अमर शहीद हेमू कालाणी में राष्ट्रवाद की भावना का संचार बचपन में ही हो गया था


इतिहास गवाह है कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में वीर सेनानियों ने, मां भारती को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से,  देश के कोने कोने से भाग लिया था। इन वीर सेनानियों में से भारत के कई वीर सपूतों ने तो मां भारती के श्री चरणों में अपने प्राण भी न्योशावर कर दिए थे। भारत के इन्हीं वीर सपूतों में अमर शाहीद श्री हेमू कालाणी का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है क्योंकि उन्हें बहुत ही कम उम्र, मात्र 19 वर्ष की आयु में दिनांक 21 जनवरी 1943 को क्रूर अंग्रेजी शासन द्वारा फांसी दे दी गई थी।  


दिनांक 23 मार्च 1923 को श्री हेमू कालाणी का जन्म सिन्ध प्रांत के सक्खर जिले में सवचार स्थान पर श्री पेसूमल जी कालाणी एवं माता श्रीमती जेठी बाई कालाणी के घर पर हुआ था। श्री हेमू कालानी बचपन में ही सर्वगुण संपन्न व होनहार बालक थे, जो अपनी पढ़ाई लिखाई में तेज तर्रार होने के साथ साथ एक अच्छे तैराक, तीव्र साईकिल चालक तथा अच्छे धावक भी थे। वह कई बार तैराकी में भी कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके थे। बचपन में ही श्री हेमू कालाणी “स्वराज्य सेना” नामक छात्र संगठन में सम्मिलित होकर इस संगठन के नेता बन गए थे। इन सभी विशेषताओं के ऊपर, श्री हेमू कालाणी अपने बचपन काल से ही राष्ट्रवाद की भावना से भी ओतप्रोत थे एवं प्रारम्भ में केवल 7 वर्ष की आयु में ही तिरंगा झंडा लेकर उसे लहराते हुए अंग्रेजों की बस्ती में अपने साथियों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे। इसके बाद तो श्री हेमू कालाणी ने अंग्रेजों की क्रूर हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प ही ले लिया था और राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रियाकलापों में भी भाग लेना शूरू कर दिया था। अत्याचारी अंग्रेजों द्वारा संचालित सरकार के विरुद्ध छापामार गतिविधियों में भाग लेकर उनके वाहनों को जलाने में श्री हेमू कालाणी अपने साथियों का नेतृत्व भी करने लगे थे। यह भी एक अजीब संयोग ही कहा जाएगा कि श्री हेमू कालानी की जन्मतिथी एवं अमर शहीद श्री भगतसिंह जी की पुण्यतिथी एक ही है, अर्थात 23 मार्च।


वर्ष 1942 में मात्र 19 वर्ष की अल्पायु में श्री हेमू कालाणी ने ने “अंग्रेजो भारत छोड़ो” के नारे को पूरे सिंध में गूंजायमान कर दिया था। श्री हेमू कालाणी के अदम्य साहस एवं उत्साह ने तो पूरे सिंधवासियों में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए जोश भर दिया था। श्री हेमू कालाणी द्वारा अपनी किशोरावस्था में ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने का आग्रह सिंधवासियों से किया जाता था एवं उस समय पर भी सिंध प्रांत के नागरिकों में स्वावलम्बन का भाव जगाने का प्रयास श्री हेमू कालाणी द्वारा किया जा रहा था। मां भारती के प्रति तो उनके मन में एक विशेष भाव था एवं अंग्रेजों की हुकूमत उन्हें बिलकुल भी रास नहीं आती थी इसलिए अल्पायु में ही वे सिंधवासियों का आवहान करते नजर आते थे कि वे केवल देश में निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग करें जिससे भारतीय नागरिकों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जा सके। 


अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ मात्र 19 साल की उम्र में श्री हेमू कालाणी ने जो किया, इस पर पूरे देश को आज भी गर्व है। वर्ष 1942 में “करो या मरो”, “अंग्रेजों भारत छोड़ो”, के नारों में एक आवाज श्री हेमू कालाणी की भी थी। सिंध प्रांत के सक्खर शहर में देश की आजादी के लिए कार्य कर रही संस्था “स्वराज्य सेना” के एक युवक ने श्री हेमू कालाणी को यह जानकारी दी कि आजादी के लिए प्रयासरत आंदोलनकारियों को कुचलने और उनका दमन करने के लिए रोहड़ी (सिंध) से अंग्रेज सैनिकों एवं हथियारों से भरी एक विशेष रेलगाड़ी सक्खर से होकर बलूचिस्तान की ओर जाने वाली है। यह सुनकर श्री हेमू कालाणी और उनके जाबांज साथी रेल ट्रैक पर गए और रेल की पटरी के नट बोल्ट खोलने लगे, परंतु श्री हेमू कालाणी पर अंग्रेज सिपाहियों की नजर पड़ गई और उसे पकड़कर लिया गया कर फिर जेल भेज दिया गया। 


आजादी के दीवाने मात्र 19 साल के इस जवान का हौसला ही था कि पकड़े जाने व घोर यातनाओं को सहन करने के बाद भी उसने अंग्रेजों को यह राज नहीं बताया कि पटरियों के नट बोल्ट खोलने में उसके और कौन कौन साथी थे। श्री हेमू कालाणी के हौसले एवं उसकी देश भक्ति के आगे हार कर अंग्रेजों द्वारा 21 जनवरी 1943 को प्रातः सक्खर (सिंध) के केंद्रीय कारागार में श्री हेमू कालाणी को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इससे पूरा देश गमगीन हो गया। देश के युवाओं में बदले का भाव जगा और वे भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो गए एवं इस प्रकार अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन और अधिक तेज हो गया।   


कालांतर में आजादी के मतवाले अमर शहीद श्री हेमू कालाणी को श्रद्धांजलि प्रदान करने के उद्देश्य से श्री हेमू कालाणी जी की माताजी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज के सेनानियों द्वारा स्वर्ण पदक प्रदान कर सम्मानित किया गया था। 14 अक्टोबर 1983 को भारतीय डाक व तार विभाग द्वारा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी की स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया था एवं भारत के संसद भवन में 21 अगस्त 2003 को श्री हेमू कालाणी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। इस प्रतिमा का लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी द्वारा किया गया था। केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों से आग्रह है कि आजादी के दीवाने अमर शहीद श्री हेमू कालाणी का शताब्दी जन्म समारोह (दिनांक 23 मार्च 2022 से 23 मार्च 2023 तक) को, विशाल रूप में मनाया जाकर, यादगार बनाया जाना चाहिए ताकि देश के युवा अमर शहीद श्री हेमू कालाणी के बलिदान से प्रेरणा लेकर समय आने पर मां भारती के लिए अपने प्राण भी न्यौशावर करने को तैयार रहें।