भारत का विश्व को संदेश
दिनांक 27 सितम्बर 2019 को अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र में प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि यह सत्र इसलिए भी विशेष है कि पूरा विश्व महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है। सत्य और अहिंसा का उनका संदेश विश्व की शांति प्रगति और विकास के लिए आज भी प्रासंगिक है। इस जनादेश से निकला संदेश इससे भी ज़्यादा बड़ा है, ज़्यादा व्यापक है और ज़्यादा प्रेरक है। जब एक विकासशील देश दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान सफलता पूर्वक सम्पन्न करता है, सिर्फ़ 5 साल में 11 करोड़ से ज़्यादा शौचलाय बनाकर अपने देशवासियों को देता है, तो उसके साथ बनी व्यवस्थाएँ पूरी दुनिया को एक प्रेरक संदेश देती हैं। जब एक विकासशील देश दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना सफलता पूर्वक चलाता है, 50 करोड़ लोगों को हर साल 5 लाख रुपए तक के मुफ़्त इलाज की सुविधा देता है, तो उसके साथ बनी संवेदनशीलता पूरी दुनिया को एक नया मार्ग दिखाती है। जब एक विकासशील देश दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय समावेशन कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलाता है, सिर्फ़ 5 साल में 37 करोड़ से ज़्यादा ग़रीबों के बैंक खाते खोलता है, तो उसके साथ बनी व्यवस्थाएँ पूरी दुनिया के ग़रीबों में एक विश्वास पैदा करती हैं। एक विसासशील देश अपने नागरिकों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल पहिचान कार्यक्रम चलाया है, उनको बायोमेट्रिक पहचान देता है, उनका हक़ पक्का करता है, भ्रष्टाचार को रोककर क़रीब 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा बचाता है, तो उसके साथ बनी आधुनिक व्यवस्थाएँ पूरी दुनिया के लिए एक नई उम्मीद बनकर आती हैं।
नो मोर सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर भी भारतवर्ष में बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। आने वाले 5 वर्षों में जल संरक्षण को बढ़ावा देने के साथ ही 15 करोड़ घरों को पानी की आपूर्ति से जोड़ने वाले हैं। आने वाले 5 वर्षों में हम अपने दूर दराज़ के गावों में सवा लाख किलोमीटर नई सड़कों का जाल बिछाने वाले हैं। वर्ष 2022 में जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने का पर्व मनाएगा तब तक हम ग़रीबों के लिए 2 करोड़ और घरों का निर्माण करने वाले हैं। विश्व ने भले ही टीबी से मुक्ति के लिए वर्ष 2030 तक का समय तय कर रखा हो लेकिन भारत में वर्ष 2025 तक समस्त नागरिकों को टीबी से मुक्त करने हेतु काम हो रहा है। आख़िर ये सब हम कैसे कर पा रहे हैं। आख़िर भारत में तेज़ी से बदलाव कैसे आ रहा है। भारत हज़ारों वर्ष पुरानी एक महान संस्कृति है, जिसकी अपनी जीवन परम्पराएँ हैं जो वैश्विक सपनों को अपने में समेटे हुए हैं। हमारे संस्कार हमारी संस्कृति जीव में शीव देखती है इसलिए हमारा प्राण तत्व है कि जन-भागीदारी से जन-कल्याण और ये जन-कल्याण भी सिर्फ़ भारत के लिए नहीं जग-कल्याण के लिए हो। जन-कल्याण से जग-कल्याण। और तभी तो हमारी प्रेरणा है सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास। और ये सिर्फ़ भारतीय सीमाओं में सीमित नहीं है। हमारा परिश्रम तो दया-भाव है और ये सिर्फ़ और सिर्फ़ कर्तव्य भाव से प्रेरित है। हमारे प्रयास 130 करोड़ भारतीयों को केंद्र में रखकर हो रहे हैं लेकिन ये प्रयास जिन सपनों के लिए हो रहे हैं वह सारे विश्व के हैं, हर देश के हैं, हर समाज के हैं। प्रयास हमारे हैं परिणाम सभी के लिए हैं। सारे संसार के लिए हैं। मेरा ये विश्वास दिनों दिन तब और भी दृढ़ हो जाता है जब मैं उन देशों के बारे में सोचता हूँ जो विकास की यात्रा में भारत की तरह ही अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। जब मैं उन देशों से उनके सुख दुःख सुनता हूँ, उनके सपनों से परिचित होता हूँ तब मेरा ये संकल्प और भी पक्का हो जाता है कि मैं अपने देश का विकास और भी तेज़ गति से करूँ। जिससे भारत के अनुभव उन देशों के भी काम आ सकें।
आज से 3000 वर्ष पूर्व भारत के महान कवि कनियन पूँगन रनार ने विश्व की प्राचीनतम भाषा तमिल में कहा था कि हम सभी स्थानों के लिए अपनेपन का भाव रखते हैं और सभी लोग हमारे अपने हैं। देश की सीमाओं से परे अपनत्व की यही भावना भारत भूमि की विशेषता है। भारत ने बीते 5 वर्षों में सदियों से चली आ रही विश्व-बंधुत्व और विश्व कल्याण की उस महान परम्परा को मज़बूत करने का काम किया है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा की स्थापना का भी ध्येय रही है। भारत जिन विषयों को उठा रहा है, जिन नए वैश्विक मंचों के निर्माण के लिए आगे आया है उसका आधार वैश्विक चुनौतियाँ हैं, वैश्विक विषय हैं और गम्भीर समस्याओं के समाधान का सामूहिक प्रयास है। अगर इतिहास प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के नज़रिए से देखें तो ग्लोबल वॉर्मिंग में भारत का योगदान बहुत ही कम रहा है लेकिन इसके समाधान के लिए क़दम उठाने वालों में भारत एक अग्रणी देश है। एक और तो हम भारत में 450 GW अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर हमने अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा अलाइयन्स स्थापित करने की पहल भी की हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग का एक प्रभाव यह भी है कि प्राकृतिक आपदाओं की संख्या और उनकी तीव्रता तो बढ़ती ही जा रही है। उनका दायरा और उनके नए नए स्वरूप भी सामने आ रहें हैं। इस स्थिति को देखते हुए ही भारत ने कोईलिशन फ़ोर डिज़ैस्टर रेजिसटेंस इंफ़्रास्ट्रक्चर बनाने की पहल की हैं। दुनिया के देशों को इससे जोड़ने के लिए मैं निमंत्रण देता हूँ। इससे ऐसे आधारभूत संरचना बनाने में मदद मिलेगी जिनसे प्राकृतिक आपदाओं का प्रभाव कम से कम होगा। यूनाइटेड नेशनस शांति स्थापना मिशन में सबसे बड़ा बलिदान अगर किसी देश ने दिया है तो वो देश भारत है। हम उस देश के वासी हैं जिसने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिए हैं। शांति का संदेश दिया है और इसलिए हमारी आवाज़ में आतंक के ख़िलाफ़ दुनिया को सतर्क करने की गम्भीरता भी है और आक्रोश भी। हम मानते हैं कि ये किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की और मानवता की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं। आतंक के नाम पर बनती हुई दुनिया उन सिद्धांतो को ठेस पहुँचाती हैं जिनके आधार पर यूनाइटेड नेशनस का जन्म हुआ और इसलिए मानवता की ख़ातिर आतंक के ख़िलाफ़ पूरे विश्व का एक मत होना, एक जुट होना मैं अनिवार्य समझता हूँ।
आज विश्व का स्वरूप बदल रहा है। 21वीं सदी की आधुनिक तकनीक - सामाजिक जीवन, निजी जीवन, अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, संयोजकता और अंतर राष्ट्रीय सम्बन्धों में सामूहिक परिवर्तन ला रही है। इन परिस्थितियों में एक बिखरी हुई दुनिया किसी के हित में नहीं हैं। ना ही हम सभी के पास अपनी-अपनी सीमाओं के भीतर सिमट जाने का विकल्प है। इस नए दौर में हमें बहु-पार्श्ववाद और संयुक्त राष्ट्र को नई शक्ति एवं नई दिशा देनी ही होगी। 25 साल पहिले भारत के संत आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो, अमेरिका में विश्व धार्मिक संसद के दौरान विश्व को एक संदेश दिया था, सामंजस्य एवं शांति। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए आज भी यही संदेश है, सामंजस्य एवं शांति।
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Fantastic n very elucidative
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