पूंजीगत खर्चों में अतुलनीय वृद्धि के बावजूद राजकोषीय घाटे में कमी करना बजट की सबसे बड़ी सफलता है
भारत सरकार की वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2024-25 का विस्तृत बजट दिनांक 23 जुलाई 2024 को लोकसभा में पेश किया। यह बजट, केंद्र में श्री नरेंद्र मोदी सरकार के लगातार तीसरे कार्यकाल के प्रथम बजट के रूप में पेश किया गया है।
केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों द्वारा पूंजीगत खर्चों में लगातार की जा रही वृद्धि के चलते भारत की आर्थिक विकास दर को पंख लगते दिखाई दे रहे हैं। वर्ष 2022-23 के बजट में केंद्र सरकार द्वारा 7.5 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था, वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसमें 33 प्रतिशत की भारी भरकम वृद्धि करते हुए इसे बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए का कर दिया गया था। अब वित्तीय वर्ष 2024-45 के लिए इसे और आगे बढ़कर 11.11 लाख करोड़ रुपए का कर दिया गया है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में न केवल स्थिरता दिखाई देने लगी है बल्कि यह लगातार तेज गति से आगे बढ़ रही है। आज पूरे विश्व में केवल भारतीय अर्थव्यवस्था ही एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रही है। अब तो निजी क्षेत्र भी अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करने पर गम्भीरता से विचार कर रहा है क्योंकि देश में विनिर्माण इकाईयों की उत्पादन क्षमता का 75 प्रतिशत से अधिक उपयोग होने लगा है। सामान्यतः ऐसी स्थिति में निजी क्षेत्र अपना पूंजी निवेश बढ़ाने पर विचार करने लगता है। जब केवल केंद्र सरकार एवं कुछ राज्य सरकारों के लगातार बढ़ते पूंजी निवेश के चलते देश की अर्थव्यवस्था को इतना बल मिल रहा है तब यदि केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं निजी क्षेत्र संयुक्त रूप से अपने पूंजी निवेश को बढ़ाने लगेंगे तो निश्चित ही यह भारत की अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर से आगे बढ़ाने में सहायक हो सकता है।
भारत ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में 8 प्रतिशत से अधिक की आर्थिक विकास दर की रफ्तार को पकड़ ही लिया है। आर्थिक विकास की इस वृद्धि दर को बनाए रखने एवं इसे और अधिक आगे बढ़ाने के लिए पूंजीगत खर्चों में वृद्धि करना आवश्यक है। आर्थिक विकास दर में तेजी के चलते देश में रोजगार के नए अवसर अधिक मात्रा में विकसित होते हैं। जिसकी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत को बहुत अधिक आवश्यकता भी है। भारत में पिछले 10 वर्षों के दौरान विकास दर को तेज करने के चलते ही लगभग 25 करोड़ नागरिक गरीबी रेखा के ऊपर उठ पाए हैं एवं करोड़ों नागरिक मध्यवर्ग की श्रेणी में शामिल हुए हैं। अब भारत में गरीबी की दर 8.5 प्रतिशत रह गई है जो वित्तीय वर्ष 2011-12 में 21.1 प्रतिशत थी। गरीबी की रेखा से बाहर आए इन नागरिकों एवं मध्यवर्गीय नागरिकों ने देश में उत्पादों की मांग में वृद्धि करने में अहम भूमिका निभाई है। साथ ही, कर संग्रहण में भी इस वर्ग ने महती भूमिका अदा की है। आज प्रत्यक्ष कर संग्रहण लगभग 25 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज करता हुआ दिखाई दे रहा है तथा वस्तु एवं सेवा कर भी अब औसतन लगभग 1.80 लाख करोड़ रुपए प्रतिमाह से अधिक की राशि के संग्रहण के साथ आगे बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक ने भी वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए 2 लाख करोड़ से अधिक की राशि का लाभांश केंद्र सरकार को उपलब्ध कराया है तो सरकारी क्षेत्र के बैकों/उपक्रमों ने 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि का लाभ अर्जित कर केंद्र सरकार को भारी भरकम राशि का लाभांश उपलब्ध कराया है, जबकि कुछ वर्ष पूर्व तक केंद्र सरकार को सरकारी क्षेत्र के बैंकों के घाटे की आपूर्ति हेतु इन बैकों को बजट में से भारी भरकम राशि उपलब्ध करानी होती थी। कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए इस आमूल चूल परिवर्तन के चलते केंद्र सरकार के बजटीय घाटे में भारी कमी दृष्टिगोचर हुई है। केंद्र सरकार का बजटीय घाटा कोविड महामारी के दौरान 8 प्रतिशत से अधिक हो गया था जो अब वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटकर 4.9 प्रतिशत (70 आधार बिंदुओं की कमी) तक नीचे आने की सम्भावना इस बजट में की गई है। इस प्रकार, अब यह सिद्ध हो रहा है कि केंद्र सरकार ने न केवल अपने वित्तीय संसाधनों में वृद्धि करने में सफलता अर्जित की है बल्कि अपने खर्चों को भी नियंत्रित करने में सफलता पाई है, जबकि अपने पूंजीगत खर्चों को कम नहीं किया है।
यह निश्चित रूप से हर्ष का विषय है कि केंद्र सरकार द्वारा अपने बजट में प्रतिवर्ष पूंजीगत खर्चों में लगातार अतुलनीय वृद्धि करने के बावजूद अपने बजटीय घाटे में लगातार कमी करते जाना भी अपने आप में बहुत बड़ी सफलता के रूप में देखा जाना चाहिए। हालांकि, देश के गरीब वर्ग को प्रदान की जा रही सुविधाओं में किसी प्रकार की कमी नहीं की गई है बल्कि इनमे कुछ सुधार ही किया गया है। दरअसल, केंद्र सरकार को प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर एवं अन्य स्त्रोतों से आय को अतुलनीय रूप से बढ़ाने में सफलता मिली है। वस्तु एवं सेवा कर भी अब अपनी सफलता की कहानी लिखता दिखाई दे रहा है। प्रत्यक्ष कर अदा करने वाले नागरिकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण हो रहा है। इन समस्त कारकों के चलते ही पूंजीगत खर्चों में भारी भरकम वृद्धि के बावजूद बजटीय घाटे में कमी दृष्टिगोचर है।
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