देश के निर्यात को एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य   


वर्ष 2025 तक भारत की अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए देश के निर्यात को भी वर्ष 2018 के 50,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर वर्ष 2025 तक 1 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का करने का लक्ष्य निर्धारित किया जा रहा है क्योंकि अन्यथा देश को 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना एक कठिन कार्य होगा। 

उक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सुझाव देने हेतु एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया था जिसने हाल ही में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। उक्त कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों पर गम्भीरता पूर्वक विचार के उपरांत इन्हें देश में लागू किया जा सकता है। अभी तक हमारे देश में 8 प्रतिशत से भी अधिक की विकास दर हासिल की जाती रही है एवं इसमें निर्यात का कोई बहुत बड़ा योगदान नहीं रहा है। परंतु, अब हमें अपनी सोच को बदलना होगा। आज की परिस्थितियों में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि देश की विकास दर को यदि 8 प्रतिशत से ऊपर ले जाना है तो देश से निर्यात को बढ़ावा देना ही होगा। बिना निर्यात में वृद्धि अर्जित किए अब सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को तेज़ करना शायद सम्भव नहीं होगा।  

देश में अभी भी कई बहुत ही पुराने क़ानून लागू हैं जो लगभग 60 साल अथवा 70 साल पहिले बनाए गए थे। आज की वैश्विक परिस्थितियों में ये क़ानून निरर्थक से हो गए हैं। हालाँकि वर्ष 2014 से केंद्र में प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी की नई सरकार के आने के बाद से 1500 से अधिक क़ानूनों को समाप्त किया जा चुका है, परंतु फिर भी अभी इस क्षेत्र में और भी तेज़ी से काम किए जाने की आवश्यकता है। हमारे देश के क़ानूनों का सरलीकरण करते हुए इन्हें अन्य देशों यथा, अमेरिका, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, यूरोपीयन देशों, आदि के क़ानूनों से संरेखित किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश में आने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को व्यापार का विस्तार करने में आसानी हो। 

विभिन्न प्रकार के करों में कमी करते हुए इन्हें आसान बनाया जाना अब ज़रूरी हो गया है। हालाँकि केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में भी तेज़ी से काम करना प्रारम्भ कर दिया है। हाल ही में कारपोरेट करों की दरों में कमी करते हुए इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाये जाने का प्रयास किया गया है। इस क्षेत्र में भी अभी और कार्य किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही, पूँजी की लागत को भी कम करने की ज़रूरत है। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज की दरों में लगातार कमी की घोषणा की जाती रही है एवं रेपो रेट को काफ़ी नीचे ले आया गया है। परंतु, विभिन्न बैंकों द्वारा अभी भी रेपो रेट में हुई कमी को अंततः उपभोक्ता, कृषक एवं उद्योग जगत तक उसी गति से पहुँचाना बाक़ी है। 

दरअसल , हमारे देश में उत्पाद की कुल लागत को ही कम करने की ज़रूरत है, ताकि हमारे देश में उत्पादित वस्तुएँ अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बन सकें। इसके लिए मितव्ययता के स्तर (इकॉनमी ओफ़ स्केल) को प्राप्त करना अति आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर यहाँ  वस्त्र एवं परिधान उद्योग का वर्णन किया जा सकता है। हमारे देश में वस्त्र एवं परिधान के क्षेत्र में वस्त्र उत्पादन की सबसे बड़ी इकाई में 5000 के आस पास श्रमिक कार्य करते हैं, जबकि बंगला देश की सबसे बड़ी इकाई में 15000 से भी अधिक श्रमिक कार्य करते हैं। अतः ऑर्डर प्राप्त होने के बाद वस्त्रों की आपूर्ति बंगला देश की फ़ैक्टरी आसानी से एवं तेज़ी से कर पाती है। इस तरीक़े से हमारे देश की उत्पादन इकाईयाँ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रही हैं एवं आज बंगला देश की वस्त्र निर्माण इकाईयों से हमारे देश की वस्त्र निर्माण इकाईयों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। हमारे देश की फ़र्म का आकार दुनिया की अन्य फ़र्मों के मुक़ाबले काफ़ी छोटा है। अतः जब तक मितव्ययता का स्तर प्राप्त नहीं कर लेते तब तक अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में हमारे देश में उत्पादित वस्तुओं का टिकना बहुत ही मुश्किल है।

निर्यात वित्त की उपलब्धता को देश में आसान बनाए जाने एवं इसे तेज़ी से बढ़ाए जाने की  भी आवश्यकता है। निर्यात वित्त पर ब्याज की दरों को भी कम किया जाना चाहिए। निर्यात आयात बैंक एवं ईसीजीसी के पूँजीगत ढाँचे को बढ़ाकर इन संस्थानों की वित्त प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। चीन और अमेरिका के बीच आर्थिक युद्ध चल रहा है इसका फ़ायदा भारत को उठाना चाहिए। 

देश में व्यापार करने को आसान बनाए जाने की आवश्यकता है। विशेष रूप से श्रम सुधारों को शीघ्र ही लागू करना अब आवश्यक हो गया है। कृषि, उद्योग आदि क्षेत्र में सस्ती दरों पर बिजली एवं इंधन की उपलब्धता  सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही,  लाजिस्टिक के क्षेत्र में भी त्वरित सुधार किए जाने की आवश्यकता है। 

कृषि एवं वित्तीय क्षेत्रों में तो हमारे देश में आर्थिक सुधार कार्यक्रम बहुत ही कम स्तर पर लागू हुआ है। इसी कारण से वित्तीय क्षेत्र में हमारे देश से किसी प्रकार का निर्यात ही नहीं हो पा रहा है। इसी प्रकार कृषि के क्षेत्र में भी निर्यात नहीं बढ़ पा रहा है। किसी भी देश में यह क़ानून देखने में नहीं आया है कि किसान अपनी उपज को मंडी के माध्यम से ही बेचेगा जिससे उसे क़ीमत भी कम मिलती है और उसे अपना उत्पाद बेचने में समय भी अधिक लगता है। इस तरह के पुराने एवं कड़े नियमों को तुरंत बदले जाने की आवश्यकता है। कृषि एवं वित्तीय क्षेत्रों में हमारे देश में उक्त प्रकार के बहुत ज़्यादा एवं कड़े नियम लागू है। जबकि ये दोनों ही क्षेत्र रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने की दृष्टि से, कर आय को बढ़ाने की दृष्टि से, निर्यात की दृष्टि से, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। अतः इन दोनों क्षेत्रों में आर्थिक सुधार किए जाने की आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। 


विदेशी व्यापार में तुलनात्मक फ़ायदे का लाभ भी उठाया जाना चाहिए। जैसे, यदि हमारे देश में अच्छी गुणवत्ता का गेहूँ एवं चावल अधिक आसानी से एवं अधिक मात्रा में पैदा करने की क्षमता है तो हमें इस क्षमता का दोहन करते हुए गेहूँ एवं चावल के उत्पादन पर ज़्यादा ज़ोर देना चाहिए। इस तरह से कृषि के क्षेत्र को फ़ायदा हो सकता है। इसी प्रकार वित्तीय क्षेत्र में यदि हमारा मानव संसाधन ज़्यादा सक्षम एवं निपुण है तो इस क्षेत्र में सुधार कर हमें तेज़ी से आगे बढ़ना चाहिए। श्रम आधारित उद्योगों को भी हम छोड़ नहीं सकते, जैसे, चमड़ा उद्योग, जवाहररात एवं आभूषण उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग, वस्त्र एवं परिधान उद्योग, आदि को हमें अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धी बनाना ही होगा। नियामक बाध्यताओं को दूर करते हुए, अनुसंधान एवं विकास तथा नवोन्मेश पर विशेष ध्यान दिए जाने की  आज आवश्यकता है, इसके बिना कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता है।