चलते इन देशों में कभी अशांति नहीं पनपी है। परंतु दूसरी ओर भारत के पड़ौसी देशों यथा बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुयायियों पर लगातार अत्याचार होते रहे हैं एवं बंगलादेश में हिंदुओं की आबादी 23 प्रतिशत से घटकर आज 8 प्रतिशत से भी नीचे आ गई है। अतः दिनांक 21 से 23 मार्च 2025 के बीच बैंगलोर में सम्पन्न अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में बंगलादेश में हिंदुओं पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों के विरोध में एक प्रस्ताव पास करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि “कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां जान बूझकर भारत के पड़ौसी क्षेत्रों में अविश्वास और टकराव का वातावरण बनाते हुए एक देश को दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर अस्थिरता फैलाने का प्रयास कर रही हैं। प्रतिनिधि सभा, चिन्तनशील वर्गों और अंतरराष्ट्रीय मामलों से जुड़े विशेषज्ञों से अनुरोध करती हैं कि वे भारत विरोधी वातावरण, पाकिस्तान तथा डीप स्टेट की सक्रियता पर दृष्टि रखें और इन्हें उजागर करें। प्रतिनिधि सभा इस तथ्य को रेखांकित करना चाहती है कि इस सारे क्षेत्र की एक सांझी संस्कृति, इतिहास एवं सामाजिक सम्बंध हैं जिसके चलते एक जगह हुई कोई भी उथल पुथल सारे क्षेत्र में अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं। प्रतिनिधि सभा का मानना है कि सभी जागरूक लोग भारत और पड़ौसी देशों की इस सांझी विरासत को दृढ़ता देने की दिशा में प्रयास करें।”
इस प्रकार, पूरे विश्व के विभिन्न देशों में निवास कर रहे भारतीय मूल के नागरिकों के हितों की चिंता भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करता हुआ दिखाई दे रहा है। इसके चलते, आज वैश्विक पटल पर भी संघ का कार्य द्रुत गति पकड़ रहा है। विश्व के अन्य देशों में हिंदू स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। आज विश्व के 53 देशों में 1,604 शाखाएं एवं 60 साप्ताहिक मिलन कार्यरत हैं। पिछले केवल एक वर्ष में ही 19 देशों में 64 संघ शिक्षा वर्ग लगाए गए थे। विश्व के 62 विभिन्न स्थानों पर संस्कार केंद्र भी कार्यरत हैं। जर्मनी से इस वर्ष संघ स्वयसेवकों में से 13 विस्तारक भी निकले हैं।
हाल ही के समय में हिंदू समाज में दिखाई दे रही एकरसता के चलते भारत का रुतबा वैश्विक स्तर पर बढ़ा है, यह परिणाम स्पष्ट तौर पर दिखाई देने लगा है। भारत आज विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है एवं पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। विश्व के शक्तिशाली देशों की सूची में अमेरिका, रूस, जापान, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रान्स जैसे पश्चिमी देशों के साथ अब भारत का नाम भी इस सूची में शामिल हो गया है। अब भारत की शक्ति का आभास वैश्विक स्तर पर भी महसूस किया जाने लगा है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत का विकास स्पर्धा के लिए नहीं है, बल्कि पूरे विश्व में अच्छा वातावरण बनाने तथा शांति स्थापित करने के लिए है क्योंकि भारत वसुधैव कुटुंबकम की भावना में विश्वास रखता हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समस्त हिंदू समाज को एक करने के प्रयास भारत में तो सफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं और इसका स्पष्ट सकारात्मक प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में पूरे देश में दिखाई भी दे रहा है। आर्थिक प्रगति की गति तेज हुई है, समस्त समाज के बीच सामाजिक समरसता का भाव जागृत हो रहा है, देश के नागरिकों विशेष रूप से युवाओं में पर्यावरण के प्रति सजगता बढ़ रही है, एक बार पुनः भारतीय समाज संयुक्त परिवार के प्रति आकर्षित हो रहा है - बल्कि, विश्व के अन्य कई देशों के नागरिकों में भी संयुक्त परिवार के विभिन्न प्रकार के लाभों की ओर ध्यान आकर्षित हो रहा है, स्वदेशी का भाव जागृत हो रहा है और नागरिकों में देश के प्रति अपने कर्तव्यों के भाव का जागरण हो रहा है। कुल मिलाकर आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू सनातन संस्कृति को भारत के जन जन के मानस में प्रवाहित करने का कार्य करने का प्रयास कर रहा है ताकि प्रत्येक भारतीय के मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो एवं उनके लिए भारत प्रथम प्राथमिकता बन सके। यह कार्य संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित होने वाले स्वयसेवकों द्वारा समाज के बीच में जाकर करने का सफल प्रयास किया जा रहा है। और, यह कार्य आज पूरे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता भी बन गया है।
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