बदलते पर्यावरण का पृथ्वी पर अति-गम्भीर होता प्रभाव
विकास के परिप्रेक्ष्य में प्रकृति का जितना अधिक अंधाधुँध शोषण किया जाएगा पर्यावरण में उतना ही अधिक बदलाव होगा। पर्यावरण में बदलाव के चलते, जलवायु परिवर्तन दृष्टिगोचर होगा जिसके कारण मौसमी चक्र में बदलाव होता दिखेगा, ज़मीन की उत्पादकता प्रभावित होगी जो अंततः ज़मीन को मरुस्थल में परिवर्तित कर देगी। पर्यावरण को प्रभावित करने वाले तत्वों में शामिल है, तेज़ी से हो रहा आर्थिक विकास एवं तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण जिसके चलते प्रकृति का अत्यधिक शोषण किया जा रहा है। साथ ही, प्लास्टिक का अंधाधुँध प्रयोग किया जाना एवं फिर इसका निपटान न कर पाना तथा स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के कारण भी पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। भारत सरकार ने इन सभी मुद्दों को बहुत गम्भीरता से लिया है एवं इन्हें हल करने हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं। इस लेख में उक्त सभी मुद्दों पर विचार करने का प्रयास किया गया है।
दिनांक 25 सितम्बर 2019 को अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने ब्लूमबर्ग को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत की जीवन पद्धति दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण है। भारतीय मूल के लोग, सिद्धांततः इस बात को मानने वाले लोग हैं कि पृथ्वी हमारी माता है और हमें उसका शोषण करने का अधिकार नहीं है, हमें सिर्फ़ उसके दोहन का ही अधिकार है। भारत मूलतः उस चिंतन से जुड़ा हुआ है, जहाँ आवश्यकता समझ सकते हैं परंतु लालच का कोई स्थान नहीं है। ये मूलभूत तत्व ज्ञान है। दुनिया में वैश्विक तापमान नाम की गम्भीर चुनौती को सरकारें और बाक़ी व्यवस्थाओं से ज़्यादा, नागरिकों का व्यवहार ही इन विपरीत परिस्थितियों से दुनिया को बाहर निकाल सकता हैं। इसलिए मानव व्यवहार को हमें प्रकृति के साथ जोड़कर चलने की आदत बनानी पड़ेगी।
जलवायु परिवर्तन
कई अनुसंधान प्रतिवेदनों के माध्यम से अब यह सिद्ध किया जा चुका है कि वर्तमान में अनियमित हो रहे मानसून के पीछे जलवायु परिवर्तन का योगदान हो सकता है। कुछ ही घंटों में पूरे महीने की सीमा से भी अधिक बारिश का होना, शहरों में बाढ़ की स्थिति निर्मित होना, शहरों में भूकम्प के झटके एवं साथ में सुनामी का आना, आदि प्राकृतिक आपदाओं जैसी घटनाओं के बार-बार घटित होने के पीछे भी जलवायु परिवर्तन एक मुख्य कारण हो सकता है। एक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, यदि वातावरण में 4 डिग्री सेल्सियस से तापमान बढ़ जाय तो भारत के तटीय किनारों के आसपास रह रहे लगभग 5.5 करोड़ लोगों के घर समुद्र में समा जाएँगे। साथ ही, चीन के शाँघाई, शाँटोयु, भारत के कोलकाता, मुंबई, वियतनाम के हनोई एवं बांग्लादेश के खुलना शहरों की इतनी ज़मीन समुद्र में समा जाएगी कि इन शहरों की आधी आबादी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। वेनिस एवं पीसा की मीनार सहित यूनेस्को विश्व विरासत के दर्जनों स्थलों पर समुद्र के बढ़ते स्तर का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, पिछले 20 वर्षों के दौरान जलवायु सम्बंधी आपदाओं के कारण भारत को 7,950 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ है। जलवायु सम्बंधी आपदाओं के चलते वर्ष 1998-2017 के दौरान, पूरे विश्व में 290,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ है। सबसे ज़्यादा नुक़सान अमेरिका, चीन, जापान, भारत जैसे देशों को हुआ है। बाढ़ एवं समुद्री तूफ़ान, बार बार घटित होने वाली दो मुख्य आपदाएँ पाईं गईं हैं। उक्त अवधि के दौरान, उक्त आपदाओं के कारण 13 लाख लोगों ने अपनी जान गवाईं।
उक्त वर्णित आँकड़ों से स्थिति की भयावहता का पता चलता है। अतः यदि हम अभी भी नहीं चेते तो आगे आने वाले कुछ समय में इस पृथ्वी का विनाश निश्चित है। प्रथम विद्युत चलित कार, अमेरिका में, आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व चलाई गई थी, परंतु फिर भी आज हम जीवाश्म इंधन पर ही निर्भर हैं। यदि इसी स्तर पर हम जीवाश्म इंधन का उपयोग करते रहे तो वह दिन ज़्यादा दूर नहीं जब हम पूरी पृथ्वी को ही जला देंगे।
तेज़ी से फैलता मरुस्थलीकरण
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि प्रतिवर्ष विश्व में 1.20 करोड़ हेक्टेयर कृषि उपजाऊ भूमि ग़ैर-उपजाऊ भूमि में परिवर्तित हो जाती है। दुनियाँ में 400 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन डिग्रेड हो चुकी है। एशिया एवं अफ़्रीका की लगभग 40 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहाँ मरुस्थलीकरण का ख़तरा लगातार बना हुआ है। इनमें से अधिकतर लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि एवं पशु-पालन जैसे व्यवसाय पर निर्भर हैं। भारत की ज़मीन का एक तिहाई हिस्सा, अर्थात 9.7 करोड़ से 10 करोड़ हेक्टेयर के बीच ज़मीन डिग्रेडेड है। ज़मीन के डिग्रेड होने से ज़मीन की जैविक एवं आर्थिक उत्पादकता कम होने लगती है। दूसरा, पैदावार की लाभप्रदता एवं किसान की आय पर भी असर होता है। तीसरा, छोटे एवं सीमांत किसान जिनके पास बहुत ही कम ज़मीन है उनकी तो रोज़ी रोटी पर ही संकट आ जाता है। रोज़गार के अवसर कम होते जाते हैं एवं लोग गावों से शहरों की ओर पलायन करने लगते है। पूरी पर्यावरण प्रणाली ही बदलने लगती है। ज़मीन के डेग्रडेशन की वजह से देश को 4600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान प्रतिवर्ष हो रहा है। यदि समय रहते इस गम्भीर समस्या के समाधान की ओर नहीं सोचा गया तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व में ज़मीन का एक बढ़ा हिस्सा मरुस्थल में परिवर्तित हो जाएगा।
शहरीकरण एवं पर्यावरण
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 53 ऐसे शहर हैं जिनकी आबादी 10 लाख से अधिक है। शहरीकरण से आर्थिक विकास की दर तेज़ होती है। देश की जीडीपी में शहरी क्षेत्रों का योगदान 65 प्रतिशत है जिसे 75 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है। वर्ष 2050 तक शहरों की आबादी 80 करोड़ हो जाएगी जो देश की कुल आबादी का 50 प्रतिशत होगी यानी आज की तुलना में दुगनी आबादी शहरों में रह रही होगी। साथ ही, इन शहरी इलाक़ों में रहने वाले नागरिकों के लिए साफ़ हवा, साफ़ पानी और साफ़ ऊर्जा की व्यवस्था भी करनी होगी। भारत में अभी प्राकृतिक संसाधनों का प्रति व्यक्ति उपयोग विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। आगे, विकास के साथ-साथ इन संसाधनों का प्रति व्यक्ति उपयोग भी तेज़ी से बढ़ता जाएगा जो देश के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालेगा। अतः इस विषय पर अभी से बहुत कुछ करने की ज़रूरत है।
प्लास्टिक उपयोग से दूषित होता वातावरण
सिंगल यूज़ प्लास्टिक यानी एक ही बार इस्तेमाल के लायक़ प्लास्टिक तथा 40 माइक्रॉन या उससे कम स्तर का प्लास्टिक। सिंगल यूज़ प्लास्टिक अपनी रासायनिक संरचना के कारण, आसानी से नष्ट नहीं होता है एवं इसे आसानी से रीसायकल भी नहीं किया जा सकता है। यह ज़मीन में सैकड़ों वर्षों तक बना रहता है और कभी नष्ट नहीं होता, इससे ज़मीन बंजर हो जाती है। प्लास्टिक थैले, कटलरी, पानी की बोतल, ग्लास-कप, स्ट्रॉ, सेशे-पाउच और थरमाकाल से बनी कटलरी, इस श्रेणी में गिनी जाती है।
सिंगल यूज़ प्लास्टिक डम्प साइट पर बायोडीग्रेडेबल वेस्ट से मिलकर मीथेन गैस बनाता है। यही पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। मीथेन गैस कार्बन डायआक्सायड की तुलना में 30 गुना अधिक ख़तरनाक है। जलवायु परिवर्तन के लिए भी यही गैस ख़ास तौर से ज़िम्मेदार मानी जाती है।
हर साल प्रत्येक भारतीय औसतन 11 किलो सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है। प्लास्टिक उत्पादन में भारत का दुनिया में 5वाँ स्थान है। हर साल देश में 56 लाख टन कचरे का उत्पादन होता है, जिसमें से सिंगल यूज़ प्लास्टिक का कचरा 25 हज़ार टन का निकलता है। दुनिया में प्लास्टिक का उत्पादन 300 करोड़ टन के पार हो चुका है। प्लास्टिक जल कर हवा में कार्बन डाय आक्सायड को बढ़ाता है। प्लास्टिक में मौजूद कसनोजेनिक केमिकल से कैन्सर होने की आशंका रहती है। नेचर कम्यूनिकेशन की साल 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल तक़रीबन 1.10 लाख टन प्लास्टिक कचरा गंगा से बंगाल की खाड़ी में मिल जाता है और प्रति वर्ष 80 लाख टन कुल प्लास्टिक समुद्र में फैंक दिया जाता है। इस प्रकार, प्लास्टिक का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों में मौजूद है। 99 प्रतिशत समुद्री जीवों के पेट में प्लास्टिक का कचरा जा चुका है। साल 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक मिलने लगेगा। प्लास्टिक का सिर्फ़ एक फ़ीसदी हिस्सा ही समुद्र तल पर दिखाई देता है।
स्वच्छ जल की कमी
आज़ादी के 70 वर्षों के पश्चात, आज भी देश के 75 प्रतिशत घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। “वाटर एड” नामक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में पानी की कमी से जूझती सबसे अधिक आबादी भारत में ही है, जो वर्ष भर के किसी न किसी समय पर, पानी की कमी से जूझती नज़र आती है। देश में जल की कमी के बारे में भयावह स्थिति निम्न आँकड़े भी दर्शाते हैं -
(1) पिछले 70 सालों में देश में 20 लाख कुएँ, पोखर एवं झीलें ख़त्म हो चुके हैं।
(2) पिछले 10 सालों में देश की 30 प्रतिशत नदियाँ सूख गई हैं।
(3) देश के 54 प्रतिशत हिस्से का भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है।
(4) वर्ष 2030 तक देश के 40 प्रतिशत लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा।
(5) नई दिल्ली सहित देश के 21 शहरों में पानी ख़त्म होने की कगार पर है।
देश में प्रतिवर्ष औसतन 110 सेंटी मीटर बारिश होती है एवं बारिश के केवल 8 प्रतिशत पानी का ही संचय हो पाता है, बाक़ी 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। अतः देश में, शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में, भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है कि आज देश के कई भागों में हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि 500 फ़ुट तक ज़मीन खोदने के बाद भी ज़मीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है।
पर्यावरण में सुधार हेतु सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास
जलवायु परिवर्तन में सुधार हेतु भारत तेज़ी से सौर ऊर्जा एवं वायु ऊर्जा की क्षमता विकसित कर रहा है। उज्जवला योजना एवं एलईडी बल्ब योजना के माध्यम से तो भारत पूरे विश्व को ऊर्जा की दक्षता का पाठ सिखा रहा है। ई-मोबिलिटी के माध्यम से वाहन उद्योग को गैस मुक्त बनाया जा रहा है। बायो इंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, पेट्रोल एवं डीज़ल में ईथनाल को मिलाया जा रहा है। 15 करोड़ परिवारों को कुकिंग गैस उपलब्ध करा दी गई है। भारत द्वारा प्रारम्भ किए गए अंतरराष्ट्रीय सौर अलायंस के 80 देश सदस्य बन चुके हैं।
वैश्विक तापमान के प्रभाव को कुछ हद्द तक कम करने के उद्देश्य से भारत ने पहिले तय किया था कि देश में 175 GW नवीकरण ऊर्जा की स्थापना की जायगी। इस लक्ष्य को हासिल करने की ओर भारत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और अभी तक देश में क़रीब क़रीब 120 GW नवीकरण ऊर्जा की स्थापना की जा चुकी है। अब भारत ने अपने लिए देश में नवीकरण ऊर्जा की स्थापना के लिए एक नया लक्ष्य, अर्थात 450 GW निर्धारित किया है।
देश में बढ़ते मरुस्थलीकरण को रोकने के उद्देश्य से, भारत ने वर्ष 2030 तक 2.10 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लक्ष्य को बढ़ाकर 2.60 करोड़ हेक्टेयर कर दिया है। साथ ही, भारत ने मरुस्थलीकरण को बढ़ने से रोकने के लिए वर्ष 2015 एवं 2017 के बीच देश में पेड़ एवं जंगल के दायरे में 8 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी की है।
केंद्र सरकार की एक बहुत ही अच्छी पहल पर अभी तक 27 करोड़ मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड किसानों को जारी किए जा चुके हैं। इसमें मिट्टी की जाँच में पता लगाया जाता है कि किस पोशक तत्व की ज़रूरत है एवं उसी हिसाब से खाद का उपयोग किसान द्वारा किया जाता है। पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करने से न केवल ज़मीन की उत्पादकता बढ़ती है ब्लिंक उर्वरकों का उपयोग भी कम होता है। खेती पर ख़र्च कम होता है, इस प्रकार किसान की आय में वृद्धि होती है।
शहरों का विकास व्यवस्थित रूप से करने के उद्देश्य से देश में अब मकानों का लंबवत निर्माण किये जाने पर बल दिया जा रहा है, ताकि हरियाली के क्षेत्र को बढ़ाया जा सके। स्मार्ट शहर विकसित किए जा रहे हैं। शहरों में यातायात के दबाव को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न मार्गों के बाई-पास बनाए जा रहे हैं। क्षेत्रीय द्रुत-गति के रेल्वे यातायात की व्यवस्था की जा रही है, ताकि महानगरों पर जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सके। इस रेल्वे ट्रैक के आस पास समावेशी एवं मिश्रित रूप से विकसित शहरों का विकास किया जा रहा है, ताकि इन शहरों में रहने वाले नागरिकों को इनके घरों के आस-पास ही सभी प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हो सकें। देश के विभिन्न महानगरों में 500 किलोमीटर मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा चुका है एवं कई महानगरों में विस्तार का काम बढ़ी तेज़ी से चल रहा है। देश में 100 स्मार्ट नगर बनाए जा रहे हैं। इन शहरों में नागरिकों के लिए पैदल चलने एवं सायकिल चलाने हेतु अलग मार्ग की व्यवस्थाएँ की जा रही हैं एवं इन नागरिकों को पब्लिक ट्रांसपोर्ट के अधिक से अधिक उपयोग हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है। उद्योगों को इन शहरों से बाहर बसाया जा रहा है ताकि शहर में प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सके।
2 अक्टोबर 2019 से देश में प्लास्टिक छोड़ो अभियान की शुरुआत हो चुकी है, ताकि वर्ष 2022 तक देश सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त हो जाय। जो सिंगल यूज़ प्लास्टिक रीसायकल नहीं किया जा सकता उसका इस्तेमाल सिमेंट और सड़क बनाने के काम में किया जा सकता है।
देश में पहिले से ही 19 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगी हुई है। भारतीय रेल्वे एवं एयर इंडिया ने भी 2 अक्टोबर 2019 से सिंगल यूज़ प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक एडवाईज़री जारी की है जिसमें कहा गया है कि सरकारी कार्यालयों और पब्लिक कार्यक्रमों में सिंगल यूज़ प्लास्टिक उत्पादों (फूल, गुलदस्ते, पानी की बोतलें, आदि) का उपयोग बंद कर दिया जाय।
भारतवर्ष में जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कर दी गई है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर जन भागीदारी के साथ चलाया जाएगा। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जाएगा।
सुझाव
देश में हर मकान के लिए वर्षा के जल का संग्रहण आवश्यक कर देना चाहिए, ताकि पृथ्वी के जल को रीचार्ज किया जा सके। हर घर में नवीकरण ऊर्जा का उपयोग आवश्यक कर देना चाहिए, ताकि इन घरों को आवश्यक रूप से सौर ऊर्जा उत्पादन करना पड़े। समस्त कालोनियों एवं मकानों के आस-पास पेड़ों का लगाया जाना आवश्यक कर देना चाहिए। देश में ख़ाली पड़ी पूरी ज़मीन को ग्रीन बेल्ट में बदल दिया जाना चाहिए। देश में 25 प्रतिशत प्रदूषण, यातायात वाहनों से फैलता है, अतः देशवासियों को यातायात वाहनों में नवीकरण ऊर्जा के उपयोग हेतु प्रेरित किया जाना चाहिए। इससे वातावरण में कार्बन डाई आक्सायड कम होगी एवं ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ेगी।
पर्यावरण को रीचार्ज करके विकास एवं पर्यावरण के बीच सामंजस्य बिठाया जा सकता है। कचरा एवं प्लास्टिक को रीसायकल करना, प्राकृतिक संसाधनों की दक्षता बढ़ाना, जल का संरक्षण, ऊर्जा का दक्षता से उपयोग, शहरों में हरियाली बढ़ाना, ध्वनि प्रदूषण को कम करना, ग्रीन एंड क्लीन ट्रांसपोर्ट का विकास करना, ठोस अपशिष्ट का सही तरीक़े से प्रबंधन करना, आदि कार्य करके भी पर्यावरण में सुधार किया जा सकता है।
“ प्रति बूँद अधिक पैदावार” के सपने को साकार करने के लिए फ़व्वारा सिंचाई एवं बूँद-बूँद सिंचाई पद्धति को देश में बढ़े स्तर पर अपनाया जाना चाहिए। खोई हुई उर्वरा शक्ति को हासिल करने हेतु पेड़ों और बड़ी झाड़ियों को खेतों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। दो खेतों के बीच में ज़मीन खुली न छोड़ें, इससे पोषक तत्वों का नुक़सान होता है। ख़ाली ज़मीन पर कुछ अन्य पेड़ लगाएँ। ज़मीन का उपयोग लगातार करते रहें। मिश्रित खेती करें। ऐसे पौधे भी उपलब्ध हैं जिन्हें लगाने से मिट्टी के उपजाऊपन में सुधार आता है। कुछ जैविक पदार्थ भी मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ाते हैं।
ऐसी फ़सलों जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे, गन्ना एवं अंगूर, आदि को देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहाँ हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है। उदाहरण के तौर पर गन्ने की फ़सल को महाराष्ट्र एवं उत्तरप्रदेश से बिहार की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है। देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके। भूजल के अत्यधिक बेदर्दी से उपयोग पर भी रोक लगानी होगी ताकि भूजल के तेज़ी से कम हो रहे भंडारण को बनाए रखा जा सके।
प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पानी की बचत एवं संरक्षण, आदि विषयों पर विशेष अध्याय जोड़े जाने चाहिए।
नागरिकों एवं समाज की भागीदारी
प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने के लिए हमें कुछ आदतें अपने आप में विकसित करनी होंगी। यथा, जब भी हम सब्ज़ी एवं किराने का सामान आदि ख़रीदने हेतु जाएँ तो कपड़े के थैलों का इस्तेमाल करें। इससे ख़रीदे गए सामान को रखने हेतु प्लास्टिक के थैलियों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। विभिन्न समुद्री किनारों पर फैल रहे प्लास्टिक कचरे की सफ़ाई में अपना योगदान हर नागरिक दे सकता है। छुट्टी के दिन कई दोस्त लोग मिलकर इस प्रकार की सामाजिक सेवा में अपना हाथ बटा सकते हैं। जब भी विभिन्न प्रादेशिक सरकारों द्वारा प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध की घोषणा की जाती है, इसका पुरज़ोर समर्थन करें एवं समाज में अपने भाई बहनों को भी समझाएँ कि वे इस प्रतिबंध को सफल बनाएँ।
हम घर में कई छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर भी पानी की भारी बचत कर सकते हैं। जैसे, टोईलेट में फ़्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें, दातों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने के बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बालटी में पानी भरकर स्नान करें।
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Very important issue and very interesting
ReplyDeleteGreat listing of various environment related problems and steps / suggestions for solutions to them. This is one of the grave problem in today's world.
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