भारत एवं चीन मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बना सकते हैं दबदबा
2000 साल पहिले तक भारत और चीन विश्व व्यापार के मुख्य केंद्र थे और विश्व व्यापार में दोनों देशों का अहम योगदान था। आज स्थिति कुछ भिन्न है। विकसित देशों यथा अमेरिका, यूरोप के कई देश एवं जापान आज विश्व व्यापार के केंद्र में हैं। चीन ने तो फिर भी 1980 के दशक के बाद तेज़ हुई विकास दर के साथ विश्व व्यापार में अपने योगदान को बढ़ाया है परंतु भारत का तो आज भी विश्व व्यापार में मात्र दो प्रतिशत का योगदान ही है। भारत एवं चीन की सभ्यताएँ विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक हैं। चीन और भारत के बीच एतिहासिक सम्बंध भी रहे हैं और इनके आपसी व्यापारिक रिश्ते भी कुछ सैकड़ों साल पहिले तक काफ़ी अच्छे रहे है। हाल ही के इतिहास में दोनों देशों के सम्बन्धों में कुछ खटास आई है एवं इनके आपसी रिश्ते बहुत मिठास भरे नहीं रहे हैं। परंतु, दोनों देश आज एक दूसरे के हितों का ख़याल रखते हुए यदि आपस में सम्बंध सुधार लें तो विश्व व्यापार में अपनी खोई हुई महिमा पुनः प्राप्त कर सकते हैं।
चीन का वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद 14 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का है एवं चीन के पास 3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा का भंडार मौजूद है। चीन की विकास दर आज नीचे गिरती जा रही है, जिसके कई कारण हैं, यथा अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में चीन के निर्यात में लगातार कमी आना, आदि। चीन उक्त कारणों के चलते एवं अपने निर्यात में वृद्धि करने के उद्देश्य से आज भारत पर नज़रें गढ़ाए हुए है जहाँ आज 40 करोड़ से अधिक उपभोक्ता का बाज़ार मौजूद है।
चीन यह भी लगातार प्रयास करता रहा है कि वह तो भारतीय बाज़ार में अपनी प्रविशिटि कर ले लेकिन भारतीय उत्पादों को अपने बाज़ार में आसानी से घुसने नहीं दे रहा है। चीन में विनिर्माण क्षेत्र में अत्यधिक तेज़ी से ग्रोथ हुई है एवं सस्ते उत्पादों के चलते चीन ने कई उत्पादों को अन्य देशों के साथ-साथ भारत में भी निर्यात करने में सफलता पाई है। इसके कारण चीन का भारत के साथ विदेशी व्यापार आधिक्य पिछले 10 वर्षों के दौरान 75,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। चीन ने अपना बाज़ार दूसरे देशों के उत्पादों के लिए नहीं खोला है और ना ही अपने विदेशी निवेश को भारत में बहुत बढ़ने दिया है। हालाँकि पिछले वर्ष वुहान अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के बाद चीन ने भारत से ग़ैर-बासमती चावल, कैन्सर से सम्बंधित दवाईयाँ एवं कुछ अन्य उत्पादों के आयात को मंज़ूरी दी है लेकिन वह इतने बड़े विदेशी व्यापार घाटे को पाटने में नाकाफ़ी साबित हुई है।
वर्ष 2014 में चीन के राष्ट्रपति ने अपने भारत दौरे के दौरान घोषणा की थी कि चीन आगे आने वाले 5 वर्षों में भारत में 2,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा। इसके बाद वर्ष 2015 में भारतीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के दौरान चीन के राष्ट्रपति ने यह घोषणा की थी कि चीनी कम्पनियाँ भारत में 3200 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेंगी। परंतु, आज 1000 चीनी कम्पनियाँ भारत में अपना व्यापार कर रही हैं, इनमे से 800 कम्पनियाँ लघु एवं मध्यम श्रेणी की कम्पनियाँ हैं एवं इन सभी कम्पनियों का भारत में निवेश केवल 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ही हो पाया है। इस प्रकार भारत में निवेश सम्बंधी उक्त घोषणाएँ केवल काग़ज़ों पर ही बनी रही हैं। हालाँकि इस बीच भारत में ईज़ आफ डूइंग बिज़िनेस में काफ़ी सुधार हुआ है, परंतु चीन के निवेश में कोई उल्लेखनीय वृद्धि दृष्टिगोचर नहीं हुई है।
आज चीन भारत से यह अपेक्षा कर रहा है कि भारत क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझीदारी का सदस्य बनें। चीन अपने निर्यात को इन सदस्य देशों के बीच बढ़ाना चाहता है। इसमें इंडो-पेसिफ़िक क्षेत्र के देश शामिल किए गए हैं। भारत इस साझीदारी के नियमों में कुछ बदलाव चाहता है ताकि भारत से भी निर्यात को बढ़ावा मिल सके। एक तो सेवा क्षेत्र सम्बंधी नियमों में भारत कुछ परिवर्तन चाहता है दूसरे रोज़गार अवसरों को भी भारत बढ़ाना चाहता है। साथ ही, भारत टेरिफ सम्बंधी अवरोधों को भी दूर कराना चाहता है, जो भारत से आयात के समय चीन द्वारा लगाए जाते हैं। चीन अपनी दो टेलिकॉम कम्पनियों को भी भारत में 5जी क्षेत्र में कार्य करने की अनुमति देने हेतु भारत पर दबाव बना रहा है। जबकि चीन भारत की टेलिकॉम एवं आईटी कम्पनियों को चीन में निवेश करने की इजाज़त नहीं देता रहा है। भारत ने चीन को बता दिया है कि इस सम्बंध में देश हितों को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय लिया जायेगा।
भारत द्वारा चीन को निर्यात किए जा रहे कृषि उत्पादों के निर्यात सम्बंधी नियमों को भारत शिथिल करवाना चाहता है क्योंकि वर्ष 2013-14 के 4320 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निर्यात की तुलना में चीन को कृषि उत्पादों का निर्यात लगातार गिरता जा रहा है। चीन में भारत के कृषि उत्पादों की भारी माँग है लेकिन चीन द्वारा व्यापार अवरोध खड़े किए जाने के कारण इन उत्पादों का निर्यात नहीं हो पाता है। अतः भारत की यह माँग रही है कि चीन को इन व्यापार अवरोधों को हटाना चाहिए।
भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी सत्ता में आने के बाद से विश्व के सभी देशों से मधुर सम्बंध विकसित करने में लगे हुए हैं। इसी कड़ी में चीन के साथ सम्बंध सुधारने की दिशा में भारत के प्रधान मंत्री एवं चीन के राष्ट्रपति के बीच चीन के वुहान नगर में प्रथम अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का आयोजन पिछले वर्ष किया गया था। यह अनौपचारिक सम्मेलन डोकलाम के विवाद के बाद संशय भरे वातावरण में चिंता के बीच हुआ था परंतु उसके बाद से भारत के प्रधान मंत्री एवं चीन के राष्ट्रपति के बीच दर्जन से अधिक बार वैश्विक मंचों पर आपस में चर्चाएँ एवं मुलाक़ातें हुई हैं। अतः चेन्नई में दिनांक 11 एवं 12 अक्टोबर 2019 को आयोजित द्वितीय अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं के बीच वार्ता सभी द्रष्टियों से बहुत ख़ुशनुमा माहौल में हुई हैं। भारत एवं चीन के बीच हो रहे विदेशी व्यापार में भारत के लगातार बढ़ रहे भारी व्यापार घाटे को लेकर भारत में चिंता थी अतः इस असंतुलन को दूर करने हेतु एक तंत्र विकसित करने की बात कही गई है। भारत की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन एवं चीन के उप-प्रधान इस तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा रहेंगे। दोनों देशों की ओर से कहा गया है कि मतभेद को विवाद में नहीं बदलने देंगे। हालाँकि पिछले कुछ महीनों में चीन एवं भारत के बीच तापमान काफ़ी बढ़ गया था। विशेष रूप से 5 अगस्त 2019 को धारा 370 एवं धारा 35ए को हटाए जाने हेतु भारत द्वारा लिए गए निर्णय के बाद, चीन ने जो रूख अख़्तियार किया हुआ था, वह भारत हरगिज़ नहीं चाहता था।
इस अनौपचारिक शिखर वार्ता में दोनों देशों ने मिलकर सकारात्मक सोच के साथ दोनों देशों के सम्बन्धों को एक ठीक दिशा देने का प्रयास किया है। विनिर्माण के क्षेत्र में सहयोग की बात कही गई है। चीन का निवेश यदि श्रम गहन उद्योगों में ज़्यादा होने लगे तो भारत के लिए अच्छा होगा क्योंकि इससे भारत में रोज़गार के अवसर निर्मित होंगे। सुरक्षा की दृष्टि से भी दोनों देशों के बीच आत्म-विश्वास बढ़ाये जाने के उपाय किए जाने चाहिए। सूचना प्रौद्योगिकी एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में भी दोनों देश आगे बढ़ सकते हैं। वैश्विक आतंकवाद के मुद्दे पर भी दोनों देशों के बीच चर्चा हुई है।
यह स्वीकार करना होगा कि भारत और चीन के बीच सम्बंध बहुत पेचीदा रहे हैं और यह पेचीदगी केवल सीमा विवाद तक सीमित नहीं है बल्कि समुद्री क्षेत्र एवं वैश्विक क्षेत्र तक बहुत मुद्दे हैं जिन पर दोनों देशों की सोच में भारी अंतर है। अतः दोनों देश एकदम अच्छे दोस्त या एकदम कट्टर दुश्मन हैं, ऐसा नहीं मानना चाहिए। केंद्र में रखकर स्थिति को चुना जाना चाहिए और यही किए जाने का प्रयास इस शिखर वार्ता में किया गया है। जिन-जिन क्षेत्रों में दोनों देशों के विचार आपस में मिलते जुलते हैं उन क्षेत्रों में आगे बढ़ा जाना चाहिए, बाक़ी मुद्दों को फ़िलहाल किनारे किया जा सकता है। भारत ने वीज़ा के नियमों में परिवर्तन कर दिया है। चीनी नागरिकों को अब 5 साल तक के समय के लिए लम्बी अवधि का वीज़ा भी जारी किया जाएगा इससे पर्यटन के क्षेत्र में भारत को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है।
कोई भी देश अपने दोस्तों को तो बदल सकता है परंतु अपने पड़ौसियों को नहीं बदल सकता। अतः चीन, जो आज विश्व की एक मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, के साथ अच्छे सम्बंध बनाए रखना भारत के हित में ही होगा एवं दोनों देश यदि एक दूसरे के हितों का ख़याल रखते हुए आपस में मिलकर कार्य करें तो निश्चित ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं।
0 Comments
Post a Comment