कच्चे
तेल की क़ीमतों
में हो रही भारी
कमी का भारतीय
अर्थव्यवस्था
पर प्रभाव
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में 30 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई है,जिसका फायदा अब आम भारतीयों को भी मिलने लगा है। भारत में भी पेट्रोल और डीजल की क़ीमतों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. तेल निर्यातक देशों के समूह ओपेक द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती कर बाजार में संतुलन बनाने के लिए रूस को मनाने में विफल रहने के बाद ओपेक के प्रमुख सदस्य देश सऊदी अरब ने सस्ते दाम पर तेल बेचने का फैसला लिया है जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम काफी नीचे आ गए हैं। सऊदी अरब बाजार में अपनी हिस्सेदारी बनाए रखना चाहता है। वर्ष 1991 के बाद से कच्चे तेल की कीमतों में यह सबसे बड़ी गिरावट मानी जा रही है।
भारत कच्चे तेल की अपनी कुल आवश्यकता का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा विदेशों से आयात करता है। स्पष्टतः जब भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों में भारी उतार चढ़ाव होता है तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। विदेशी व्यापार का चालू खाता घाटा एवं केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा पर इसका असर साफ़ देखने में आता है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में यदि कच्चे तेल की क़ीमत केवल एक डॉलर से बढ़ जाए तो भारत को 10,000 डॉलर का अतिरिक्त भुगतान करना होता है। एक अप्रेल 2019 से जनवरी 2020 तक के आँकड़े बताते हैं कि भारत ने 617,344 करोड़ रुपए का कच्चा तेल आयात किया है जो 8770 करोड़ अमेरिकी डॉलर का होता है। इस प्रकार कच्चे तेल की क़ीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था को बहुत बड़े स्तर पर प्रभावित करती हैं। हाल ही में तो कच्चे तेल की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में 30/35 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई है। यह भारत के लिए अच्छेप्रभाव वाली बात तो है परंतु एक चिंता की बात भी है किहमारा रुपया लगातार कमज़ोर होता जा रहा है। आज रुपए की क़ीमत एक अमेरिकी डॉलर की तुलना में लगभग 74 रुपए पर पहुँच गई है। एक तरफ़ तो भारत को कच्चे तेल की क़ीमतों में आई कमी का फ़ायदा मिला है वहीं दूसरी ओर रुपया कमज़ोर होने से भारत को अमेरिकी डॉलर ख़रीदने के लिए अधिक रुपए का भुगतान करना पड़ रहा है क्योंकि अंतर राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चा तेल ख़रीदने के लिए भुगतान अमेरिकी डॉलर में ही करना होता है।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतें सामान्यतः माँग-आपूर्ति की स्थिति पर निर्भर करती हैं। हालाँकि यह भौगोलिक और राजनीतिक स्थितियों के चलते भी पूर्व में कई बार प्रभावित हुई हैं। हाल ही में कच्चे तेल की क़ीमतें तेज़ी से नीचे गिरी हैं वह मुख्यतः विश्व के कई देशों में फैले कोरोना वाइरस के कारण गिरी है। कोरोना वाइरस एक ट्रिगर बिंदु था। परंतु
साथ ही ओपेक की हाल ही में सम्पन्न हुई मीटिंग के बाद रूस ने अपना उत्पादन कम करने से जब मना कर दिया तो ओपेक के प्रमुख सदस्य देश सऊदी अरब ने भी कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने की घोषणा कर दी। अब सऊदी अरब अंतरराष्ट्रीय
बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। रूस और सऊदी अरब कच्चे तेल के बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी एक दूसरे से अधिक रखना चाह रहे हैं। दूसरी ओर, अमेरिका में चूँकि चुनाव का वक़्त है और वहाँ की कच्चे तेल की मुख्य उत्पादक कम्पनी शैल का उत्पादन लगातार बढ़ाया जा रहा है ताकि अमेरिका से कच्चे तेल का निर्यात बढ़ सके। परंतु रूस, अमेरिका से कच्चे तेल के निर्यात का बढ़ना पसंद नहीं कर रहा है। कच्चे तेल की क़ीमत अंतरराष्ट्रीय
बाज़ार में जब 40 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहेगी तब ही अमेरिका की शैल कम्पनी लाभ की स्थिति बनाए रख सकेगी, अन्यथा उसे नुक़सान होने लगेगा। अतः रूस की कोशिश है कि अमेरिका की शैल कम्पनी को ठप्प करे ताकि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय
बाज़ार में तेल का निर्यात नहीं कर सके और इस प्रकार रूस के लिए अंतरराष्ट्रीय
बाज़ार में एक और प्रतिस्पर्धी
खड़ा न हो सके। यदि ऐसा हो जाता है तो अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प अपना चुनाव हार सकते हैं। अतः वह ऐसा होने देना नहीं चाहते। कुल मिलाकर, रूस का राजनैतिक एजेंडा, सऊदी अरब का अपना एजेंडा, कोरोना वाइरस के चलते चीन में कच्चे तेल की माँग में आई भारी कमी, अमेरिका की कोशिश कि तेल का उत्पादन बढ़े और भारत व चीन उससे तेल ख़रीदें, ऐसे कारण एक साथ बन पड़े हैं कि अंतरराष्ट्रीय
बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें तेज़ी से गिरीं हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतों का बहुत ज़्यादा कम होना भारत के लिए भी अच्छा नहीं है। आज दरअसल वैश्विक स्तर पर लगातार बढ़ते व्यापार के चलते सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएँ आपस में जुड़ सी गई हैं। यदि अगले एक वर्ष अथवा 6 माह तक कच्चे तेल की क़ीमतें इसी स्तर पर बनी रहती हैं तो विशेष रूप से गल्फ़ देशों की अर्थ व्यवस्थाएँ यथा, आबूधाबी, ओमान, सऊदी अरब, कुवैत, दुबई आदि परेशानी में आ जाएँगी। इन देशों में एक करोड़
से अधिक भारतीय काम करते हैं और इन देशों में कार्य कर रहे भारतीय प्रतिवर्ष
4000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा भारत में भेजते हैं। इसके साथ ही, भारत से सॉफ़्टवेयर के अलावा कई अन्य प्रोजेक्ट भी इन सभी देशों को निर्यात होते हैं। इस प्रकार भारत के निर्यात भी परेशानी में आ जाएँगे। साथ ही, भारत में बहुत सारे ऐसे फ़ंड हैं जिनमें खाड़ी के देशों द्वारा भारी मात्रा में निवेश किया जाता है। यदि
तेल के दाम लम्बे समय तक बहुत ज़्यादा कम रहेंगे तो खाड़ी के देश भारत में निवेश नहीं कर पाएँगे। अतः कच्चे तेल की क़ीमतें बहुज ज़्यादा कम भी नहीं होनी चाहिए और बहुत ज़्यादा अधिक भी नहीं होनी चाहिए।
भारत में केंद्र सरकार तेल के आयात पर पूर्व निर्धारित स्थिर दर पर इक्साइज़ कर लगाती है जबकि राज्य सरकारें एड-वेलोरम नियम के आधार पर कर लगाते हैं। तेल की दरें कम हों अथवा ज़्यादा परंतु तेल के आयात पर निर्धारित स्थिर दर पर ही (यथा, उदाहरणार्थ 6 रुपए
या 7 रुपए प्रति लीटर ही लगेगा) इक्साइज़ कर लगेगा परंतु राज्यों में तेल की क़ीमतों के अनुसार यह घटता बढ़ता रहता है। अतः केंद्र सरकार को इक्साइज़ कर के संग्रह में तेल के भाव में कमी का कोई असर नहीं पड़ेगा। अब केंद्र सरकार इस स्थिति का लाभ भी उठा सकती है। चूँकि तेल के दाम लगातार कम हो रहे हैं तो केंद्र सरकार इक्साइज़ कर बढ़ाकर अपना टैक्स संग्रह, बिना सामान्यजन को प्रभावित किए, बढ़ा सकती है ताकि राजकोषीय घाटे को कम किया जा सके। अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर कच्चे तेल में आई भारी गिरावट इस प्रकार देश को फ़ायदा दे सकती है। केंद्र सरकार ने कच्चे तेल के आयात पर हाल ही में इक्साइज़ कर में वृद्धि कर दी है।
लम्बी अवधि में विकसित देशों में तेल की खपत बढ़ने की सम्भावना कम है। परंतु, भारत में आर्थिक विकास की गति आने वाले समय में तेज़ होने की सम्भावना के चलते कच्चे तेल की माँग में वृद्धि होने की सम्भावना बनी हुई है। फिर भी, चूँकि जलवायु परिवर्तन के कारण जीवाश्म ईंधन की खपत सभी देशों को घटानी है जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की माँग में वृद्धि की सम्भावना कम ही है अतः आगे आने वाले समय में कच्चे तेल की क़ीमतों में भारी वृद्धि की सम्भावना भी कम ही है।
2 Comments
Very nice artical
ReplyDeleteYes demand for oil has significantly fallen due to coronavirus pandemic. Also issues between Russia and Saudi Arabia have contributed.
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