ग्रामीण महिलाएँ गढ़ रही हैं देश का भविष्य   


अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस 
विकासशील देशों में लगभग 45 प्रतिशत महिलायें कृषि श्रमिक के रूप में काम करती हैं और कृषि, खाद्य एवं ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी रहती हैं। ग्रामीण महिलाओं की इस महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ ने 15 अक्टोबर 2008 को  अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जाना प्रारम्भ किया था। वर्ष 2008 के बाद से  यह दिवस प्रतिवर्ष 15 अक्टोबर को सभी देशों में मनाया जाता है। भारत में भी राज्य सभा  टीवी चैनल ने 15 अक्टोबर 2019 को एक विशेष पैनल वार्ता का आयोजन किया था। यह लेख भी इसी चर्चा के आधार पर तैयार किया गया है। भारत में भी पिछले कुछ सालों में ग्रामीण महिलाओं की तस्वीर बदलती नज़र आ रही है। कई ऐसी योजनाएँ एवं व्यवस्थाएँ प्रारम्भ की गई हैं जो ग्रामीण महिलाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं और जिनके परिणाम भी काफ़ी सकारात्मक रहे हैं। 


ग्रामीण महिलाओं का बढ़ता दायरा 
देश में स्थानीय सरकार के सम्बंध में जो व्यवस्थाएँ बनाईं गई हैं उसके अंतर्गत देश में जो 31 लाख निर्वाचित प्रतिनिधि हैं उनमें 42 प्रतिशत महिलाएँ, प्रतिनिधि के तौर पर चुनी गई हैं। साथ ही, देश में 6.36 करोड़ महिलाएँ स्वयं सहायता समूहों से एवं दीनदयाल अंत्योदया योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ गईं हैं। स्वयं सहायता समूहों में 8 से 10 महिलाएँ मिलकर एक समूह बनाती हैं, गाँव स्तर पर अपने संगठन का निर्माण करती हैं, क्लस्टर स्तर पर फ़ेडरेशन भी बनाती हैं। गत 5 वर्षों के दौरान, अपनी आजीविका एवं व्यापार विस्तार के लिए इन महिलाओं ने 57 लाख अलग-अलग स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से लगभग 2.18 लाख करोड़ रुपए का ऋण बैंकों से लिया है। इन समूहों की एक सबसे अच्छी बात यह है कि इन स्वयं सहायता समूहों द्वारा बैंकों से लिए गए ऋण में ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ 2 प्रतिशत से थोड़ी ही अधिक हैं, जो आज से 5 वर्ष पूर्व लगभग 7 प्रतिशत थीं। ग्रामीण इलाक़ों में महिलाओं ने 10471 सेवा केंद्र भी स्थापित किए हैं जहाँ महिलाओं के समूह द्वारा पावर टिलर, कृषि उपकरण, मिट्टी की जाँच आदि सम्बंधी कार्य किसानों के लिए किए जाते हैं। ग्रामीण आजीविका के नाम से सुदूर नक्सल प्रभावित इलाक़ों में 760 महिलाएँ ऑटो रिक्शॉ चला रही हैं। साथ ही, सुदूर ग्रामीण इलाक़ों में महिलाएँ ही वित्तीय समावेशन को मूर्त रूप देने में लगी हुई हैं। आज 50 लाख महिला किसान, कृषि के क्षेत्र में, कृषि सखी के रूप में कार्य कर रही हैं। देश के ग्रामीण इलाक़ों में महिलाएँ कृषि सख़ी, पशु सखी, बैंक सखी, आदि के रूप में कार्य कर इन इलाक़ों के विकास में अपनी महती भूमिका निभा रही हैं।


ग्रामीण महिलाओं के लिए योजनाएँ  
महिलाओं, विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं, को सुविधाएँ प्रदान करने के उद्देश्य से देश में कई योजनाएँ प्रारम्भ की गई है। देश में 9 करोड़ के ऊपर शौचालय बनाकर महिलाओं के गौरव को बढ़ाया गया है। बहुत सारी शिक्षा योजनाएँ ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रारम्भ की गई हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के अंतर्गत अच्छा कार्य हो रहा है। बच्चियों को पढ़ाने की ओर अब ध्यान दिया जा रहा है। महिलाओं को प्रदान किए जा रहे शिक्षा ऋण पर ब्याज दर तुलनात्मक रूप से कम है। पोस्ट ऑफ़िस के माध्यम से  सुकन्या समृधि योजना प्रारम्भ की गई है। महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखने हेतु एक बड़ी योजना देश में प्रारम्भ की गई है। मुद्रा योजना प्रारम्भ की गई है, यह देखा गया है कि इस योजना के अंतर्गत प्रदत्त कुल ऋणों का 75 प्रतिशत भाग महिलाओं को प्रदान किया गया है। स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंक महिलाओं तक पहुँचे, यह भी कोशिश की गई है। महिलाओं द्वारा उत्पादित वस्तुओं को बाज़ार तक पहुँचाने हेतु ऑनलाइन महिला ई-हाट की सुविधा प्रारम्भ की गई है, जहाँ महिलाएँ अपने उत्पादों का विक्रय कर सकती हैं। इस साइट पर आज 2000 से अधिक उत्पाद बिक्री हेतु उपलब्ध हैं, 24 से ज़्यादा राज्य इस योजना से जुड़ गए हैं एवं 17 लाख से ज़्यादा आगंतुक इस साइट पर विज़िट कर चुके हैं। स्टेप योजना के अंतर्गत महिलाओं के कौशल को भी विकसित किया जा रहा है। सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, ज़रदारी, आदि का काम महिलाओं को सिखाया जाता है। महिला होस्टल समूह भी बनाए गए हैं। महानगरों एवं शहरों में स्थित इन महिला होस्टल में ग्रामीण कामकाजी महिलाओं को रहने की सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं।


ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण  
राजनैतिक क्षेत्र में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। 14.39 लाख महिलाएँ सशक्तिकरण की ओर अपने क़दम बढ़ा चुकी हैं क्योंकि ये चुनी गई प्रतिनिधि हैं। पूरे विश्व में, समस्त देशों के बीच, महिला प्रतिनिधि के रूप में, यह सबसे बड़ी संख्या है। 18 राज्यों में महिलाओं के लिए लागू 50 प्रतिशत के आरक्षण के आँकड़े को प्राप्त किया जा चुका है। कुछ राज्यों में तो यह संख्या 54 प्रतिशत तक पहुँच गई है। ये ग्रामीण महिलाएँ आज महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों को काफ़ी अच्छे तरीक़े से हल कर रही हैं। पहिले ग्राम सभा की मीटिंग में महिलाएँ आती ही नहीं थीं अब तो उत्साहपूर्वक इन सभाओं में भाग लेती हैं। देश के कई भागों में तो मुख्य ग्राम सभा की मीटिंग के पहिले महिलाओं की सभा अलग से  आयोजित की जाती है ताकि महिलाओं सम्बंधी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा कर इन्हें सुलझाया जा सके। महिलाएँ अब स्थानीय स्तर पर बनने वाली योजनाओं में भागीदारी करती हैं। इस प्रकार उनके निर्णय लेने की क्षमता भी विकसित हो रही है।               




ग्रामीण महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं का सोशल ऑडिट 
देश में स्वयं सहायता समूह की एक लाख से ज़्यादा महिलाओं को सोशल ऑडिट के लिए प्रशिक्षित किया गया हैं। इस प्रकार, हर गाँव स्तर तक सोशल ऑडिट किए जाने की व्यवस्था बनाए जाने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं ताकि यह देखा जाए कि जिस योजना का लाभ जिसे मिलना चाहिए उसे ही वह लाभ मिल रहा है। इस प्रकार, 6.36 करोड़ महिलाओं के क्षमता वर्धन एवं इनके आजीविका मिशन के साथ-साथ सामाजिक अंकेक्षण का काम भी शुरू किया गया है। साथ ही, प्रधान मंत्री ग्रामीण आवास योजना के अंतर्गत यह प्रयास किया जा रहा है कि अधिक से अधिक मकान महिलाओं के नाम पर अथवा महिलाओं के साथ पुरुषों के नाम पर रजिस्टर किए जाएँ, ताकि, सम्पत्ति के अधिकार में भी महिलाओं को बराबरी का हिस्सा मिले। पंचायतों के कार्यों की रैंकिंग भी पब्लिक डोमेन में रखी गई है ताकि पारदर्शिता बढ़े और पंचायतों में आपस में प्रतिस्पर्धा का भाव पैदा हो और कार्यक्षमता बढ़े।  इंटरनेट की सुविधा भी तेज़ी से गाँव स्तर तक पहुँचाई  जा रही है।

हाल ही में देश में प्रारम्भ की गई विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन एवं इन योजनाओं के लाभ सम्बंधित हितग्राहियों तक पहुँच रहे हैं, इसकी मॉनिटरिंग करने के उद्देश्य से हर ग्राम सभा स्तर पर एक विशेष मीटिंग की जाती है। जैसे, उज्जवला योजना के अंतर्गत गैस कनेक्शन, सौभाग्य योजना के अंतर्गत बिजली कनेक्शन एवं एलईडी बल्बों का उपयोग, जनधन योजना के अंतर्गत बैंक अकाउंट, जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा आदि योजनाओं के लाभ महिलाओं तक पहुँचाए जा रहे हैं। उक्त कार्यक्रमों के लाभ वंचित परिवारों तक पहुचाने के लिए  ग्राम स्वराज अभियान कार्यक्रम भी 6500 गावों में चलाया गया।। इस प्रकार की मॉनिटरिंग और गवर्नन्स फ़्रेमवर्क से भी इन योजनाओं के क्रियान्वयन पर फ़र्क़ पड़ रहा है।

देश के ग्रामीण इलाक़ों में क़रीब-क़रीब 8.5 या 9 करोड़ वंचित परिवार हैं, जिनको सहयोग की आवश्यकता है। इनमे से क़रीब-क़रीब 6.36 करोड़ परिवारों तक तो विभिन सुविधाओं का लाभ पहुँचा दिया गया है। आने वाले दो सालों में शेष परिवारों तक भी विभिन्न सुविधाओं का लाभ पहुँचाए जाने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है। दीनदयाल अंत्योदया योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से सभी ग्रामीण महिलाओं को जोड़ने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है। 


ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं का समाधान 
ग्रामीण महिलाओं की अभी भी कुछ समस्याएँ हैं जिन्हें दूर किया जाना अति आवश्यक है। हालाँकि ग्रामीण इलाक़ों में ऋण प्रदान करने में देश की बैकों ने अच्छा काम किया है परंतु फिर भी सबसे ज़्यादा आवश्यकता आज इस बात की है कि ग्रामीण महिलाओं को ऋण उपलब्ध आसानी से कराया जाय ताकि वे अपना व्यवसाय स्वतंत्र रूप से प्रारम्भ कर सकें। महिलाओं के स्वास्थ्य पर, शिक्षा के स्तर में और सुधार पर, उनकी सुरक्षा के ऊपर अभी और ज़्यादा ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। ग्रामीण स्तर पर महिलाएँ पहिले नैनो स्तर पर व्यवसाय की शुरुआत करती हैं, सरकारी सुविधाएँ इस प्रकार दी जानी चाहिए की धीरे धीरे इन महिलाओं का व्यवसाय नैनो से माइक्रो स्तर पर पहुँचे एवं फिर स्मॉल स्तर पर पहुँचे, इनके व्यवसाय को शुरू से ही औपचारिक व्यवसाय में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। ग्रामीण महिलाओं का आपस में नेटवर्क स्थापित होना चाहिए जिससे ये आपस में जुड़ी रहें एवं आपस में चर्चा कर नवोन्मेश को आसानी से अपना सकें। ग्रामीण महिलाओं में स्किल का विकास भी तेज़ी से किया जाना चाहिए। ग्रामीण महिलाओं के देश के विकास में किए जा रहे योगदान से न केवल देश के आर्थिक विकास को गति मिलेगी बल्कि देश का उज्जवल भविष्य गढ़ने में भी मदद मिलेगी।