कृषि क्षेत्र को वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट से हैं बहुत उम्मीदें
कोरोना महामारी के दौरान केवल कृषि क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र रहा था जिसने विकास दर हासिल की थी अन्यथा उद्योग एवं सेवा क्षेत्र ने तो ऋणात्मक वृद्धि दर हासिल की थी। देश की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी आज भी गावों में निवास कर रही है एवं इस समूह को रोजगार के अवसर मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र ही उपलब्ध करवाता है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि उत्पादन का हिस्सा 16 से 18 प्रतिशत के आसपास रहता है एवं अब यह धीमे धीमे बढ़ रहा है। देश में उद्योगों को प्राथमिक उत्पाद भी कृषि क्षेत्र ही उपलब्ध कराता है। इस प्रकार यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए कि कृषि क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलभूत आधार है। इसी कारण से कृषि और किसान कल्याण संबंधी योजनाएं हमेशा ही केंद्र सरकार की प्राथमिकता में रही है। केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है कि देश का किसान आर्थिक रूप से मजबूत एवं सम्पन्न हो। हाल ही के समय में किसानों द्वारा उत्पादित कृषि पदार्थों की लागत बड़ी है इसका मुख्य कारण डीजल, खाद एवं बीज के दामों में हुई तेज वृद्धि है। उक्त कारणों से कृषि क्षेत्र को वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट से बहुत उम्मींदे हैं।
केंद्र सरकार पिछले कुछ वर्षों से लगातार प्रयास करती रही है कि वर्ष 2022 तक किसानो की आय दुगुनी हो जाए। परंतु पिछले दो वर्षों के दौरान कोरोना महामारी के चलते हालांकि केंद्र सरकार की प्राथमिकताएं कुछ बदली है परंतु फिर भी कृषि क्षेत्र की ओर केंद्र सरकार का ध्यान लगातार बना रहा है और धान, गेहूं एवं अन्य कृषि पदार्थों के समर्थन मूल्य में रिकार्ड बढ़ौतरी की गई है फिर भी कोरोना महामारी के कारण किसानों की आय दुगनी करने सम्बंधी लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है। विश्व में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं पांच छह साल पीछे पहुंच गईं हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ है, कृषि क्षेत्र तो इस काल में भी वृद्धि दर्ज करता रहा हैं। अब ऐसी उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट के माध्यम से कृषि पदार्थों के समर्थन मूल्य योजना पर विशेष घोषणा कर सकती है।
भारतीय किसान यदि परम्परागत कृषि पदार्थों यथा गेहूं एवं धान की खेती से इतर कुछ अन्य पदार्थों यथा फल, सब्जी, तिलहन, दलहन आदि की खेती को बढ़ाता है तो यह किसान एवं देश को कृषि के क्षेत्र आत्म निर्भर बनाने में मदद कर सकता है। आज देश में खाद्य तेलों की कुल खपत का लगभग 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात करना होता है क्योंकि प्रति व्यक्ति खाद्य तेल का उपयोग देश में बहुत बढ़ा है और इस प्रकार तिलहन की पैदावार को बढ़ाया जाना अत्यंत आवश्यक है। हालांकि इस ओर केंद्र सरकार का ध्यान गया है एवं इस वर्ष रबी के मौसम में देश में तिलहन का बुवाई क्षेत्र काफी बढ़ा है। तिलहन के रकबे में 18.30 लाख हेक्टेयर की भारी बढ़ौतरी हुई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में 82.86 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तिलहन की बुवाई की गई थी जो इस वर्ष बढ़कर 101.16 लाख हेक्टेयर में हुई है। दलहनी फसलों के रकबे में भी 1.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की बढ़ौतरी दर्ज हुई है। चने का रकबा तो 4.25 लाख हेक्टेयर से बढ़ा है। पिछले वर्ष की समान अवधि में दलहनी फसलों का रकबा 162.88 लाख हेक्टेयर रहा था जो इस वर्ष बढ़कर 164.35 लाख हेक्टेयर हो गया है।
अब तो देश में कई ऐसे कृषि पदार्थ हैं जिनका देश में कुल खपत की तुलना में बहुत अधिक उत्पादन हो रहा है। अतः इन पदार्थों के निर्यात को आसान बनाए जाने की भी जरूरत है ताकि किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम मिल सके एवं इससे उनकी आय में वृद्धि हो सके। इसके लिए कृषि उत्पादों के ग्रेडिंग किए जाने की सख्त आवश्यकता है जिसके चलते छोटे छोटे किसान भी अपने कृषि उत्पादों का सीधे ही अन्य देशों को निर्यात कर सकते हैं। भारत आज पूरे विश्व को डॉक्टर एवं इंजीनीयर उपलब्ध कराने में पहिले नम्बर पर है एवं इस क्षेत्र में भारत प्रतिस्पर्धी बन गया है परंतु कृषि उत्पादों के निर्यात के मामले में यह स्थिति हासिल नहीं की जा सकी है। पिछले 7 वर्षों का कार्यकाल यदि छोड़ दिया जाय तो यह ध्यान में आता है कि इससे पिछले 70 वर्षों में भारत में कृषि क्षेत्र पर उतना ध्यान नहीं दिया जा सका है जितना दिया जाना चाहिए था।
किसानों को कृषि कार्य के लिए आसान शर्तों एवं कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को बहुत सरल बना दिया गया है परंतु किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से प्रदान किए गए ऋण खातों में यदि प्रतिवर्ष (अथवा फसल के सायकल के अंतर्गत) पूरी ऋण राशि ब्याज सहित अदा नहीं की जाती है तो इन ऋणो खातों को गैर निष्पादनकारी आस्तियों में परिवर्तित कर दिया जाता है एवं इन खातों में ऋण राशि को बढ़ाया नहीं जा सकता है तथा इन ऋणों पर लागू ब्याज की दर भी अधिक हो जाती है। जबकि गैर कृषि ऋण खातों में केवल ब्याज अदा कर दिए जाने पर ही इन खातों को गैर निष्पादनकारी आस्तियों की श्रेणी से बाहर रखा जाता है, अर्थात इन खातों में ऋण राशि वापिस जमा कराना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार किसान क्रेडिट कार्ड के सम्बंध में उक्त नियमों को शिथिल बनाए जाने की आवश्यकता है।
देश में कोरोना महामारी के चलते ग्रामीण इलाकों में चूंकि बेरोजगारी की समस्या गम्भीर बनी हुई है अतः केंद्र सरकार को एमजीनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बजट 2022-23 में और अधिक राशि का प्रावधान किए जाने की आवश्यकत होगी। एमजीनरेगा योजना के अंतर्गत अधिकतम कृषि कार्य कराए जाने का प्रावधान भी किया जाना चाहिए।
न्यूनतम समर्थन मूल्य वैसे तो लगभग 23/24 फसलों के लिए घोषित किया जाता है लेकिन वास्तव में पिछले 40 वर्षों से केवल पंजाब, हरियाणा एवं चंडीगढ़ आदि क्षेत्रों से ही अधिकतम फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ली जाती है एवं इस योजना का बहुत अधिक लाभ देश के अन्य भागों के किसानों को नहीं मिल पा रहा है। अतः इस योजना का लाभ किस प्रकार देश अन्य भागों के किसानों को लगभग सभी प्रकार की फसलों के लिए मिले इसके लिए भी इस बजट में कुछ नई नीतियों की घोषणा होने की सम्भावना है।
पशुपालन, डेयरी एवं मछली पालन आदि ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें बढ़ावा देकर किसानों की आय में वृद्धि सम्भव है। अतः इन क्षेत्रों के लिए भी बजट में आबंटन बढ़ाए जाने की आवश्यकता है। हमारे देश में कृषि के क्षेत्र में अन्य देशों की तुलना में उत्पादकता बहुत कम है। चीन से यदि हम अपनी तुलना करते हैं तो ध्यान में आता है कि चीन की तुलना में प्रति हेक्टेयर पैदावार 50 प्रतिशत से भी कम है। चीन के अलावा अन्य देशों से भी जब हम धान, कपास, मिर्ची, तिलहन, दलहन, आदि उत्पादों के प्रति हेक्टेयर उत्पादन की तुलना करते हैं तो अपने आप को उत्पादकता की श्रेणी में बहुत नीचे खड़ा पाते हैं। अमेरिका में केवल 2 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र में कार्यरत है जबकि भारत में 50 प्रतिशत के आसपास आबादी कृषि क्षेत्र से अपना रोजगार प्राप्त करती है। भारत से कृषि उत्पादों के निर्यात में यदि तेज वृद्धि दर्ज करना है तो हमें अपनी कृषि उत्पादकता बढ़ानी ही होगी। अतः इस क्षेत्र में बहुत अधिक काम करने की आवश्यकता है।
आज से 25 वर्ष पूर्व एक जाने माने कृषि वैज्ञानिक ने कहा था कि पंजाब में यदि इसी तरह उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग कर धान की खेती लगातार की जाती रही तो वर्ष 2050 तक पंजाब, राजस्थान की तरह रेगिस्तानी क्षेत्र में परिवर्तित हो जाएगा। अब यह भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है। अतः भारत में कृषि का विविधीकरण करना अब अत्यंत आवश्यक हो गया है एवं उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग को कम करते हुए गाय के गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल करने को बढ़ावा देना आवश्यक हो गया है। इस प्रकार हम पुरातन भारतीय कृषि पद्धति को अपना कर पूरे विश्व को राह दिखा सकते हैं।
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Agriculture life line of Indian economy & needs any number of support subsidies: well narrated article👌👍👏🤝✨💐
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