सम्भव है प्लास्टिक का त्याग - कुछ आदतें विकसित करें 

2 अक्टोबर 2019 से देश में प्लास्टिक छोड़ो अभियान की शुरुआत हो चुकी है। अतः अब सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को तो “ना” ही कहा जाना चाहिए। सिंगल यूज़ प्लास्टिक यानी एक ही बार इस्तेमाल के लायक़ प्लास्टिक एवं 40 माइक्रोन या उससे कम स्तर का प्लास्टिक। अपनी रासायनिक संरचना की वजह से प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होता है तथा सिंगल यूज़ प्लास्टिक को तो आसानी से रीसाइकल भी नहीं किया जा सकता। अतः ये सैकड़ों सालों तक ज़मीन पर बना रहता है और कभी नष्ट नहीं होता, और यदि इसे ज़मीन में दबाया जाय तो गलने की बजाय यह ज़मीन को ही बंजर बना देता है। प्लास्टिक बैग्ज़, कटलरी, पानी की बोतल, ग्लास-कप, स्ट्रा, सेशे-पाउच और थरमाकाल से बनी कटलरी, आदि इसी श्रेणी की प्लास्टिक में आते हैं।

प्लास्टिक न केवल ज़मीन को बंजर बनाता है बल्कि हमारे आस पास के वातावरण को भी दूषित करता है क्योंकि इसके जलाने पर यह हवा में कार्बन डाई आक्सायड को बढ़ाता है एवं प्लास्टिक में मौजूद कसनोजेनिक केमिकल से केन्सर होने की आशंका रहती है। जहाँ सिंगल यूज़ प्लास्टिक को डम्प किया जाता है वहाँ पर बायो डिग्रेडेबल वेस्ट से मिलकर मीथेन गैस बनने लगता है। यही गैस पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। मीथेन गैस कार्बन डाय ओकसाईड की तुलना में 30 गुना अधिक ख़तरनाक है। जलवायु परिवर्तन के लिए भी ख़ास तौर से यही गैस ज़िम्मेदार मानी जाती है। 

आज भारत में प्लास्टिक का इस्तेमाल इतना बढ़ गया है कि प्रत्येक भारतीय हर साल  औसतन 11 किलो ग्राम सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल करने लगा है। प्लास्टिक उत्पादन में भारत का दुनिया में 5वाँ स्थान है। नेचर कम्यूनिकेशन की साल 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष तक़रीबन 1.10 लाख टन प्लास्टिक कचरा केवल गंगा नदी से ही बंगाल की खाड़ी में मिल जाता है और सालाना 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्र में समा जाता है। कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों में मौजूद है एवं इससे 99 प्रतिशत समुद्री जीवों के पेट में आज प्लास्टिक कचरा पाया जाने लगा है। एक अन्य अनुमान के अनुसार, प्लास्टिक का उपयोग यदि इसी प्रकार जारी रहा तो वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक मिलने लगेगा। आज प्लास्टिक का केवल एक फ़ीसदी हिस्सा ही समुद्र तल पर दिखाई देता है। 

कई वैश्विक संस्थाओं ने अपने अनुसंधान विवरणों में बताया है कि आज प्लास्टिक, समुद्र में एवं प्रथ्वी पर रहने वाले करोड़ों जीव जंतुओं की असामयिक मौत का कारण बन रहा है। प्लास्टिक इन जीवों के लिए ही नहीं बल्कि इंसानी जीवन के लिए भी अत्यधिक हानिकारक बन गया है। एक अनुमान के अनुसार, जिस गति से प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता जा रहा है उससे वर्ष 2020 आते-आते दुनिया भर में, 12 अरब टन प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा हो जाएगा और इसे साफ़ करने में कई दशक लग जाएँगे। अतः, प्लास्टिक के उपयोग को जितना शीघ्र कम एवं बंद किया जाय उतना हमारे अपने हित में है।    

प्लास्टिक के उपयोग को कम करने उद्देश्य से देश में पहिले से ही 19 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने हेतु नागरिकों को आगाह किया हुआ है। भारतीय रेल्वे ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर हाल ही में रोक लगा दी है एवं एयर इंडिया ने भी 2 अक्टोबर 2019 से सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन लगा दिया है। केंद्र ने सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को एक एडवाईजरी जारी की है जिसमें कहा गया है कि सरकारी कार्यालयों और पब्लिक कार्यक्रमों में प्लास्टिक के उत्पादों, जैसे, फूल, गुलदस्ते, पानी की बोतलें, आदि का उपयोग बंद कर दिया जाय। इसी प्रकार देश की कई राज्य सरकारों एवं कई संस्थानों ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को कम एवं बंद करने का निर्णय लिया हैं। 

शायद केवल सरकारी आदेश, सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को देश में कम नहीं कर सकेंगे। इसके लिए जनता की भागीदारी आवश्यक है। देश के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने भी इसलिए अपने मन की बात कार्यक्रम के माध्यम से देश वासियों का कई बार आह्वान किया है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को बिलकुल बंद करें। परंतु, प्लास्टिक का उपयोग नागरिकों की दिनचर्या में इस प्रकार घुल मिल गया है कि इसके उपयोग को आसानी से बंद करना सम्भव नहीं होगा। देशवासियों एवं उद्योगों को प्लास्टिक के उपयोग एवं उत्पादन को कम एवं बंद करने हेतु कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। जैसा विश्व के अन्य देशों में वहाँ की सरकारों ने अपने नागरिकों एवं उद्योगों के लिए किया है। जैसे, ग्रेट ब्रिटेन ने उद्योगों में प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्लास्टिक का उत्पादन करने वाले उद्योगों पर प्लास्टिक के नए उत्पादन एवं आयात पर प्लास्टिक टैक्स लगाए जाने सम्बंधी एक योजना की घोषणा की है। अमेरिका एवं अन्य कई विकसित देशों में प्लास्टिक के कचरे को वहाँ की स्थानीय सरकारों द्वारा नागरिकों के घरों से इकट्ठा करवाया जाता है ताकि इसके 100 प्रतिशत रीसाइक्लिंग को सुनिश्चित किया जा सके।  जो सिंगल यूज़ प्लास्टिक रीसाइकल नहीं किया जा सकता उसका इस्तेमाल सिमेंट और सड़क बनाने में किया जाता है। इसी प्रकार के कई प्रोत्साहन अन्य कई देशों द्वारा भी दिए जा रहे हैं, इनका अध्ययन कर इन प्रोत्साहनों को हमारे देश में भी शीघ्र ही लागू किया जाना चाहिए। 

कई देशों में तो प्लास्टिक के विकल्प तैयार करने हेतु अनुसंधान भी किए जा रहे हैं। इन अनुसंधानों का अध्ययन कर इनके शीघ्र उपयोग को भारत में भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। भारत में तो पेड़ के पत्तों के दोने, पत्तल, मिट्टी के कुल्लड़, केले के पत्ते जैसी कटलरी, कागज़ के लिफाफे, जूट के बैग औऱ कपड़े के थैले, जैसी प्राकृतिक चीज़ों का इस्तेमाल बहुतायत में सुरक्षित रूप से होता रहा है। देश में इन सभी उत्पादों के गहन उपयोग को पुनः शुरू किया जा सकता है, और ये सभी उत्पाद प्लास्टिक के ठोस विकल्प के तौर पर उभर सकते हैं, हमें केवल अपनी आदतें बदलनी होंगी। हमारे ही देश के सिक्किम राज्य में प्लास्टिक से होने वाले नुक़सान से नागरिकों को अवगत कराया गया और धीरे धीरे जब नागरिकों ने स्वेच्छा से प्लास्टिक का उपयोग करना कम कर दिया तो राज्य में कानून बनाकर इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। इस प्रकार, सिक्किम भारत का पहला राज्य बना जिसने प्लास्टिक से बनी बैग एवं सिंगल यूज़ प्लास्टिक की बोतलों के उपयोग को बंद कर दिया है। अतः देश के अन्य राज्यों द्वारा भी नागरिकों के सहयोग के साथ प्लास्टिक के उपयोग को कम एवं बंद किया जा  सकता है। 

हम नागरिकों को भी अब यह सोचना होगा कि देश में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने एवं धीरे धीरे ख़त्म करने हेतु अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन किस प्रकार करें। दरअसल, यह बहुत ही आसान है। हमें केवल कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा, जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएँ तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। इससे ख़रीदे गए सामान को रखने हेतु प्लास्टिक के थैलियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कठोरता के साथ बिलकुल “ना” कहें। इसके स्थान पर, पुनः प्रयोग होने वाले प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल करें। चाय एवं कॉफ़ी आदि के ढाबों पर प्लास्टिक मग्स के स्थान पर कुल्हड़ का उपयोग करें। मनोरंजन के लिए गाने, भजन एवं फ़िल्मों आदि के VDO ऑनलाइन ही ख़रीदें, इनकी प्लास्टिक की CD एवं DVD नहीं ख़रीदें। विभिन्न समुद्री किनारों पर फैल रहे प्लास्टिक कचरे की सफ़ाई में अपना योगदान हर नागरिक दे सकता है। छुट्टी के दिन कई दोस्त लोग मिलकर इस प्रकार की सामाजिक सेवा में अपना हाथ बँटा सकते हैं। जब भी विभिन्न सरकारों द्वारा अपने अपने प्रदेशों में प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध की घोषणा की जाती है, इसका पुरज़ोर समर्थन करें एवं  समाज में अपने भाई बहनों को भी समझाएँ  कि वे इस प्रतिबंध को सफल बनाएँ। उक्त बताए गए छोटे-छोटे उपायों से देश में प्लास्टिक के उपयोग को कम किया जा सकता है एवं प्लास्टिक के कचरे के फ़िर से इकट्ठा होने को रोका जा सकता है।