देश के आर्थिक विकास को गति देने हेतु केंद्र सरकार ने किए हैं कई उपाय

देश के आर्थिक विकास को गति देते हुए देश की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2024-25 तक 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाने हेतु केंद्र में श्री नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2014 में देश की बागडोर सम्हालने के साथ ही पिछले लगभग 6 वर्षों के दौरान कई साहसिक क़दम उठाए हैं। जैसे, जीएसटी कर प्रणाली को लागू करना, औपचारिक अर्थव्यवस्था के दायरे को विस्तार देने के उद्देश्य से डीमोनेटाईज़ेशन करना, बड़े-बड़े चूककर्ता ऋणग्राहियों से वसूली करने एवं उन्हें दिवालिया घोषित करने के उद्देश्य से एनसीएलटी की स्थापना करना, फ़्लैट्स/मकान ख़रीदनें वाले मध्यमवर्गीय जनों के हितों की रक्षा के लिए रेरा क़ानून को लागू करना, सरकारी क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय, आदि। उक्त नए नियमों के लागू होने के साथ ही, देश में समेकन की प्रक्रिया शुरू हुई है, जो अभी तक जारी है। दरअसल, देश की अर्थव्यवस्था अधिक से अधिक औपचारिक बनने के दौर से गुज़र रही है। उक्त वर्णित कई बड़े एवं साहसिक फ़ैसले देश की अर्थव्यवस्था को लम्बे समय के लिए मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से लिए गए हैं, जिनका देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव लम्बे समय तक महसूस किया जाना स्वाभाविक है। इन फ़ैसलों के चलते एवं समेकन की प्रक्रिया के कारण तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे विभिन्न कारकों विशेष रूप से अमेरिका एवं चीन के बीच छिड़े व्यापार युद्ध, आदि के कारण कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं की विकास दर में कमी आई, भारत भी इससे अछूता नहीं रह सका। अतः वर्ष 2019-20 के दौरान केंद्र सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था में गति लाने के उद्देश्य से कई फ़ैसले किए, जिनका वर्णन इस लेख में किया जा रहा है।      

बैंकों को सुद्रढ़ बनाया जाना 
किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए बैंकिंग क्षेत्र एक धुरी के रूप में काम करता है और  इसलिए बैंकिंग उद्योग, अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। देश के आर्थिक विकास को गति देने एवं देश की अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर तक ले जाने हेतु भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूत बनाया जाना बहुत ही आवश्यक है। हाल ही के समय में, केंद्र सरकार ने भारतीय बैंकिंग उद्योग को मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से कई सुधारों की घोषणा की है। जैसे, ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों की समस्या से निपटने के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई। देश में सही ब्याज दरों को लागू करने के उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति बनायी गई। साथ ही, पिछले पाँच/छह वर्षों के दौरान केंद्र सरकार द्वारा इंद्रधनुष योजना को लागू करते हुए, सरकारी क्षेत्र के बैंकों को लगभग तीन लाख करोड़ रुपए की सहायता उपलब्ध करायी गई। चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में भी रुपए 70,000 करोड़  की पूँजी सरकारी क्षेत्र के बैंकों को उपलब्ध करायी गई है ताकि इन बैंकों की तरलता की स्थिति में सुधार हो, देश के कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों को ऋण उपलब्ध कराने में आसानी हो एवं बाज़ल-3 के नियमों का पालन करने में सक्षम हों।

इसी कड़ी में, दिनांक 30 अगस्त 2019 को देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीथारमन ने बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक मज़बूत बनाए जाने के उद्देश्य से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की। सरकारी क्षेत्र के बैकों के समेकन के माध्यम से इनकी क्षमता अनवरोधित (अनलाक) करने के उद्देश्य से ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय किया जा रहा है। भारतीय स्टेट बैंक की सहायक बैंकों का विलय भारतीय स्टेट बैंक में किया जा चुका है, जो कि एक बहुत ही सफल प्रयोग रहा है। वर्ष 2019 में बैंक आफ बड़ोदा के साथ विजया बैंक एवं देना बैंक का विलय भी कर दिया गया है, इस विलय में भी किसी बड़ी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था, यह भी एक सुचारू विलय सिद्ध हुआ है। अब, पंजाब नैशनल बैंक के साथ ऑरीएंटल बैंक आफ कामर्स एवं यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया का विलय किया जा रहा है। साथ ही, कनारा बैंक के साथ सिंडिकेट बैंक का तथा यूनियन बैंक के साथ आंध्रा बैंक एवं कारपोरेशन बैंक का तथा इंडियन बैंक के साथ इलाहाबाद बैंक का विलय किया जा रहा है। इन बैंकों के विलय में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि इनके विलय से किसी भी ग्राहक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो, ये तकनीक के लिहाज़ से एक ही प्लैट्फ़ॉर्म पर हों, इन बैंकों की संस्कृति एक ही हो तथा इन बैंकों के व्यवसाय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो। वर्ष 2017 में देश में सरकारी क्षेत्र के 27 बैंक थे अब प्रस्तावित विलय हो जाने के बाद देश में केवल 12 सरकारी क्षेत्र के बैंक रह जाएँगे। इनमे से 6 बैंक वैश्विक स्तर के बैंक होंगे, 2 बैंक राष्ट्रीय स्तर के होंगे एवं 4 बैंकों की मज़बूत उपस्थिति मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्तर की होगी। इस प्रकार देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अगली पीढ़ी के बैंकों का रूप दिया जा रहा है। उपरोक्त उपायों के साथ ही सरकारी क्षेत्र के बैंकों में अभिशासन में सुधार लाने के उद्देश्य से भी कई उपायों की घोषणा माननीय वित्त मंत्री महोदय ने की है। इनके अंतर्गत बैंक के ग्राहकों को भी अधिकार दिया गया है कि वे अपने ऋण प्रस्तावों के मंज़ूर होने की जानकारी ऑनलाइन ट्रैक कर सकेंगे।   

इस विलय के बाद इन सरकारी क्षेत्र के बैंकों का बड़ा हुआ आकार, इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में अभितपूर्व वृद्धि करेगा। इन बैंकों की राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत उपस्थिति के साथ ही इनकी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुँच होगी। विलय के बाद इन बैंकों की परिचालन लागत में कमी होगी जिससे इनके द्वारा प्रदान किए जा ऋणों की लागत में भी सुधार आएगा। इन बैंकों के जोखिम लेने की क्षमता में वृद्धि होगी। इन बैंकों का बैंकिंग व्यवसाय हेतु नई तकनीकी के अपनाने पर विशेष ज़ोर रहेगा जिससे इनकी उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होगा। इन बैंकों की बाज़ार से संसाधनों को जुटाने की क्षमता भी बढ़ेगी।      

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन 
सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग देश की अर्थव्यवस्था के विकास में अहम ज़िम्मेदारी निभाता है। इसकी देश के सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत, औद्योगिक उत्पादन में 45 प्रतिशत, निर्यात में 48 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। अतः वर्ष 2019-20 के लिए, केंद्र सरकार ने अपने उपक्रमों के लिए, रुपए 50,000 करोड़ के उत्पादों की ख़रीदी इस क्षेत्र से करने का लक्ष्य निर्धारित किया। सरकार के उपक्रम अपनी कुल ख़रीदी का न्यूनतम 25 प्रतिशत हिस्सा इस क्षेत्र से ख़रीदेंगे। साथ ही, इस क्षेत्र में तरलता में सुधार के उद्देश्य से वस्तु एवं सेवा कर के वापसी की स्थिति में कर की अदायगी 60 दिनों के अंदर कर दी जाएगी। केंद्र सरकार द्वारा सरकारी क्षेत्र के बैंकों को रुपए 70,000 करोड़ की राशि भी जारी कर दी। इससे इन बैंकों की तरलता में सुधार आया और ये बैंक रुपए 5 लाख करोड़ तक की राशि का नया ऋण प्रदान कर सकने की स्थिति में आ गए। इससे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमियों, छोटे व्यापारियों, खुदरा उधारकर्ता एवं कम्पनियों को लाभ हुआ।

आटोमोबाइल क्षेत्र की वृधि दर में आई कमी को दूर करने के उद्देश्य से भी कुछ उपायों की घोषणा केंद्र सरकर द्वारा की गई। यथा, बीएस-4 आधारित वाहनों को 31.03.2020 तक ख़रीदा जा सकेगा जिसकी वैद्यता उनके पंजीकरण की अवधि तक लागू रहेगी। 31.03.2020 तक ख़रीदे गए समस्त वाहनों के लिए लागू मूल्यह्रास की दर को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया। विद्युत वाहनों के लिए आधारभूत संरचना का विकास किए जाने पर सरकार का ध्यान रहेगा एवं इसके  लिए बैटरी एवं सहायक उत्पादों का भारत में ही उत्पादन कर निर्यात किए जाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। पुराने वाहनों के स्थान पर नए वाहनों के ख़रीदने सम्बंधी प्रतिबंधों को भी हटा दिया गया।  

आवास क्षेत्र को प्रोत्साहन 
चूँकि आवास क्षेत्र रोज़गार के नए अवसरों का भारी मात्रा में सर्जन करता है, अतः इस क्षेत्र में जान फूँकने के उद्देश्य से देश की वित्त मंत्री ने आवास क्षेत्र में भी सुधार की घोषणाएँ कीं। अधूरी पड़ी समस्त आवासीय परियोजनाओं (जो ग़ैर-निष्पादनकारी अस्तीयों में परिवर्तित नहीं हुई हैं एवं जिनके विरुद्ध एनसीएलटी में किसी प्रकार का दिवालियापन का मामला लम्बित नहीं है) के लिए रुपए 10,000 करोड़ के फ़ंड की विशेष व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा की गई, ताकि इन अधूरी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को शीघ्र ही पूरा किया जा सके। उक्त राशि के साथ ही इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए बाहरी निवेशकों को भी इन परियोजनाओं में लगभग इतनी ही राशि अर्थात रुपए 10,000 करोड़ का निवेश करना आवश्यक होगा। इस प्रकार, कुल उपलब्ध राशि बढ़कर रुपए 20,000 करोड़ हो जाएगी। यह राशि सस्ती एवं मध्यमवर्गीय आय आवास परियोजनाओं को शीघ्र पूर्ण करने में मदद देगी। आवासीय परियोजनाओं को विदेशों से ऋण आसानी से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विदेशी वाणिज्यिक उधारी सम्बंधी नियमों को भी आसान बनाया गया। 
आवास ऋण पर ब्याज की दर को भी बैंकों द्वारा लगातार कम किया जा रहा है एवं इसे 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों की यील्ड के साथ जोड़ा जा रहा है ताकि मध्यम वर्गीय लोगों को सीधे लाभ पहुँचाया जा सके। सरकारी कर्मचारियों को भी प्रेरित किया जा रहा है ताकि वे अधिक से अधिक नए आवासों को ख़रीदें।
देश में किफायती और मध्यम-आय वर्ग के लिए रुकी पड़ी आवासीय क्षेत्र की परियोजनाओं को शीघ्र पूरा करने के उद्देश्य से, प्राथमिकता के आधार पर आर्थिक सहायता देने के लिये, विशेष विंडो कोष की स्थापना को मंजूरी दी गई। पूरे देश के विभिन्न शहरों में अटकी पड़ी 1600 से अधिक आवासीय परियोजनाओं का काम शीघ्र पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने 25 हजार करोड़ रुपये की आरंभिक राशि के साथ एक वैकल्पिक निवेश कोष बनाने का फैसला किया। इस कोष के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार एक प्रायोजक के रूप में कार्य करेगी और सरकार की ओर से दी जाने वाली रकम रुपए 10,000 करोड़ तक की होगी। ये रकम उन डेवलपर्स को राहत देगी, जिनकी आवासीय परियोजनाएँ धन के अभाव में अधूरी पड़ी हैं एवं जिन्हें अपनी इन अधूरी पड़ी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता है। इन आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एक एस्क्रो खाता बनाकर धन राशि उसमें डाली जायेगी और जैसे-जैसे बिल्डर निर्माण कार्य पूरा करता जाएगा चरणबद्ध तरीके से उसे धन राशि रिलीज़ की जाती रहेगी। बिल्डर इस धन राशि का उपयोग सिर्फ और सिर्फ परियोजना का अधूरा काम पूरा करने के लिए ही कर सकेगा। इसकी निगरानी की जिम्मेदारी एसबीआई कैप को दी गयी है। 

निर्यात क्षेत्र को प्रोत्साहन 
देश से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भी कई उपाय लगातार किए जा रहे हैं। निर्यातकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से देश से निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर शुल्क एवं करों में छूट की घोषणा की गई, इससे केंद्र सरकार के ख़ज़ाने पर वर्ष 2019-20 के दौरान रुपए 50,000 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

निर्यात ऋण के लिए, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के ऋण सम्बंधी नियमों को शिथिल किया गया ताकि अधिक से अधिक निर्यातक इकाईयों को इन नए नियमों के अन्तर्गत लाया जा सके। इससे इन निर्यातक इकाईयों को रुपए 36,000 करोड़ से रुपए 68,000 करोड़ के अतिरिक्त ऋण प्रदान किए जा सकेंगे। निर्यात साख गारंटी निगम के निर्यात साख गारंटी सम्बंधी नियमों को भी आसान बनाया गया ताकि अन्य निर्यात इकाईयों को भी इसके दायरे में लाया जा सके। इससे इन इकाईयों की वित्त लागत कम होगी एवं इनके उत्पाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकेंगे। इन नियमों के लागू होने के बाद प्रतिवर्ष रुपए 1,700 करोड़ का अतिरिक्त ख़र्च आने की सम्भावना है। 
  
विभिन्न देशों के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौतों के लाभ देश के निर्यातकों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक मिशन की स्थापना भी की जा रही है ताकि देश के निर्यातकों को रियायती टैरिफ़ की दरों का लाभ दिलाया जा सके। देश के चार प्रमुख महानगरों में प्रतिवर्ष मेगा ख़रीदारी मेलों का आयोजन बहुत बड़े स्तर पर किया जाएगा, जिसमें हस्तशिल्प, योगा, पर्यटन, वस्त्र एवं चमड़ा उद्योग पर विशेष फ़ोकस रहेगा।
करों में कमी 
20 सितम्बर 2019 को केंद्र सरकार ने कोरपोरेट इंडिया को एक बहुत बड़ा तोहफ़ा दिया। माननीय वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने कारपोरेट करों में कटौती की घोषणा की, जिसे 1 अप्रेल 2019 से लागू कर दिया गया। साथ ही, न्यूनतम एकांतर कर में भी राहत दी गई एवं पूँजी लाभ कर पर बड़ा हुआ सर्चार्ज हटाने का भी बड़ा ऐलान किया गया। नए प्रावधानों के तहत घरेलू कंपनीयों को वर्तमान के 30 प्रतिशत (सरचार्ज सहित 34.94 प्रतिशत) के स्थान पर अब 22 प्रतिशत (सरचार्ज सहित 25.17 प्रतिशत) की दर से कोरपोरेट कर का भुगतान करना होगा। लेकिन, शर्त ये होगी कि कम्पनी किसी छूट अथवा प्रोत्साहन का लाभ नहीं लेगी। इसके अलावा, 1 अक्टोबर 2019 से अथवा इसके बाद जो कम्पनी विनिर्माण क्षेत्र में नई इकाई की स्थापना करेगी एवं इस इकाई में उत्पादन 31 मार्च 2023 तक शुरू हो जाएगा, उसके लिए कोरपोरेट कर की वर्तमान दर 25 प्रतिशत (सरचार्ज सहित 29.12 प्रतिशत) से घटकर मात्र 15 प्रतिशत (सरचार्ज सहित 17.01 प्रतिशत) ही रहेगी। कोरपोरेट कर की यह दर दक्षिण पूर्वीय एशिया के लगभग सभी देशों में लागू दरों की तुलना में कम होगी। सरकार के इस फ़ैसले के बाद शेयर बाज़ार में किसी एक दिन में सबसे बड़ी तेज़ी देखने को मिली और अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने के लिए सरकार का अब तक का यह सबसे बड़ा फ़ैसला कहा जा रहा है।

अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह एक साहसिक एवं मज़बूत फ़ैसला भी कहा जा सकता है जो कि अर्थव्यवस्था की रफ़्तार के लिए एक गेम चेंजर साबित होगा। इस समय, वैश्विक स्तर पर भारत की जो स्थिति थी और भारत को जो फ़ायदा उपलब्ध था, दोनो इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि हमें कोरपोरेट कर को पुनर्गठित करना चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था आज वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई है और विभिन्न देशों के बीच प्रतिस्पर्धा इस बात की है कि कौन सा देश अपनी अर्थव्यवस्था में विनिर्माण को, रोज़गार को, संसाधनों को किस प्रकार बढ़ावा देता हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में, जब किसी भी देश द्वारा करों के सम्बंध में कोई बदलाव किया जाता है तो केवल अपने देश की कम्पनियों की ओर देखकर नहीं किया जाता है बल्कि विदेशों में भी इस सम्बंध में नियमों की ओर देखना होता है। चीन ने भी 1980 के दशक में बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाते हुए, कारपोरेट टैक्स की दरों में भारी कमी की थी एवं श्रम क़ानूनों को भी बहुत शिथिल किया था। इस प्रकार चीन ने अपने आप को पूरे विश्व में एक विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित कर लिया था। चीन की स्थिति आज ख़राब है, चीन और अमेरिका के सम्बंध आपस में बिगड़ रहे हैं अतः भारत को एक ऐसा मौक़ा है कि अमेरिकन एवं अन्य देशों की कम्पनियों को अपने देश में विनिर्माण इकाई स्थापित करने के लिए आकर्षित करे, उनके लिए देश में अच्छा माहौल बनाए। भारत अमेरिका के आपसी सम्बंध बहुत अच्छे हैं। सारे प्रतिस्पर्धी देशों यथा, चीन, सिंगापुर, वियतनाम, होंगकोंग, इंडोनेसिया, आदि में यदि कोरपोरेट कर की दरें कम हैं तो हमारे देश में 35 प्रतिशत कर की दर होने पर क्यों कोई कम्पनी अपनी विनिर्माण इकाई की स्थापना करेगी। इसलिए आज की परिस्थिति में ये आवश्यक हो गया था कि कर की दरों को कम किया जाए। 

1 अक्टोबर 2019 को या उसके बाद नई विनिर्माण कम्पनियों की स्थापना करने पर हमारे देश में 15 प्रतिशत एवं सरचार्ज मिलाकर 17.01 प्रतिशत की दर से कर लागू होगा। जबकि, थाईलेंड एवं वियतनाम में यह दर 20 प्रतिशत है एवं सिंगापुर एवं होंगकोंग में 17 प्रतिशत है। साथ ही, विदेशी निवेश की दृष्टि से विश्व के अन्य आकर्षित गंतव्य स्थानों की तुलना में भी अब भारत में कर की दर कम हो गई है। अन्य स्थितियों में भी कर की दर 22 प्रतिशत एवं सरचार्ज मिलाकर 25.17 प्रतिशत की दर, तुलनात्मक रूप से काफ़ी कम है। नई व्यवस्था में देश की कर प्रणाली पारदर्शी हो गई है। क्योंकि, विनिर्माण इकाईओं को विभिन्न शर्तों के साथ जो कुछ प्रोत्साहन दिए जाते रहे हैं, अब इस व्यवस्था को भी सुधारा जा रहा है एवं कोई प्रोत्साहन अथवा छूट न लेने की स्थिति में कर की कम दर ही लागू हो जाएगी। इस प्रकार, ईज़ ओफ़ डूइंग बिज़नेस की रैंकिंग में भी भारत एक और छलाँग लगा सकता है। 

ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र में सुधार के उपाय  
देश में सामान्यतः यह कहा जाता है कि भारत आज भी गाँवों में ही बसता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती है। अतः यह स्वाभाविक ही है कि देश की केंद्र सरकार कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है। देश के बजट में सबसे अधिक ख़र्च की व्यवस्था ग्रामीण इलाक़ों एवं कृषि क्षेत्र के विकास के लिए किए जाने का प्रयास केंद्र सरकार द्वारा लगातार किया जा रहा है। जिससे रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर ग्रामीण क्षेत्रों में सृजित हों। कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश की राशि बढ़ाए जाने के प्रयास भी केंद्र सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। निवेश के माध्यम से सम्पतियों का निर्माण होता है इससे किसानों की आय एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है और अन्य उत्पादों की माँग भी बढ़ती है। इससे एक नए आर्थिक चक्र का निर्माण होता है और रोज़गार के नए अवसर भी निर्मित होते हैं। अतः केंद्र सरकार द्वारा इस सम्बंध में निम्न उपाय किए हैं -

(1) भारत के राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद ने भारतीय संसद में नवनिर्वाचित सांसदो को सम्बोधित करते हुए कहा है कि कृषि के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने हेतु भारत सरकार आने वाले वर्षों में 25 लाख करोड़ रुपए का निवेश करेगी। 
(2) केंद्र सरकार द्वारा देश के समस्त किसानों के बैंक खातों में रुपए 6 हज़ार प्रति वर्ष जमा किए जा रहे हैं। केंद्र सरकार की इस योजना को सफल बनाए जाने हेतु बजट में रुपए 90,000 करोड़ का प्रावधान किया गया है। पूर्व में, यह योजना केवल लघु एवं सीमांत किसानो हेतु ही लागू की गयी थी एवं इस मद पर रुपए 75,000 करोड़ ख़र्च होने का अनुमान था।     
(3) केंद्र सरकार द्वारा प्रधान मंत्री मुद्रा योजना का दायरा बढ़ाया जा रहा है। अब इस योजना के अंतर्गत देश के 30 करोड़ लोगों को लाने की योजना है तथा अब इस योजना के अंतर्गत रुपए 50 लाख तक का ऋण बिना किसी गारंटी के उपलब्ध कराया जाएगा। 
(4) देश के 150,000 पोस्ट ऑफ़िस की शाखाओं को भारतीय पोस्ट पेमेंट बैंक के माध्यम से देश की जनता को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराने के हेतु अधिकृत किया जा रहा है। केंद्र सरकार के इस निर्णय से विषेश रूप से देश के ग्रामीण इलाक़ों में बैंक सेवाओं का विस्तार होगा।
(5) सीधे लाभ हस्तांतरण (डाइरेक्ट बेनीफ़िट ट्रांसफ़र - डीबीटी) योजना का भी विस्तार किया जा रहा है। समस्त राज्य सरकारों को निवेदन किया जा रहा है कि राज्य स्तर पर अधिक से अधिक योजनाएँ डीबीटी के दायरे में ले आएँ ताकि सब्सिडी की राशि सीधे ही बैंक के माध्यम से लाभार्थियों के खातों में जमा की जा सके। डीबीटी योजना के लागू होने के बाद से देश ने रुपए 1.41 लाख करोड़ की राशि को ग़लत लोगों के हाथों में जाने से बचाया है। 
(6) हमारे देश में निजी क्षेत्र की ओर से, कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में, निवेश बहुत कम है। अतः सरकारी क्षेत्र के निवेश के साथ साथ, कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र से भी निवेश के बढ़ाए जाने का प्रयास केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। इस हेतु कई निजी क्षेत्र की कम्पनियों को ग्रामीण इलाक़ों में निवेश करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।  

उक्त सुधार कार्यक्रमों सम्बंधी निर्णयों के लागू होने के बाद की उपलब्धियाँ 

बैंकिंग क्षेत्र में उपलब्धियाँ 
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही के समय में लिए गए कई निर्णयों के चलते वित्तीय वर्ष 2018-19 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों के खातों में रुपए 121,076 करोड़ की रिकार्ड वसूली की गई है। जिसके परिणामस्वरूप, सकल ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ मार्च 2018 के रुपए 8.96 लाख करोड़ से घटकर मार्च 2019 में रुपए 7.90 लाख करोड़ हो गयीं। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, बैंकों की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में भी अब लगातार कमी देखने में आ रही है। 31 मार्च 2018 को समाप्त वर्ष के अंत में बैंकों की सकल ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ इन बैंकों के कुल ऋणों का 11.2 प्रतिशत थीं, जो 31 मार्च 2019 को घटकर 9.1 प्रतिशत हो गई एवं 30 सितम्बर 2019 को भी 9.1 प्रतिशत पर स्थिर रहीं। यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि बैंकों की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में लगातार 7 वर्षों से वृद्धि हो रही थी। इसी प्रकार बैकों की शुद्ध ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ भी मार्च 2018 में 6 प्रतिशत की तुलना में मार्च 2019 में घटकर 3.7 प्रतिशत हो गईं। 

साथ ही, प्रावधान कवरेज अनुपात भी सुधरकर मार्च 2018 के 62.7 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2019 में 75.3 प्रतिशत हो गया, जो कि पिछले 7 वर्षों के दौरान का सबसे उच्च स्तर है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के अंतिम तिमाही में 18 सरकारी क्षेत्र के बैंकों में से 12 बैंक हानि दर्शा रहे थे एवं केवल 6 बैंक ही लाभप्रद स्थिति में थे। जब कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के प्रथम तिमाही में इन्हीं 18 बैंकों में से 14 बैंक लाभप्रद स्थिति में आ गए हैं एवं केवल 4 बैंकों ने ही हानि दर्शायी है। पिछले 5 वर्षों के दौरान, डिजिटल बैंकिंग के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखने में आ रहा है। आज देश में प्रत्येक दिन करोड़ों की संख्या में डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं। डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से आप अपने घर बैठे ही बैंकिंग व्यवहार कर सकते हैं। इससे न केवल इन बैंकों की उत्पादकता में वृधि हुई है, बल्कि सामान्यजन को बैंकिंग सेवाएँ भी त्वरित गति एवं आसानी से उपलब्ध होने लगी हैं। आज नेट बैंकिंग के माध्यम से किए गए लेनदेन की जानकारी तुरंत मिल जाती है एक स्थान से दूसरे स्थान को राशि का हस्तांतरण, पलक झपकते ही हो जाता है। देश कैश-लेस बैंकिंग सेवाओं की और तेज़ी से बढ़ रहा है। मोबाइल बैंकिंग के बाद तो यह कहा जाने लगा है कि बैंक आपके ज़ेब में है। कई ग्रामीण भी आज मोबाइल बैंकिंग एवं नेट बैंकिंग का इस्तेमाल करने लगे हैं। देश के बैंकों में जन-धन योजना के अंतर्गत कुल 36 करोड़ से अधिक नए जमा खाते खोले गए हैं, इन खातों का एक बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में ही खोला गया है। आज इन खातों में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि जमा हो गई है। एक माह में, जन धन योजना के अंतर्गत, 18 करोड़ जमा खाते खोलने का विश्व रेकार्ड भी भारत के नाम पर ही दर्ज है।

कम्पनियों के निवेश में वृद्धि 
बैकों एवं वित्तीय संस्थानों द्वारा स्वीकृत विभिन्न कम्पनियों की परियोजनाओं की लागत जो वर्ष 2018-19 के चतुर्थ तिमाही में रुपए 37,000 करोड़ की थी वह वर्ष 2019-20 की प्रथम तिमाही में बढ़कर रुपए 46,000 करोड़ एवं द्वितीय तिमाही में और आगे बढ़कर रुपए 80,000 करोड़ की हो गई। यह बढ़ोतरी हवाई अड्डा परियोजनाओं, बिजली क्षेत्र परियोजनाओं, गैस वितरण परियोजनाओं, मेट्रो परियोजनाओं सम्बंधी रुपए 5000 करोड़ से अधिक की लागत वाली परियोजनाओं में विशेष रूप से पाई गई है। 

साथ ही, 30 सितम्बर 2019 को समाप्त प्रथम अर्धवार्षिक अवधि के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की 1500 कम्पनियों के निष्पादन की जब पिछले वर्ष के इसी अवधि के दौरान के निष्पादन से तुलना की गई तो भारतीय रिज़र्व बैंक ने यह पाया है कि इन कम्पनियों की स्थिर संपतियों में निवेश, जिसमें वर्तमान में चालू परियोजनाएँ भी शामिल हैं, इन कम्पनियों के पास उपलब्ध निधियों का 45.6 प्रतिशत हो गया है जो पिछले वर्ष इसी अवधि में मात्र 18.9 प्रतिशत था। 

रियल एस्टेट सेक्टर में भी निवेश में वृद्धि सम्बंधी अच्छी खबर आई है। कैलेंडर वर्ष 2019 में रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश लगभग 9 प्रतिशत बढ़कर रुपए 43,780 करोड़ का हो गया है। ग्लोबल प्रॉपर्टी कंसल्टेंट फर्म कोलियर्स के अनुसार, रियल एस्टेट सेक्टर में हुए कुल निवेश में 46 प्रतिशत यानी रुपए 19,900 करोड़ की हिस्सेदारी ऑफिस प्रॉपर्टी में किए गए निवेश की रही है। एक अनुमान के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2020 में ऑफिस प्रॉपर्टी की माँग में, विशेष रूप से आईटी सेक्टर के माध्यम से, और भी तेजी आने की सम्भावना है। फर्म ने उम्मीद जताई है कि निवेशक आगामी सालों तक कॉमर्शियल ऑफिस प्रॉपर्टी खरीदने में ज्यादा रुचि दिखायेंगे, क्योंकि  कॉमर्शियल ऑफिस प्रॉपर्टी के किराये में आगामी सालों में बढ़ोतरी का अनुमान है।

बैकों के ऋणों में वृद्धि 
ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की संपतियों में भी 13 प्रतिशत की वृद्धि सितम्बर 2018 से सितम्बर 2019 के बीच दृष्टिगोचर हुई है जो रुपए 28.3 लाख करोड़ से बढ़कर रुपए 32 लाख करोड़ तक पहुँच गई है। साथ ही, इन कम्पनियों को प्रदत्त बैंक ऋण की राशि में भी इसी अवधि के दौरान 26.57 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज हुई है।

आईसीआईसीआई बैंक-क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट, “माइनिंग द गोल्ड अपॉर्चुनिटी इन रिटेल लोन” में भी बताया गया है कि धीरे-धीरे गृह ऋण, कार ऋण, एवं पर्सनल ऋण लेने की रफ्तार में वृद्धि हो रही है और मार्च 2024 तक बैंकों और वित्तीय कंपनियों के खुदरा ऋण दोगुना हो जाने की सम्भावना है। एक अनुमान के मुताबिक यह ऋण बढ़कर रुपए 96 लाख करोड़ के हो जाएँगे जो कि मार्च 2019 तक रुपए 48 लाख करोड़ के थे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस वृद्धि में अंतिम निजी उपभोग की अहम भूमिका होगी, जिसमें गृह ऋण, कार ऋण, कंज्यूमर ऋण एवं  क्रेडिट कार्ड आदि ऋणों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। क्योंकि, ऋण लेने में उपभोक्ताओं की दिलचस्पी, ग्राहकों के उपलब्ध आँकड़े, इनके विश्लेषण में सुधार एवं विश्लेषण के परिणाम को  अमल में लाने में आसानी, आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिये सरकार द्वारा उठाये जा रहे सुधारात्मक कदम आदि से खुदरा ऋण की वृद्धि में तेजी आ रही है। वर्तमान में, सरकार गृह ऋण और कुटीर व छोटे उद्योगों को ऋण आसानी से एवं सस्ती ब्याज दरों पर उपलब्ध कराने पर ज़ोर दे रही है। 

विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार वृद्धि 
दिनांक 13 दिसम्बर 2019 को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 45,449 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच गया। दिनांक 20 सितम्बर 2019 के बाद से लगातार 13 सप्ताह से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। दिनांक 14 दिसम्बर 2018 को देश का विदेशी मुद्रा भंडार 39,301 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर था। अर्थात, इस एक वर्ष के दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 6,148 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई है। देश के विदेशी मुद्रा भंडार में पिछले 13 सप्ताहों से लगातार हो रही वृद्धि देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत माना जा सकता है। क्योंकि, देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि कई कारणों के चलते हो सकती है। जैसे, देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक बढ़ रही है, देश के विदेशी व्यापार घाटे में कमी हो रही है, देश का निर्यात बढ़ रहा है, देश का आयात कम हो रहा है, देश के पूँजी बाज़ार में विदेशी निवेश बढ़ रहा है, विदेश में रह रहे भारतीयों द्वारा देश में किए जा रहे विदेशी मुद्रा में प्रेषण की राशि बढ़ रही है, आदि। उक्त वर्णित समस्त कारकों को देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत के तौर पर माना जा सकता है।

देश के शेयर बाज़ार में विदेशी संस्थागत निवेश की राशि वर्ष 2019 में दिनांक 20 दिसम्बर 2019 तक 1,899 करोड़ अमेरिकी डॉलर का आँकड़ा छू चुकी है और यह निवेश की राशि लगातार आगे बढ़ रही है। देश के शेयर बाज़ार में विदेशी संस्थागत निवेश के बढ़ने से शेयर बाज़ार भी अब लगातार नई ऊँचाईयों को छू रहा है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेन्सेक्स 41,000 के आँकड़े को पार करते हुए दिनांक 20 दिसम्बर 2019 को 41,682 के रिकार्ड स्तर पर पहुँच गया। इसी प्रकार, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ़्टी भी 12,200 के स्तर को पार करते हुए दिनांक 20 दिसम्बर 2019 को 12,272 के  रिकार्ड स्तर पर बंद हुआ। उक्त वर्णित सभी कारणों के चलते देश में तरलता की स्थिति में काफ़ी सुधार देखने में आ रहा है। दिनांक 20 दिसम्बर 2019 को भारतीय रिज़र्व बैंक ने तरलता समायोजन सुविधा के माध्यम से रुपए 1,65,300 करोड़ की तरलता को अवशोषित किया। 

रोज़गार के अवसरों में वृद्धि 
देश में रोज़गार के अवसरों में भी वृद्धि देखने में आ रही है। कर्मचारी राज्य बीमा निगम में दर्ज हुए पे-रोल सम्बंधी आँकड़ों के अनुसार, देश में अक्टोबर 2019 माह में 12.44 लाख रोज़गार के अवसर पैदा हुए। जबकि, माह सितम्बर 2019 में 12.23 लाख रोज़गार के अवसर पैदा हुए थे। उक्त आँकड़ों के अनुसार ही वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश में 1.49 करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा हुए थे तथा सितम्बर 2017 से अक्टोबर 2019 के दौरान 3.22 करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा हुए थे।  

यह भी खबर है कि देश का सूचना एवं प्रोद्योगिकी क्षेत्र वित्त वर्ष 2020-21 में पिछले वित्त वर्ष के मुक़ाबले 10 प्रतिशत ज्यादा भर्तियां करेगा। तकनीक क्षेत्र में प्रारंभिक स्तर पर की जारी रही भर्तियों की प्रवृति का विश्लेषण करने से इस बात का खुलासा हुआ है। चालू वित्त वर्ष में 177 अरब डॉलर के सूचना प्रद्योगिकी और कारोबारी प्रबंधन क्षेत्र ने 1.8 लाख लोगों को रोजगार दिया है। एक अनुमान के मुताबिक आगामी वित्त वर्ष में यह क्षेत्र लगभग 2 लाख इंजीनियरों को रोजगार देगा। बेंगलुरु में कर्मचारियों की भर्ती करने वाली एजेंसी एक्सफेनो के अनुसार आने वाले वर्षों मे देश में कर्मचारियों की भर्तियों में वृद्धि जारी रहेगी और इसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी 1 से 5 साल के अनुभव वाले लोगों की होगी और इसमें सबसे ज्यादा योगदान बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारत स्थित प्रोद्योगिकी इकाईयों का रहेगा। एक्सफेनो के मुताबिक विगत 8 से 12  महीनों में लगभग 30 टेक सेवा प्रदाता कंपनियों ने भारत में अपना कारोबार शुरू किया है। देश की शीर्ष 5 आईटी कंपनियों जैसे, टाटा कंसल्टेंसी सर्विस, इंफोसिस, एचसीएल टेक्नोलॉजी, विप्रो और टेक महिंद्रा की तरफ से वित्त वर्ष 2021 में कुल भर्तियों में 40 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी रहने की संभावना है। इन कंपनियों ने चालू वित्त वर्ष में सितंबर 2019 तक के 6 महीनों के दौरान 64,432 कर्मचारियों की भर्ती की है। पिछले साल इसी अवधि में इन कंपनियों ने 54,642 लोगों को रोजगार दिया था। ये कंपनियां कॉलेज कैंपस से इंजीनियर स्नातकों का चयन नौकरी देने के लिये कर रही हैं। 

ग्रामीण एवं कृषि क्षेत्र में तथा अन्य क्षेत्रों में हासिल की गई कुछ उपलब्धियाँ 
पिछले लगभग 6 वर्षों के दौरान केंद्र में मोदी सरकार द्वारा लिए गए विभिन्न निर्णयों के चलते देश के ग्रामीण एवं कृषि के क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्रों में प्राप्त की गई कुछ उपलब्धियों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा रहा है - 
(1) वर्ष 2014 में देश के 70 प्रतिशत ग्रामीण इलाक़ों में बिजली उपलब्ध थी जो 2019 में देश के लगभग समस्त ग्रामीण इलाक़ों में उपलब्ध हो गई है।
(2) वर्ष 2014 में देश के 38 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय उपलब्ध थे जो वर्ष 2019 में लगभग समस्त ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध हो गए हैं। 
(3) वर्ष 2014 तक देश में 13 करोड़ गैस कनेक्शन थे अर्थात 55 प्रतिशत घरों को गैस कनेक्शन मिल पाया था और अब 2019 तक 25 करोड़ से अधिक गैस कनेक्शन हो गए हैं अर्थात देश के 90 प्रतिशत से अधिक घरों को गैस कनेक्शन उपलब्ध हो गया है। 
(4) देश में जन धन योजना के अंतर्गत अब तक 36 करोड़ से अधिक ग़रीब लोगों के बैंक में जमा खाते खुल चुके हैं। एक माह में 18 करोड़ जमा खाते खुलने का भी एक विश्व रेकार्ड भारत के नाम पर दर्ज़ हो गया है। 
(5) चीनी उत्पादन में भारतवर्ष विश्व में पहिले पायदान पर पहुँच गया है।
(6) बिजली उत्पादन में भारतवर्ष विश्व में तीसरे स्थान पर पहुँच गया है।
(7) मार्च 2019 को समाप्त वित्तीय वर्ष 2018-19 में, देश में प्रति व्यक्ति आय रुपए 10534 प्रति माह (रुपए 126,406 प्रति वर्ष) हो गयी है। 
(8) भारतवर्ष विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और शीघ्र ही विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर हो रहा है। 
(9) स्टील उत्पादन, मोबाइल उत्पादन एवं टेक्स्टायल उत्पादन में भारतवर्ष विश्व में दूसरे नम्बर पर आ गया है। 
(10) ऑटो मार्केट में भारतवर्ष विश्व में चौथे स्थान पर पहुँच गया है।
(11) विश्व बैंक द्वारा व्यापार में सुगमता के मापदंड पर विश्व के समस्त देशों की रैंकिंग सूची जारी की जाती है। भारत की रैंकिंग इस मापदंड पर वर्ष 2014 में 142वें स्थान पर थी जो वर्ष 2019 में सुधर कर 63वें स्थान पर हो गयी है। और, अब भारतवर्ष 50वें स्थान के अंदर आने का भरपूर प्रयास कर रहा है। 
(12) अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने पिछले तीन साल में बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में सबसे कम क़र्ज़ लिया है।
(13) वर्ष 1947 में देश में केवल 21,000 किलो मीटर का नैशनल हाइवे उपलब्ध था, जो 67 साल बाद वर्ष 2014 में बढ़कर मात्र 92,851 किलो मीटर का ही हो पाया था। जब कि, अगले 4 सालों यानी वर्ष 2018 में बढ़कर 120,000 किलो मीटर से अधिक हो गया है। 
(14) वर्ष 2013-14 में देश में सिर्फ़ 3.8 करोड़ लोगों ने आय कर रिटर्न जमा किया था। जबकि वर्ष 2017-18 में 6.86 करोड़ लोगों ने आय कर रिटर्न जमा किया, जो 80% ज़्यादा है।    

अंत में यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार द्वारा लिए गए कई उक्त वर्णित साहसिक निर्णयों का कारण देश की अर्थव्यवस्था में विकास की गति शीघ्र ही तेज़ होगी एवं भारत की अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2024-25 तक 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा तथा आने वाले समय में भारत विश्व में अमेरिका एवं चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।