प्लास्टिक से मुक्ति, अब ज़रूरी
2 अक्टोबर 2019 से देश में प्लास्टिक छोड़ो अभियान की शुरुआत हो चुकी है। अतः अब सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को तो “ना” कहा ही जाना चाहिए।
कितना ख़तरनाक है प्लास्टिक
आईए सबसे पहिले यह समझने का प्रयास करें कि प्लास्टिक, विशेष रूप से एकल उपयोग प्लास्टिक, देश के पर्यावरण, नागरिकों, पशु-पक्षियों, समुद्री जीवों, आदि के लिए कितना ख़तरनाक है, इस भयावह स्थिति को समझना बहुत आवश्यक है। दरअसल, प्लास्टिक आसानी से विघटित नहीं होता है एवं इसका स्वरूप लगभग 1000 वर्षों तक बना रहता है। विश्व में प्लास्टिक का उपयोग इतना बढ़ता जा रहा है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान जितना प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है इतना प्लास्टिक का उत्पादन इन 10 वर्षों के पहिले के पूरे समय में भी नहीं हुआ था। इन सभी प्लास्टिक उत्पादों में से 50 प्रतिशत प्लास्टिक उत्पाद केवल एक बार ही उपयोग कर फैंक दिए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष इतना प्लास्टिक धरती एवं समुद्र में फैंका जाता है कि यदि ये पूरा प्लास्टिक एक कड़ी के रूप में जोड़ा जाय तो इस कड़ी के माध्यम से भू-भाग के चार चक्कर लगाए जा सकते हैं। वर्तमान में केवल 10 प्रतिशत प्लास्टिक ही रीसायकल हो पाता है शेष 90 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का रूप ले लेता है। पूरे विश्व में लगभग 50,000 करोड़ प्लास्टिक की थैलियाँ प्रतिवर्ष उपयोग में आती हैं। सामान्यतः प्लास्टिक कचरे को समुद्र में फेंक दिया जाता है, इससे समुद्र के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है एवं समुद्री जीव इसका शिकार हो रहे हैं। प्रतिवर्ष समुद्र में 10 लाख समुद्री पक्षी एवं एक लाख समुद्री स्तनपायी जीवों की जीवनलीला प्लास्टिक पदार्थ खाने से समाप्त हो जाती है। यही एक बड़ा कारण है कि आज लगभग 700 समुद्री जीव लुप्त होने की कगार पर पहुँच गये हैं।
भारत में भी कई पशु-पक्षी प्लास्टिक पदार्थों को खाकर अपनी जान गवाँ बैठते हैं। प्लास्टिक कचरे का भंडार हमारे देश के लिए भी एक गंभीर समस्या बन गया है। महानगरों, शहरों, एवं अब तो ग्रामीण इलाक़ों में भी प्लास्टिक कचरे के भंडार के पहाड़ आसानी से देखे जा सकते हैं। भारत में सड़क से लेकर नाली, सीवर और घरों के आसपास प्लास्टिक कचरा हर जगह नजर आता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश में प्रतिदिन लगभग 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। भारत में हर साल प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का प्रयोग औसतन 11 किलो है, जबकि अमेरिका में एक व्यक्ति द्वारा प्लास्टिक प्रयोग का सालाना औसत 109 किलो का है। भारत में प्लास्टिक की प्रति व्यक्ति सालाना खपत पिछले 5 सालों में दोगुनी से ज्यादा हो गई है। देश में इसका उत्पादन एवं विदेशों से आयात लगातार बढ़ रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के प्लास्टिक आयात में 2017 के मुकाबले 2018 में 16 फीसदी की तेजी आई है और ये 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है। अमेजन एवं फ्लिपकार्ट जैसे आनलाइन व्यवसायी प्रतिदिन 7 हजार किलो प्लास्टिक पैकेजिंग बैग का उपयोग करते हैं।
क्या है एकल उपयोग प्लास्टिक
चालीस माइक्रोमीटर (माइक्रॉन) या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को एकल उपयोग प्लास्टिक कहते हैं। इसका मतलब प्लास्टिक से बनी उन चीजों से है जो एक बार ही उपयोग में लायी जाती हैं और उसके बाद फेंक दी जाती हैं। जैसे, प्लास्टिक की पन्नी जिसमें बाजार से सब्जी या फल लाते हैं, प्लास्टिक का कप, प्लास्टिक की प्लेट, प्लास्टिक की पानी की बोलत, प्लास्टिक का चाकू, प्लास्टिक का चम्मच, प्लास्टिक का स्ट्रा जिसके ज़रिए शीतल पेय पिया जाता है। इसी तरह ऐसी ही अनेकों प्लास्टिक की चीजें हैं जो हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी हुई हैं और उन्हें हम एक बार ही उपयोग में लाकर यह सोचकर फैंक देते हैं कि इस कूड़े से पीछा छूटा। लेकिन, एसा होता नहीं है क्योंकि यह प्लास्टिक का कूड़ा वातावरण में हमेशा बना रहता है।
प्लास्टिक का बुरा प्रभाव
बेहद कम खर्चे पर बनने वाले यह प्लास्टिक उत्पाद बहुत ज्यादा खतरनाक रसायन लिये होते हैं जिसका बुरा प्रभाव इंसान के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पड़ता है। जिस पन्नी में हम सब्जी खरीद कर लाते हैं वह आसानी से फट तो जाती है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होती। अपनी रासायनिक संरचना की वजह से प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होता है तथा सिंगल यूज़ प्लास्टिक को तो आसानी से रीसाइकल भी नहीं किया जा सकता। अतः ये सैकड़ों सालों तक ज़मीन पर बना रहता है और कभी नष्ट नहीं होता। जब इस एकल उपयोग प्लास्टिक को जमीन के अंदर दबाकर नष्ट करने की कोशिश की जाती है तो यह नष्ट होने की बजाय छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाता है और विषैला रसायन पैदा कर भूमि की उर्वरक क्षमता को नुकसान पहुँचाता है एवं अंततः ज़मीन को ही बंजर बना देता है।प्लास्टिक न केवल ज़मीन को बंजर बनाता है बल्कि हमारे आस पास के वातावरण को भी दूषित करता है क्योंकि इसके जलाने पर यह हवा में कार्बन डाई आक्सायड को बढ़ाता है। जहाँ सिंगल यूज़ प्लास्टिक को डम्प किया जाता है वहाँ पर बायो डिग्रेडेबल वेस्ट से मिलकर मीथेन गैस बनने लगता है। यही गैस पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। मीथेन गैस कार्बन डाय ओकसाईड की तुलना में 30 गुना अधिक ख़तरनाक है। जलवायु परिवर्तन के लिए भी ख़ास तौर से यही गैस ज़िम्मेदार मानी जाती है। साथ ही, मिट्टी में घुलमिल चुका यह विषैला रसायन जैसे ही खाद्य पदार्थों और पानी में पहुँचता तो उससे मानव के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है एवं इससे कैंसर जैसी बीमारी फैलती है। एकल उपयोग प्लास्टिक कास्नोजेनिक होता है और इसमें कैंसरकारक रसायन होते हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्लास्टिक हम सबके शरीर में किसी न किसी के रूप में पहुंच रहा है। कनाडाई वैज्ञानिकों द्वारा सम्पन्न किए गये एक शोध में पता चला है कि एक वयस्क पुरुष प्रतिवर्ष लगभग 52000 माइक्रोप्लास्टिक कण केवल पानी और भोजन के साथ निगल रहा है। इसमें अगर वायु प्रदूषण को भी मिला दें तो हर साल करीब 1,21,000 माइक्रोप्लास्टिक कण खाने-पानी और सांस के जरिए एक वयस्क पुरुष के शरीर में जा रहे हैं। हम चाह कर भी प्लास्टिक मुक्त जीवन की कल्पना नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि माइक्रोप्लास्टिक हवा में है, पानी में है, नदी में है, समुद्र में है, बारिश में है, और इन सबके चलते वे हमारे भोजन में भी है, हम मनुष्यों के, पशुओं के और शायद सभी प्राणियों के जीवन में है।
प्लास्टिक का उपयोग कम करने के उपाय
प्लास्टिक कितना ज़्यादा ख़तरनाक है, यह जानने के बाद तो हम सभी व्यक्तियों को यह प्रण ही ले लेना चाहिए कि आज से एकल उपयोग प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल बंद कर दें। दरअसल, यह बहुत ही आसान है। हमें केवल कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा,
(1) जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएँ तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। इससे ख़रीदे गए सामान को रखने हेतु प्लास्टिक के थैलियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कठोरता के साथ बिल्कुल “ना” कहें। इसके स्थान पर, पुनः प्रयोग होने वाले प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल करें।
(2) चाय एवं कॉफ़ी आदि के ढाबों पर प्लास्टिक मग्स के स्थान पर कुल्हड़ का उपयोग करें। इस संदर्भ में, केंद्रीय मंत्री माननीय श्री नितिन गड़करी महोदय ने तो यहाँ तक कह दिया है कि इस प्रकार की व्यवस्थाएँ की जा रही हैं कि रेल्वे प्लैट्फ़ॉर्म एवं हवाई अड्डों पर भी अब चाय एवं कॉफ़ी कुल्हड़ में ही परोसी जाएगी। इस प्रकार, रेल यात्रियों को जल्दी ही 400 रेलवे स्टेशनों पर चाय, लस्सी और खाने-पीने का सामान मिट्टी से बने कुल्हड़, गिलास और दूसरे बर्तनों में मिलने लगेगा। इस कदम से जहां एक तरफ स्थानीय और पर्यावरण अनुकूल उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा, प्लास्टिक के उपयोग पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी तरफ कुम्हारों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी।
(3) पानी, प्लास्टिक की बोतलों में पीने के बजाय स्टील, तांबे की बोतलों का उपयोग करना शुरू कर दीजिये। इससे एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग में कमी आएगी।
(4) मनोरंजन के लिए गाने, भजन एवं फ़िल्मों आदि के VDO ऑनलाइन ही ख़रीदें, इनकी प्लास्टिक की CD एवं DVD नहीं ख़रीदें।
(5) विभिन्न समुद्री किनारों पर फैल रहे प्लास्टिक कचरे की सफ़ाई में अपना योगदान हर नागरिक दे सकता है। छुट्टी के दिन कई दोस्त लोग मिलकर इस प्रकार की सामाजिक सेवा में अपना हाथ बटा सकते हैं।
(6) उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश समेत लगभग सभी राज्यों ने एकल उपयोग प्लास्टिक पर रोक लगाई है। जब भी विभिन्न सरकारों द्वारा अपने-अपने प्रदेशों में प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध की घोषणा की जाती है, इसका पुरज़ोर समर्थन करें एवं समाज में अपने भाई बहनों को भी समझाएँ कि वे इस प्रतिबंध को सफल बनाएँ।
(7) कई देशों में तो प्लास्टिक के विकल्प तैयार करने हेतु अनुसंधान भी किए जा रहे हैं। इन अनुसंधानों का अध्ययन कर इनके शीघ्र उपयोग को भारत में भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। भारत में तो पेड़ के पत्तों के दोने, पत्तल, मिट्टी के कुल्लड़, केले के पत्ते जैसी कटलरी, कागज़ के लिफाफे, जूट के बैग औऱ कपड़े के थैले, जैसी प्राकृतिक चीज़ों का इस्तेमाल बहुतायत में सुरक्षित रूप से होता रहा है। देश में इन सभी उत्पादों के गहन उपयोग को पुनः शुरू किया जा सकता है, और ये सभी उत्पाद प्लास्टिक के ठोस विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं, हमें केवल अपनी आदतें बदलनी होंगी।
(8) देशवासियों एवं उद्योगों को प्लास्टिक के उपयोग एवं उत्पादन को कम एवं बंद करने हेतु कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। जैसा विश्व के अन्य देशों में वहाँ की सरकारों ने अपने नागरिकों एवं उद्योगों के लिए किया है। जैसे, ग्रेट ब्रिटेन ने उद्योगों में प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्लास्टिक का उत्पादन करने वाले उद्योगों पर प्लास्टिक के नए उत्पादन एवं आयात पर प्लास्टिक टैक्स लगाए जाने सम्बंधी एक योजना की घोषणा की है। अमेरिका एवं अन्य कई विकसित देशों में प्लास्टिक के कचरे को वहाँ की स्थानीय सरकारों द्वारा नागरिकों के घरों से इकट्ठा करवाया जाता है ताकि इसके 100 प्रतिशत रीसाइक्लिंग को सुनिश्चित किया जा सके। जो सिंगल यूज़ प्लास्टिक रीसाइकल नहीं किया जा सकता उसका इस्तेमाल सिमेंट और सड़क बनाने में किया जाता है। इसी प्रकार के कई प्रोत्साहन अन्य कई देशों द्वारा भी दिए जा रहे हैं, इनका अध्ययन कर इन प्रोत्साहनों को हमारे देश में भी शीघ्र ही लागू किया जाना चाहिए।
उक्त बताए गए उपायों से देश में प्लास्टिक के उपयोग को कम किया जा सकता है एवं प्लास्टिक कचरे के फ़िर से इकट्ठा होने को रोका जा सकता है।
सरकार द्वारा किए जा रहे उपाय
एकल उपयोग प्लास्टिक के खिलाफ भारत ही उठ खड़ा हुआ है ऐसा नहीं है बल्कि दुनिया भर के देश इस बड़ी समस्या से निजात पाने के लिए रणनीतियां बनाने में जुट गये हैं। भारत सरकार जहाँ सभी राज्यों को यह निर्देश दे चुकी है कि एकल उपयोग प्लास्टिक के उत्पाद बनाने वाली इकाइयों को बंद कराया जाये वहीं अब जल्द ही सरकारी दफ्तरों में प्लास्टिक की बोतलों की बजाय मिट्टी और धातु के बर्तनों में पानी पिलाया जाएगा। केंद्र सरकार का पूरा प्रयास है कि प्लास्टिक थैलियों, प्लास्टिक की कटलरी और थर्माकॉल से बनी कटलरी का उत्पादन और बिक्री पूरी तरह बंद हो जाये। पर्यावरण मंत्रालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों में भी कहा गया है कि सरकारी और निजी कार्यालयों में कृत्रिम फूल, बैनर, फूल लगाने वाले पॉट और प्लास्टिक स्टेशनरी आइटम, खासकर प्लास्टिक फोल्डर उपयोग में नहीं लिये जाएं। खाद्य नियामक FSSAI ने भी प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें होटलों को प्लास्टिक बोतलों के स्थान पर पेपर-सील वाली कांच की बोतलों का उपयोग करने को कहा गया है। खाद्य नियामक ने प्लास्टिक के ‘स्ट्रॉ’, प्लेट, कटोरे और कटलरी के विकल्प के रूप में बांस के उत्पादों के उपयोग की अनुमति भी प्रदान कर दी है। भारतीय रेल्वे ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर हाल ही में रोक लगा दी है एवं एयर इंडिया ने भी 2 अक्टोबर 2019 से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन लगा दिया है। केंद्र ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को एक एडवाईजरी जारी की है जिसमें कहा गया है कि सरकारी कार्यालयों और पब्लिक कार्यक्रमों में प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग बंद कर दिया जाय। इसी प्रकार देश की कई राज्य सरकारों एवं कई संस्थानों ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को कम एवं बंद करने का निर्णय लिया हैं।
जन जन को सहयोग देना होगा
शायद केवल सरकारी आदेश, सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को देश में कम नहीं कर सकेंगे। इसके लिए जनता की भागीदारी आवश्यक है। देश के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसलिए अपने मन की बात कार्यक्रम के माध्यम से देश वासियों का कई बार आह्वान किया है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को बिलकुल बंद करें। परंतु, प्लास्टिक का उपयोग नागरिकों की दिनचर्या में इस प्रकार घुल मिल गया है कि इसके उपयोग को आसानी से बंद करना सम्भव नहीं होगा। अतः एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल को ख़त्म करने के प्रयास को एक जन आंदोलन का रूप देना होगा। इस हेतु समाज में उत्साह है। कई व्यापारी भाईयों ने तो अपनी दुकान में एक तखती लगा दी है जिसमें लिखा है कि प्रिय ग्राहक, अपना थैला साथ लेकर ही आएँ, ताकि एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल को ख़त्म किया जा सके। इससे पैसा भी बचेगा और पर्यावरण की रक्षा में सभी देशवासी अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दे पाएँगे। आदरणीय प्रधान मंत्री जी ने समाज के सभी वर्गों, हर गाँव, क़सबे, शहर के निवासियों से अपील करते हुए करबद्ध प्रार्थना की है कि भारत माता को शीघ्र ही प्लास्टिक कचरे से मुक्ति दिलाई जानी चाहिए। देश की सभी नगर निगमों, नगर पालिकाओं, ज़िला पंचायतों, ग्राम पंचायतों, सरकारी, ग़ैर सरकारी संस्थानों एवं प्रत्येक नागरिक से अनुरोध भी किया गया है कि प्लास्टिक कचरे के स्टोर के लिए उचित व्यवस्था की जाय। साथ ही, कोरपोरेट सेक्टर से भी अपील की गई है कि जब ये सारा प्लास्टिक कचरा इकट्ठा हो जाए तो इसके उचित विघटन हेतु वे भी आगे आएँ। प्लास्टिक कचरे के विघटन की व्यवस्था के साथ साथ इसे रीसायकल किए जाने की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे ईंधन आदि बनाया जा सकता है।
अब समय आ गया है कि देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कराया जाए ताकि न केवल मासूम पशु-पक्षियों की जान बचाई जा सके बल्कि पर्यावरण में भी सुधार लाया जा सके।
1 Comments
Good to see aggressive measures in India to curtail plastic pollution. Even in some of the advanced countries of the world, using plastic bags, for instance, is not discouraged a lot.
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