देश की अर्थव्यवस्था को आत्म निर्भर बनाने के लिए अपनाना होगा स्वदेशी मॉडल    



परम पूज्यनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने  दिनांक 26 अप्रेल 2020 को देश में वर्तमान विशिष्ट परिस्थितियों के बीच सम्बोधित करते हुए कहा था कि अब चूँकि कोरोना वायरस महामारी की समाप्ति के बाद नए सिरे से देश में आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत होगी तो क्यों न इन गतिविधियों को एक नए मॉडल के तहत प्रारम्भ किया जाए। इस महामारी के चलते देश के शहरों से बहुत बड़ी संख्या में श्रमिक वर्ग के लोगों ने गावों की ओर पलायन किया है। अब जब आर्थिक गतिविधियाँ पुनः प्रारम्भ होंगी तो ज़रूरी नहीं कि ये सभी लोग गावों से शहरों की ओर लौट जाएँ। सम्भव है इनमे से बहुत सारे लोग गावों में ही रह जाएँगे। इन्हें यहाँ रोज़गार के अवसर किस प्रकार उपलब्ध कराए जा सकते हैं, इस बात पर विचार करना आवश्यक है। “स्वदेशी” मॉडल को अपनाकर देश में ग़रीब वर्ग की आर्थिक समस्यायों का निदान सफलतापूर्वक किया जा सकता है। 


वहीं दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने दिनांक 12 मई 2020 को  देश को सम्बोधित करते हुए अपने उदबोधन में कहा था कि हम पिछली शताब्दी से लगातार सुनते आ रहे हैं कि 21वीं सदी भारत की है। कोरोना संकट के बाद भी दुनिया में जो स्थितियाँ बन रही हैं उसे भी हम निरंतर देख रहे हैं। यदि हम इस नज़रिए से देखें तो 21वीं सदी भारत की हो यह हमारा सपना ही नहीं बल्कि अब यह हम सभी की ज़िम्मेदारी भी है। इसका मार्ग क्या है। इसका मार्ग एक ही है और वह है आत्मनिर्भर भारत। एक राष्ट्र के रूप में आज हम बहुत अहम मोड़ पर खड़े हैं। इतनी बड़ी आपदा भारत के लिए एक संकेत लेकर आई है, एक संदेश लेकर आई है और एक अवसर लेकर आई है। कोरोना वायरस महामारी हमें स्वावलंबी बनने का संदेश देकर जा रही है। हमारी परम्परा भी इसी प्रकार की रही है। अतः हमें स्वावलंबी बनने के लिए हर हाल में स्वदेशी को अपनाना ज़रूरी है। 


उपरोक्त वर्णित दोनों संदेश एक तरह से आपस में जुड़े हुए हैं। एक संदेश में भारत में आर्थिक प्रगति के लिए अब नए मॉडल को अपनाने की बात कही जा रही है तो दूसरे संदेश में आत्म निर्भर भारत की बात की जा रही है। भारत, आत्म निर्भर तभी बन सकेगा जब आर्थिक रूप से सशक्त देश बन जाएगा।


भारत को दरअसल कई क्षेत्रों में आत्म निर्भरता हासिल करनी है। वर्तमान में कई तरह के उत्पाद जो देश में ही आसानी से निर्मित किए जा सकते हैं, उनका आयात भी हम चीन से करने लगे हैं। जैसे, बच्चों के लिए खिलौने, बिजली का सामान, दवाईयों के लिए कच्चा माल, भगवान की मूर्तियाँ, कृत्रिम फूल, आदि। यदि इस तरह की वस्तुओं का चीन से आयात बंद कर भारत में ही पुनः निर्माण होने लगे तो देश में ही रोज़गार के करोड़ों अवसर पैदा किए जा सकते हैं। भारत के आत्म निर्भर बनने से सबसे अधिक लाभ कृषि तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को होने वाला है। देश की जनता को भी भारत को आत्म निर्भर बनाने में अपना पूरा सहयोग देना अब ज़रूरी हो गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स सामान सहित चीन में निर्मित समस्त वस्तुओं के उपयोग पर स्वतः अंकुश लगाना भी अब आवश्यक हो गया है। जब भारतीय नागरिक ही इन उत्पादों का उपयोग बंद कर देंगे तो किस प्रकार चीन में निर्मित सामान का आयात हो सकेगा। 


चीन से आयात की जाने वाली बहुत सी वस्तुएँ इस श्रेणी की हैं कि इनका निर्माण भारत के गावों में कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित कर बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है। दरअसल, कुटीर एवं लघु उद्योंगों के सामने सबसे बड़ी समस्या अपने उत्पाद को बेचने की रहती है। इस समस्या का समाधान करने हेतु एक मॉडल विकसित किया जा सकता है, जिसके अंतर्गत लगभग 100 ग्रामों को शामिल कर एक क्लस्टर (इकाई) का गठन किया जाय। 100 ग्रामों की इस इकाई में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना की जाय एवं उत्पादित वस्तुओं को इन 100 ग्रामों में सबसे पहिले बेचा जाय। सरपंचो पर यह ज़िम्मेदारी डाली जाय कि वे इस प्रकार का माहौल पैदा करें कि इन ग्रामों में निवास कर रहे नागरिकों द्वारा इन कुटीर एवं लघु उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग किया जाय ताकि इन उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं को आसानी से बेचा जा सके। तात्पर्य यह है कि स्थानीय स्तर पर निर्मित वस्तुओं को स्थानीय स्तर पर ही बेचा जाना चाहिए। ग्रामीण स्तर पर इस प्रकार के उद्योगों में शामिल हो सकते हैं - हर्बल सामान जैसे साबुन, तेल आदि का निर्माण करने वाले उद्योग, चाकलेट का निर्माण करने वाले उद्योग, कुकी और बिस्कुट का निर्माण करने वाले उद्योग, देशी मक्खन, घी व पनीर का निर्माण करने वाले उद्योग, मोमबत्ती तथा अगरबत्ती का निर्माण करने वाले उद्योग, पीने की सोडा का निर्माण करने वाले उद्योग, फलों का गूदा निकालने वाले उद्योग, डिसपोज़ेबल कप-प्लेट का निर्माण करने वाले उद्योग, टोकरी का निर्माण करने वाले उद्योग, कपड़े व चमड़े के बैग का निर्माण करने वाले उद्योग, आदि इस तरह के सैंकड़ों प्रकार के लघु स्तर के उद्योग हो सकते है, जिनकी स्थापना ग्रामीण स्तर पर की जा सकती है। इस तरह के उद्योगों में अधिक राशि के निवेश की आवश्यकता भी नहीं होती है एवं घर के सदस्य ही मिलकर इस कार्य को आसानी सम्पादित कर सकते हैं। परंतु हाँ, उन 100 ग्रामों की इकाई में निवास कर रहे समस्त नागरिकों को उनके आसपास इन कुटीर एवं लघु उद्योग इकाईयों द्वारा निर्मित की जा रही वस्तुओं के उपयोग को प्राथमिकता ज़रूर देनी होगी। इससे इन उद्योगों की एक सबसे बड़ी समस्या अर्थात उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं को बेचने सम्बंधी समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकेगा। देश में स्थापित की जाने वाली 100 ग्रामों की इकाईयों की आपस में प्रतिस्पर्धा भी करायी जा सकती है जिससे इन इकाईयों में अधिक से अधिक कुटीर एवं लघु उद्योग स्थापित किए जा सकें एवं अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर निर्मित किए जा सकें। इन दोनों क्षेत्रों में राज्यवार सबसे अधिक अच्छा कार्य करने वाली इकाईयों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्रदान किए जा सकते हैं। इस मॉडल की सफलता सरपंचो एवं इन ग्रामों में निवास कर रहे निवासियों की भागीदारी पर अधिक निर्भर रहेगी।       


अतः “स्वदेशी” मॉडल की शुरुआत ही इस प्रकार की हो कि भारत आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर बन सके। उदाहरण के तौर पर यदि देश के ग्रामीण इलाक़ों में ही कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना की जाएगी तो ग्रामीण आबादी के लिए ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अत्यधिक अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं। परंतु, इसकी सफलता के लिए देश के नागरिकों को भी भरपूर सहयोग करना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम सभी मिलकर आज यह प्रण लें कि विदेश में उत्पादित सामान का उपयोग नहीं करेंगे और केवल देश में निर्मित उत्पादों का ही उपयोग करेंगे तो देश के ग्रामीण इलाक़ों में कुटीर उद्योग पनप जायेगा। इससे ग्रामीण इलाक़ों में ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे एवं इन इलाक़ों से नागरिकों का शहरों की ओर पलायन रुकेगा। धीरे धीरे, इन उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार आएगा, इनकी उत्पादकता में वृद्धि होगी एवं इनकी उत्पादन लागत कम होती जाएगी। जिसके चलते, ये उत्पाद हमें सस्ती दरों पर उपलब्ध होने लगेंगे।    


साथ ही, देश के आर्थिक विकास को किस प्रकार आँका जाय इस पर भी आज विचार किए जाने की आवश्यकता है। आजकल आर्थिक प्रगति को सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि से आँका जाता है, जो अपने आप में सही आँकलन नहीं है। दरअसल, किसी भी देश की आर्थिक नीतियों की सफलता का पैमाना, वहाँ के समस्त नागरिकों में ख़ुशी का संचार, ही होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति सामान्यतः ख़ुशी तभी प्राप्त कर सकता है जब उसकी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो जाती हो। शुरुआती दौर में तो रोटी, कपड़ा और मकान की प्राप्ति ही सामान्य जन को ख़ुश रख सकती है। परंतु यह अंतिम ध्येय नहीं हो सकता है। राष्ट्र तेज़ी से तरक़्क़ी करे एवं सम्पूर्ण विश्व में एक आर्थिक ताक़त बन कर उभरे तथा इसके नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय में तीव्र गति से वृद्धि हो, इन लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ साथ भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद दोनों में समन्वय स्थापित करना भी आवश्यक है। अतः आर्थिक प्रगति का पैमाना सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ प्रसन्नचित मानव सूची (हैपी ह्यूमन इंडेक्स) को भी बनाया जाना चाहिए। देश के शासकों का मुख्य उद्देश्य अंततः देश में निवास कर रहे लोगों की ख़ुशी में वृद्धि होने का भी होना चाहिए। अतः प्रसन्नचित मानव सूची को भी नापा जाना चाहिए जिससे पता चले कि देश के कितने नागरिक सरकार की वर्तमान नीतियों से ख़ुश है। इस प्रकार की सूची (इंडेक्स) को भूटान देश में बहुत सफलता के साथ लागू किया गया है।


विश्व के सामने आज भारत का मूल चिंतन आशा की एक किरण के रूप में नज़र आता है। भारत की संस्कृति और भारत के संस्कार उस आत्मनिर्भरता की बात करते हैं जिसकी भावना विश्व एक परिवार के रूप में रहती है। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है तो आत्म केंद्रित आत्मनिर्भरता की वकालत नहीं करता बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख सहयोग और शांति की चिंता होती है। जो संस्कृति, जीव मात्र का कल्याण  चाहती हो, जो संस्कृति पूरे विश्व को परिवार मानती हो, ऐसी सोच रखती हो, जो पृथ्वी  को अपनी माँ मानती हो, वो संस्कृति जब आत्मनिर्भर बनती है तो उससे एक सुखी विश्व की भावना भी बलवती होती है और इसमें विश्व की प्रगति भी समाहित रहती है। 


अंत में यह कहा जा सकता है कि संकट के इस समय में देश में स्थानीय विनिर्माण, स्थानीय बाज़ार, स्थानीय सप्लाई चैन का महत्व अब देश में सभी नागरिकों को समझ में आया है। इस आपदा में स्थानीय उत्पादों ने ही हमारी माँग पूरी की है एवं स्थानीय उत्पादों ने ही हमें बचाया है। अतः स्थानीय उत्पादों को आगे बढ़ाने की अब हम सभी भारतीयों की ज़िम्मेदारी है। स्थानीय उत्पादों को हमें ही अब वैश्विक स्तर पर ले जाना होगा। आज हर भारतवासी को अपने स्थानीय उत्पाद के लिए वोकल बनने की ज़रूरत है। अर्थात, न केवल स्थानीय उत्पाद ख़रीदने हैं बल्कि उनका गर्व से प्रचार प्रसार भी करना आवश्यक है। हमारे देश के नागरिक ऐसा कर सकते हैं। क्योंकि, पूर्व में भी जब जब माननीय प्रधान मंत्री महोदय ने देश का आहवान किया है, देश की जानता ने उनके आहवान को पूरा किया है। और फिर आज तो भारत को विश्व में आर्थिक रूप से सम्पन्न देश बनाने की बात की जा रही है ताकि देश को सभी क्षेत्रों में आत्म निर्भर बनाया जा सके। अतः देश के नागरिक उक्त उद्देश्य की पूर्ति हेतु अपना जी जान लगा देंगे, ऐसी आशा की जानी चाहिए।