भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर लम्बे समय तक विश्व में सबसे अधिक बनी रहने की है उज्जवल सम्भावना


हाल ही में वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए मासिक आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2023 के आम बजट में की गई कई महत्वपूर्ण घोषणाओं के चलते अब भारत की आर्थिक विकास दर विश्व की समस्त बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच लम्बे समय तक सबसे अधिक बने रहने की सम्भावनाएं बढ़ गई हैं। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को लागू करने के बाद एवं निजी क्षेत्र द्वारा वित्तीय वर्ष 2023 में अपने निवेश को बढ़ाए जाने के चलते विनिर्माण क्षेत्र में प्रभावशाली विकास दर रहने की सम्भावना भी व्यक्त की गई है। इससे भारत में इस वर्ष रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंगे। कोरोना महामारी के तीसरे चरण के समाप्त होने के बाद अब निर्माण के क्षेत्र में भी गतिविधियां उत्साहपूर्वक प्रारम्भ हो रही हैं। कृषि क्षेत्र तो कोरोना महामारी के दौर में भी सबसे अधिक विकास दर अर्जित करता रहा है और अब वित्तीय वर्ष 2023 में मानसून के सामान्य रहने की सम्भावनाओं के चलते कृषि क्षेत्र इस वर्ष भी अच्छी विकास दर हासिल कर लेगा। वित्तीय वर्ष 2022 में रबी के मौसम में फसल बुआई के क्षेत्र में भी अच्छी वृद्धि दर्ज हुई है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्तीय वर्ष 2023 के दौरान वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में हालांकि कुछ कमी का अनुमान लगाया है परंतु भारत की आर्थिक विकास दर में वृद्धि का अनुमान लगाते हुए इसे पूर्व के अनुमानों से भी अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की है।   


कोरोना महामारी के बाद देश की आर्थिक गतिविधियों में लगातार हो रहे सुधार के कारण विभिन्न बैकों द्वारा वितरित किए जा रहे ऋणों में तेज वृद्धि दर दृष्टिगोचर है। विशेष रूप से बड़ी औद्योगिक इकाईयों एवं सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम इकाईयों द्वारा ऋण की मांग में भारी सुधार देखने में आ रहा है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैकों की ऋणराशि में वित्तीय वर्ष 2022 की  दिसम्बर 2021 को समाप्त अवधि में 9.2 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की गई है, जो कि बहुत उत्साहवर्धक है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्रदान की गई एक जानकारी के अनुसार बड़ी औद्योगिक इकाईयों द्वारा भी, उन्हें स्वीकृत, ऋणराशि का आहरण प्रारम्भ कर दिया गया है। 


भारतीय बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक और अच्छी खबर भी आई है। इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने हाल ही में वित्तीय वर्ष 2023 के लिए भारतीय बैकिंग क्षेत्र की रेटिंग को “स्थिर” से सुधारकर “तरक्की” में परिवर्तित कर दिया है। पिछले दशक के दौरान भारतीय बैकिंग क्षेत्र की स्थिति इस वक़्त सबसे मजबूत बताई गई है। यह सब भारतीय बैंकों के तुलन पत्र में लगातार आ रही सुदृढ़ता के चलते, देश की अर्थव्यवस्था में आ रही मजबूती के चलते, उद्योग क्षेत्र से लगातार बढ़ रही ऋण की मांग के चलते एवं निजी क्षेत्र द्वारा बढ़ाए जा रहे निवेश के चलते सम्भव हो पाया है। 


इसी प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था पर विदेशी निवेशकों का विश्वास भी लगातार बना हुआ है और भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार बढ़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 8,197 करोड़ अमेरिकी डालर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भारत में हुआ था जो वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम 8 माह के दौरान 5,410 करोड़ अमेरिकी डालर का हो चुका है। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लगातार बढ़ने से न केवल नए उद्योगों की स्थापना हो रही है बल्कि रोजगार के भी लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। नए उद्योगों के निर्माण के बाद इन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का निर्यात भी वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है जिससे भारत को विदेशी मुद्रा का अर्जन भी लगातार बढ़ रहा है।


सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तो भारत का डंका पूरे विश्व में ही बज रहा है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग 50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध करा रहा है। आज भारत पुरे विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी के वैश्विक केंद्र के रूप में उभर चुका है एवं पुरे विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग को सॉफ़्टवेयर इंजीनीयर उपलब्ध करा रहा है। वित्तीय वर्ष 2022 में भी अभी तक देश में विभिन्न सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों ने 450,000 नए पदों पर भर्तियां की हैं। इसी प्रकार, भारत धीरे धीरे स्टार्ट-अप के क्षेत्र में भी वैश्विक केंद्र के रूप में उभर रहा है एवं अभी इस क्षेत्र में भारत का स्थान पूरे विश्व में तीसरा है एवं भारत में आज 25,000 से अधिक स्टार्ट-अप तकनीकी के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। वर्ष 2021 में देश में 2,250 नए स्टार्ट-अप स्थापित हुए एवं 42 नए यूनीकोर्न स्टार्ट-अप भी बने हैं। साथ ही वर्ष 2021 में इन स्टार्ट-अप ने 2,400 करोड़ अमेरिकी डालर की पूंजी, बाजार से उगाही है।   


NASSCOM द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि वित्तीय वर्ष 2022 में अभी तक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की आय 15.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 22,700 करोड़ अमेरिकी डालर के स्तर को पार कर गई है जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2026 तक 11-14 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की आय 35,000 करोड़ अमेरिकी डालर के स्तर को पार कर जाएगी।  


कोरोना महामारी के बाद अब भारतीय विनिर्माण उद्योग में भी तेजी से सुधार दिखाई देने लगा है। वित्तीय वर्ष 2022 की तृतीय तिमाही (अक्टोबर-दिसम्बर 2021) में 3,191 सूचीबद्ध कम्पनियों ने अपने शुद्ध लाभ में 27 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की है। साथ ही, इन कम्पनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विक्रय में भी 24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था में हो रहे तेज सुधार के चलते आगे आने वाले समय में विनिर्माण उद्योग की लाभप्रदता एवं विक्रय में वृद्धि दर के और अधिक होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इसके कारण देश में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंगे। उदाहरण के लिए, एक अनुमान के अनुसार देश में विद्युत वाहनों की मांग यदि तेजी से बढ़ती है तो भारतीय आटो उद्योग में नई नौकरियों की बहार आने वाली है। भारतीय वाहन उद्योग ने सम्भावना व्यक्त की है कि नए विद्युत वाहनों के भारी मात्रा में सड़कों पर आने के बाद देश में 1.40 करोड़ रोजगार के अवसर निर्मित हो सकते हैं। 


भारत में नित नए उद्योगों की स्थापना में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा देश में नए उद्योगों की स्थापना के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इस योजना के अंतर्गत तेजी से स्वीकृति प्रदान की जा रही है। केंद्र सरकार ने हाल ही में 20 कम्पनियों को भारत में 45,016 करोड़ रुपए के नए निवेश किए जाने की स्वीकृति प्रदान की है। इनमें आटो उद्योग की बड़ी बड़ी कम्पनियां जैसे हयुंडाई, सुजुकी, कीया, महिंद्रा, फोर्ड, टाटा मोटर्स, बजाज, हीरो एवं टीवीएस शामिल हैं।   


केंद्र सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया को दिए जा रहे प्रोत्साहन के चलते देश की जनता भी इस प्लेटफोर्म पर अपने लेनदेन लगातार बढ़ा रही है। UPI के माध्यम से डिजिटल भुगतान ने जनवरी 2022 में 8.32 लाख करोड़ रुपए के स्तर को पार करते हुए एक नया रिकार्ड बनाया है जो पिछले 12 माह के औसत 6.3 लाख करोड़ रुपए प्रतिमाह के व्यवहारों से कहीं अधिक है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाने में मदद मिल रही है। कोरोना महामारी के दौर में अप्रेल 2020 के बाद से देश में डिजिटल भुगतान बहुत तेजी के साथ बढ़े हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत है।