इस लेख के अंग्रेज़ी भाषा में मूल लेखक हैं श्री राजीव सक्सेना, NIC के उप महानिदेशक। इस लेख का हिंदी भाषा में अनुवाद किया है श्री प्रहलाद सबनानी ने। 

भारत सूचना प्रौद्योगिकी में आत्म निर्भर कैसे बनें 

चीन के उत्पादों ने भारतीय बाज़ार में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों को बाज़ार से बाहर करते हुए जिस प्रकार अपना स्थान बनाया है एवं जिसके चलते देश में बेरोज़गारी की दर बढ़ी है, यह भारत के लिए एक सबक़ है। यह सब यूपीए सरकार के शासनकाल में प्रारम्भ हुआ जब निम्न गुणवत्ता की वस्तुएँ सस्ते दामों पर भारतीय बाज़ारों में आसानी से आने लगीं। अब, जब सरकारी सहायता से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग वापिस अपनी पटरी पर आ रहा है, तब यह उम्मीद की जानी चाहिए कि चीन से सस्ती और कम गुणवत्ता वाली वस्तुओं के आयात को भारत में आने से रोका जा सकेगा। ऊर्जा क्षेत्र, विशेष रूप से तेल एवं सौर ऊर्जा क्षेत्रों में तो चीन से आयातित वस्तुओं की भरमार रहती है। ऑटो मोबाइल क्षेत्र की भी लगभग यही स्थिति है। 

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सम्बंधी नियमों में अभी हाल ही में बदलाव किया गया है ताकि चीन से विदेशी निवेश को विशेष रूप से, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र में, नियंत्रित किया जा सके ताकि यह स्वदेशी उत्पादों को हानि नहीं पहुँचा सके। भारतीय स्टार्ट-अप, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में, हाल ही के समय में बहुत बुरे दौर से गुज़रा है। गेटवे हाउस नामक एक संस्था, जो वैश्विक सम्बन्धों पर भारतीय परिषद के साथ जुड़ा हुआ संगठन है, ने हाल ही में प्रकाशित अपने एक प्रतिवेदन में यह आँकलन दिया है कि चीन ने भारत में 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश प्रौद्योगिकी क्षेत्र के भारतीय स्टार्ट अप कम्पनियों में किया है। अतः भारत सरकार द्वारा अभी हाल ही में इस सम्बंध में अपने विदेशी निवेश सम्बंधी नियमों को कड़ा कर दिया गया है। 

20 वर्ष पूर्व चीनी सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग केवल शुरुआती दौर में ही था परंतु कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी कम्पनियों के, विशेष रूप से कोलम्बिया में, सफल प्रवेश करने के बाद भारतीय कम्पनियों ने चीन को सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में शिक्षा प्रदान कर सहायता प्रदान करना प्रारम्भ कर दिया था। टीसीएस, एनआइआइटी, एवं एपटेक तथा अन्य कई सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों ने तो बाक़ायदा सूचना प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण केन्द्र ही खोल दिए थे। यह बाद में चीन के लिए एक बहुत ही सफल कहानी साबित हुई। इसके बाद तो चीन ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत तेज़ी से प्रगति की। ऐसा शायद भारतीय कम्पनियों ने सोचा भी नहीं था। इसके चलते कई भारतीय कम्पनियाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीनी कम्पनियों की तुलना में असफल साबित हुईं। चीन ने अपने देश की कई कम्पनियाँ बहुत ही अल्प समय में वैश्विक स्तर पर खड़ी कर लीं। जैसे कि, अलीबाबा, आदि जिसने बहुत कम समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी और वैश्विक स्तर पर एक विशाल कम्पनी बन गई। 

भारत की कुल 30 यूनिकोंन कम्पनियों में से 18 कम्पनियों में चीन की कम्पनियों का निवेश है। यूनिकोंन कम्पनी उस स्टार्ट-अप कम्पनी को कहते हैं जिसका बाज़ार मूल्य 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक होता है। फ़रवरी 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 92 मुख्य स्टार्ट-अप कम्पनियों में चीन का निवेश भी शामिल है। चीन ने भारत की इन कम्पनियों मुख्यतः अलीबाबा, टेनसेंट एवं बाईटडान्स जैसी कम्पनियों के माध्यम से सामरिक निवेश किया है। 

अकेले अलीबाबा समूह का ही पेटीएम.कॉम में 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर, बिग-बास्केट में 25 करोड़ अमेरिकी डॉलर, पेटीएममाल में 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर, जोमाटो में 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर, एवं स्नैपडील में 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर का सामरिक निवेश है। इसी प्रकार चीन की एक अन्य टेनसेंट होल्डिंग नामक एक कम्पनी ने भी भारतीय स्टार्ट अप कम्पनियों में भारी निवेश किया है जैसे बाईज़ू में 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर, ड्रीम11 में 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर, फ़्लिपकार्ट में 30 करोड़ अमेरिकी डॉलर, हाइक मेस्सेंजर में 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर, ओला में 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं स्विगी में 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश किया है। ड्रीम11 विभिन प्रकार के खेलों यथा क्रिकेट, फ़ुट्बॉल, बास्केटबाल, क़ब्बडी, हॉकी, वॉलीबॉल एवं बेस्बॉल आदि के लिए कपोल कल्पित खेल (एक तरह का जुआ) का एक प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध कराता है। यह एक ऑनलाइन खेल है जिसके अंतर्गत इसको उपयोग करने वालों द्वारा वास्तविक जीवन के खिलाड़ियों की एक आभासी टीम का गठन कर खेल खेला जाता है एवं इन विभिन्न टीमों द्वारा अंक अर्जित किए जाते हैं। इस प्रकार चीन ने सामरिक तरीक़े से चुपचाप भारत में शिक्षा, खुदरा व्यापार, आभासी खेल, संदेश सेवा, यात्रा, वितरण आदि क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष रूप में भारी निवेश कर लिया है। 

उक्त सभी क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। हालाँकि उक्त वर्णित निवेश बड़े भारी निवेश नहीं हैं एवं किसी कम्पनी का नियंत्रण प्राप्त करने के लिए काफ़ी नहीं हैं परंतु फिर भी यह देश के लिए एक ख़तरा तो बन ही सकते हैं। चीन किस प्रकार विश्व के देशों में अपनी कम्पनियों के माध्यम से सामरिक निवेश कराकर क़पटी रूप के उपनिवेशवाद,जिसमें सामाजिक उपनिवेशवाद, सांस्कृतिक उपनिवेशवाद एवं अवधारणात्मक उपनिवेशवाद भी शामिल है, को बढ़ावा दे रहा है। जो कि अपने आप में भयावह भी दिखता है। 

चीन की, टिकटोक एप के माध्यम से भी, भारत में उपस्थिति है। टिकटोक एप को भारत में 20 करोड़ से अधिक लोग उपयोग कर रहे हैं जो कि यूट्यूब एप का उपयोग करने वाले लोगों से भी अधिक है। टिकटोक एप को बीजिंग स्थिति एक प्रौद्योगिकी कम्पनी बाईटडान्स ने बनाया है। टिकटोक ने हाल ही में भारत में चीन विरोधी भावों को सेन्सर कर दिया था। इससे इन कम्पनियों की चीन के प्रति वफ़ादारी सिद्ध होती है। भारत को इस तरह की कम्पनियों से सावधान रहने की आवश्यकता है। ये कम्पनियाँ भारत के हितों एवं भारत की संस्कृति को भविष्य में नुक़सान पहुँचा सकती हैं। एचडीएफसी का उदाहरण भी यहाँ दिया जा सकता है। इस भारतीय बैंक में चीनी कम्पनियों का 1.08 प्रतिशत का निवेश है और जिसे वे बढ़ाना चाह रहे थे। किन्तु, भारत ने चीन का इरादा भांपकर तुरंत विदेशी निवेश सम्बंधी नियमों को कढ़ा कर दिया। भारत को इस मामले में और अधिक सजग रहने की ज़रूरत है। 

इसी प्रकार ज़ूम एप भी आज विश्व में सबसे अधिक प्रसिद्ध वीडीओ कोनफरेंसिंग कम्पनी बन गई है। ज़ूम एप चीन का वीडीओ कोनफरेंसिंग एप है। कम्पनी के त्रैमासिक आय पत्रक के अनुसार, 2020 की एक तिमाही में इस कम्पनी द्वारा सबसे अधिक आय अर्जित की गई है। क्योंकि इस प्लेटफ़ॉर्म पर, कोरोना महामारी के चलते, घरों में बैठकर कार्य करने के दौरान मीटिंग करने हेतु, इस एप का अत्यधिक उपयोग हुआ है। ज़ूम ने फ़रवरी एवं अप्रेल 2020 के बीच 32.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय अर्जित की है। जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान मात्र 12.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय हुई थी। हालाँकि ज़ूम ने यह घोषित नहीं किया है कि इस दौरान कितने नए ग्राहक उनके साथ जुड़े हैं। परंतु, फिर भी एक अनुमान के अनुसार 100,000 से अधिक के-12 स्कूल ज़ूम के साथ जुड़े। 265,400 ऐसे ग्राहक भी जुड़े, जिनके पास 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत थे। यह संख्या पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 354 प्रतिशत अधिक है। कोरोना महामारी के चलते ज़ूम की माँग में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गई है क्योंकि लोगों ने इसे अपनी दिनचर्या में ही जोड़ दिया है। 

ज़ूम के सम्बंध में तो एक विवाद भी खड़ा हो गया है। वीडीयो कॉलिंग सुरक्षा एवं उपयोगकर्ता की निजी गोपनीयता के बारे में अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि ज़ूम एप के माध्यम से हो रही मीटिंग्स के वीडीयो कहीं चीन में इसके सर्वर पर रिकार्ड तो नहीं हो रहे हैं। यदि ऐसा है तो यह एक अत्यधिक गम्भीर विषय है। 

भारत में वीडीयो कोनफ़्रेंसिंग की शुरुआत 15 वर्ष पूर्व हुई थी एवं भारत ने हार्डवेयर पर आधारित वीडीयो कोनफ़्रेंसिंग की शुरुआत की थी। भारत ने मोबाइल वीसी यूनिट्स भी ख़रीदी थीं तथा इन्हें आपातकालीन स्थिति में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता था। इसका सफल उपयोग कच्छ में आए भूकम्प एवं सुनामी साइकल के दौरान किया गया था। परंतु, हम इसे सॉफ़्टवेयर पर आधारित वीडीयो कोनफ़्रेंसिंग, एक व्यक्ति से एक व्यक्ति के बीच, एक व्यक्ति से अनेक व्यक्तियों के बीच, अनेक व्यक्तियों से अनेक व्यक्तियों के बीच, में तब्दील नहीं कर पाए। 

कई विशेषज्ञ सोचते हैं कि व्हाट्सएप, इसे चालू करने वाली कम्पनी, फ़ेसबुक पर एक भार है। इस प्रकार की कई अन्य कम्पनियों को व्हाट्सएप जैसे एप कमाऊ पूत साबित हुए हैं। परंतु फ़ेसबुक के लिए यह एप बहुत अधिक कमाई नहीं कर पा रहा है। फ़ेसबुक का जीयो के साथ गठबंधन शायद इस दिशा में सफल साबित हो एवं व्हाट्सएप प्लैट्फ़ॉर्म बाज़ार स्थल जैसा एक प्लैटफ़ॉर्म साबित हो। व्हाट्सएप के पूरे विश्व में 200 करोड़ उपयोगकर्ता हैं एवं भारत में 45 करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो रोज़ाना इसका उपयोग करते हैं। अभी हाल ही में व्हाट्सएप को इकोनोमिक टाइम्ज़ ब्राण्ड इक्वटी में दूसरा सबसे अधिक भरोसे वाला ब्राण्ड का अवार्ड प्रदान किया गया था एवं पिछले वर्ष लंदन स्थित मार्केट रीसर्च एवं डेटा एनालिटिक्स संस्था यूगव ने भी व्हाट्सएप को द्वितीय स्थान दिया था। यह दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय ही इन कम्पनियों में कार्य करते हुए इस तरह के सॉफ़्टवेयर तैयार करते हैं  परंतु भारत में इनकी टक्कर का एक भी एप नहीं बनाया जा सका है जो पूरे विश्व में छा जाए। 

दुर्भाग्यवश हम भारतीय लोग तकनीकी का केवल इस्तेमाल करने वाले बन गए है। हम अपने ज्ञान का उपयोग इस तरह की एकदम नई कोई भी तकनीक नहीं बना पाए हैं जिसे हम पूर्णतः भारतीय कह सकें। चाहे वह फ़ेसबुक को टक्कर देने की बात हो अथवा टिकटोक को टक्कर देने की बात हो। टिकटोक पूरे विश्व में वर्ष 2018 की प्रथम तिमाही में सबसे अधिक डाउनलोन होने वाला एप था। इसने फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, एवं अन्य कई सामाजिक मीडिया एप को भी पीछे छोड़ दिया है। भारतीय एप में चाहे वह भारतीय टविटर, भारतीय स्नैपडील अथवा भारतीय येल्प हो, इनमे से कोई भी विश्व के प्रथम 21 एप में शामिल नहीं हैं जिन पर गर्व किया जा सके। 

भारत में एक डिजिटल प्रमाणीकरण प्राधिकार सम्पन्न संस्था कार्यरत थी। यह संस्था सरकारी उपयोगकर्ताओं को उनके लेनदेन करने के सम्बंध में डिजिटल पहचान देती थी। यह प्रणाली वर्ष 2013 में हैक हो गई थी। इसे पुनर्जीवित तो कर लिया गया परंतु उस समय यह निर्णय लिया गया कि एनआईसी प्रमाणीकरण प्राधिकार सम्पन्न संस्था को बंद कर दिया जाय। इसके बाद सरकार भी अब अपने डिजिटल प्रमाण पत्र, सम्बंधित निजी संस्थानों से लेने लग गई है। चीन के पास इस क्षेत्र में कार्य करने वाली अनेक संस्थाएँ हैं जैसे Sina Weibo, Tencent Weibe, Renren, PengYou, TencentQQ, Douban, Diandian, Wechat, एवं Jiepang आदि जो चीन में अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। चीन के नागरिकों द्वारा किसी भी वैश्विक सोशल मीडिया साइट्स पर किसी भी प्रकार का उपयोगकर्ता खाता नहीं रखा जा सकता है। इससे चीन सरकार को देश में सामाजिक, राजनैतिक, एवं सांस्कृतिक उथल पुथल को रोकने में बहुत मदद मिलती है। 

अब समय आ गया है कि हम भारत में अपना ऑपरेटिंग सिस्टम स्थापित करें, हमारा अपना टविटर हो, हमारा अपना फ़ेसबुक हो और हमारा अपना इंस्टाग्राम हो। यह निश्चित है कि अब हम इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बने। इस तरह हम अपनी पहचान को बनाए रख पाएँगे एवं किसी विदेशी विचारधारा को हमारे देश पर थोपे जाने से बचा पाएँगे।