अब वैश्विक स्तर पर भी भारत के विरुद्ध झूठा विमर्श गढ़ा जा रहा है 

भारत ने जब से ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की शुरुआत की है, वैश्विक स्तर पर कई देशों, विशेष रूप से चीन, को भारत का यह अभियान रास नहीं आ रहा है क्योंकि अब भारत कई क्षेत्रों में तेजी से आत्मनिर्भर बनता जा रहा है जबकि पूर्व में विभिन्न उत्पादों का आयात इन देशों से किया जाता था। बल्कि, अब तो भारतीय कम्पनियां कई ऐसे उत्पादों का निर्यात भी करने लगी हैं जिनका पहिले इन देशों से आयात किया जाता था, अतः इन देशों के अन्य देशों को निर्यात भी अब प्रभावित होने लगे हैं। इस प्रकार, आत्मनिर्भर भारत अभियान कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर गहरी चोट करता हुआ नजर आ रहा है, जिसके चलते ये देश भारत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुष्प्रचार कर रहे हैं ताकि भारतीय नागरिकों को विचलित किया जा सके और जिससे अंततः भारत की आर्थिक प्रगति प्रभावित हो।


आत्मनिर्भर भारत अभियान के पूर्व भारत में विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 25 सितम्बर 2014 को “मेक इन इंडिया” नामक एक कार्यक्रम की शुरुआत भी की गई थी। मेक इन इंडिया कार्यक्रम भारत में बहुत सफल रहा है क्योंकि इससे भारत को महत्वपूर्ण निवेश, निर्माण, संरचना तथा अभिनव प्रयोगों के वैश्विक केंद्र के रूप बदला जा सका है। आज भारतीय अर्थव्यवस्था देश में मजबूत विकास और व्यापार के समग्र दृष्टिकोण में सुधार और निवेश के संकेत के साथ आशावादी रूप से आगे बढ़ रही है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम मुख्यतः निर्माण क्षेत्र पर केंद्रित रखा गया था लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य भारत में उद्यमशीलता को बढ़ावा देना भी है। इसका दृष्टिकोण निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाना, आधुनिक और कुशल बुनियादी संरचना, विदेशी निवेश के लिए नए क्षेत्रों को खोलना और सरकार एवं उद्योग के बीच एक साझेदारी का निर्माण करना है। मेक इन इंडिया पहल के सम्बंध में देश एवं विदेश से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। जापान, फ्रांस, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने विभिन्न औद्योगिक और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में भारत में निवेश करने हेतु अपना समर्थन दिखाया है। 

पिछले लगभग एक दशक के दौरान भारत ने अपनी उपस्थिति दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में दर्ज कराई है। वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की शीर्ष तीन विकास अर्थव्यवस्थाओं और शीर्ष तीन निर्माण स्थलों में गिने जाने की उमीद कर रहा है। आगे आने वाले 2-3 दशकों के लिए अनुकूल जनसांख्यिकीय लाभांश, गुणवत्तापूर्ण कर्मचारियों की निरंतर उपलब्धता भारत में रहने वाली है। भारत में जनशक्ति की लागत अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। विश्वसनीयता और व्यवसायिकता के साथ संचालित जिम्मेदार व्यावसायिक घराने बड़ी मात्रा में भारत में मौजूद हैं। भारत में उत्पादों के उपभोग हेतु मजबूत घरेलू बाजार मौजूद है। शीर्ष वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों द्वारा समर्थित मजबूत तकनीकी और इंजीनियरिंग क्षमताएं देश में मौजूद हैं तथा विदेशी निवेशकों के लिए खुले अच्छी तरह विनियमित और स्थिर वित्तीय बाजार भी उपलब्ध है। इन सभी विशेषताओं के चलते आगे आने वाले कई दशकों तक भारत की आर्थिक विकास दर स्थिर रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।  

भारत में विनिर्माण के क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। मध्यम अवधि में विनिर्माण क्षेत्र में 12-14 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि दर हासिल हो। आगे आने वाले कुछ वर्षों में देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत से बढ़कर 25 प्रतिशत तक पहुंच जाए। विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के 10 करोड़ नए अवसर निर्मित हों। भारत में समावेशी विकास के लिए ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीबों के बीच उचित कौशल का विकास किया जाय। घरेलू मूल्य संवर्धन और निर्माण में तकनीकी का उपयोग बढ़े। भारतीय विनिर्माण उद्योग वैश्विक स्तर पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बने। विनिर्माण के क्षेत्र में विशेष रूप से पर्यावरण के सम्बंध में जागरूकता सुनिश्चित हो।

भारत में केंद्र सरकार द्वारा उक्तवर्णित मानदंडों को हासिल करने के उद्देश्य से कई उपाय किए हैं जिसके कारण कई भारतीय औद्योगिक कम्पनियां वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनती जा रही हैं, और अब अन्य देशों की औद्योगिक कम्पनियों को टक्कर देने में सक्षम हो रही है जिसका प्रभाव इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर विपरीत रूप से पड़ने लगा है। इसके कारण विशेष रूप से चीन भारत के विरुद्ध षड्यंत्र करने से बाज नहीं आ रहा है। जैसे, अभी हाल ही में अमेरिका के सबसे बड़े समाचार पत्रों में से एक “द न्यूयॉर्क टाइम्स” में एक समाचार प्रकाशित हुआ है, जिसके अनुसार चीन कुछ मीडिया संस्थानों को प्रभावित करते हुए भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार को बढ़ावा दे रहा है। न्यूजक्लिक नामक एक मीडिया संस्थान को चीन से फंडिंग होने का पर्दाफाश भी अभी हाल ही में हुआ है। 

न्यूजक्लिक और चीन का नेक्सस भारत में किस तरह काम करता है और भारत को लेकर इनके कितने खतरनाक इरादे हैं, इसका खुलासा न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी उस रिपोर्ट से हुआ है, जिसका शीर्षक है - “ए ग्लोबल वेब ऑफ चाइनीज प्रोपेगेंडा लीड्स टू ए यूएस टेक मुगल”। न्यूयॉर्क टाइम्स की खोजी पत्रकारिता ने भारत में फ्रीडम ऑफ स्पीच के नाम पर किस तरह एजेंडा चलाया जाता है, उसकी परत दर परत खोलकर बता दिया है कि देश में कुछ तत्व किस तरह देश विरोधी ताकतों के इशारों पर काम कर रहे है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने शिकागो से शंघाई तक फैले एक वित्तीय नेटवर्क की गहराई से पड़ताल की है। इस पड़ताल में श्री नेविल राय सिंघम का नाम उभरकर सामने आया है जो एक चीनी स्लीपर सेल के रूप में अमेरिका में काम कर रहा था। श्री सिंघम को धुर-वामपंथी हितों के समाजवादी हितैषी के रूप में जाना जाता है। श्री सिंघम के नेटवर्क की जांच से पता चला है कि कैसे दुष्प्रचार ने भारत में मुख्यधारा की खबरों को प्रभावित किया है, क्योंकि उसके समूहों ने चीन समर्थक संदेशों को बढ़ावा देने के लिए वीडियो बनाए हैं और यूट्यूब चैनलों के जरिए उनको प्रसारित भी किया है। श्री नेविल राय सिंघम श्रीलंकाई मूल का अमेरिकी कारोबारी है। वर्ष 1954 में जन्में श्री नेविल राय सिंघम खुद को कारोबारी और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं। श्री सिंघम जाने माने कम्युनिस्ट प्रोफेसर श्री आर्चीबाल्ड सिंघम के बेटे हैं। श्री आर्चीबाल्ड, सिटी यूनिवर्सिटी, ब्रुबकलिन कॉलेज, न्यूयॉर्क में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर थे। श्री नेविल राय सिंघम ने वर्ष 2001 से वर्ष 2008 तक दिग्गज चीनी कंपनी हुओवेई के लिए रणनीतिक तकनीकी सलाहकार के रूप में काम किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक श्री सिंघम ने कुछ वर्ष पूर्व अपनी कंपनी एक निजी इक्विटी फर्म को 78.5 करोड़  अमेरिकी  डॉलर में बेच दी थी। 

भारत सरकार के एक केंद्रीय मंत्री ने भी न्यूजक्लिक वेबसाइट का जिक्र करते हुए बताया है कि इस वेबसाइट के जरिए चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का प्रोपेगेंडा चलाया जाता है। चीन की ग्लोबल मीडिया संस्थान से इसकी फंडिंग हुई है। 2021 में जब न्यूजक्लिक वेबसाइट के ऊपर ईडी की रेड हुई तो यह तथ्य उभरकर सामने आया था कि एक विदेशी श्री नेविल राय सिंघम ने इसकी फंडिंग की थी। श्री नेविल राय को चीन फंडिंग करता है और उसका संबंध चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के साथ है। ये लोग मिलकर एंटी इंडिया और ब्रेक इंडिया कैंपेन चलाते हैं। चाइनीज कंपनियां श्री नेविल राय सिंघम के जरिए न्यूजक्लिक को फंडिंग कर रही थी, लेकिन कुछ लोग भारत में उनके सेल्समैन बन गए थे। भारत में चीन के नैरेटिव को बनाने के लिए स्वतंत्र मीडिया के नाम पर फेक न्यूज परोसी जा रही थी। 

भारत में वैसे भी झूठे विमर्श गढ़ने का इतिहास रहा है। अंग्रेजों के शासन काल में भी कई प्रकार के झूठे विमर्श गढ़ने के भरपूर प्रयास हुए थे जैसे पश्चिम से आया कोई भी विचार वैज्ञानिक एवं आधुनिक है, भारत सपेरों का देश है एवं इसमें अपढ़ गरीब वर्ग ही निवास करता है, सनातन भारतीय संस्कृति रूढ़िवादी एवं अवैज्ञानिक है, शहरीकरण विकास का बड़ा माध्यम है अतः ग्रामीण विकास को दरकिनार करते हुए केवल शहरीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, शहरी, ग्रामीण एवं जनजातीय के बीच में आर्थिक विकास की दृष्टि से शहरी अधिक महत्व के क्षेत्र हैं, विदेशी भाषा को जानने के चलते नागरिकों में आत्मविश्वास बढ़ता है, संस्कृति से अधिक तर्क को महत्व दिया जाना चाहिए, व्यक्ति एवं समश्टि में व्यक्ति को अधिक महत्व देना अर्थात व्यक्तिवाद को बढ़ावा देना चाहिए (पूंजीवाद की अवधारणा), कम श्रम करने वाला व्यक्ति अधिक होशियार माना गया, सनातन हिन्दू संस्कृति पर आधारित प्रत्येक चीज को हेय दृष्टि से देखना, जैसे दिवाली के फटाके पर्यावरण का नुक्सान करते हैं, होली पर्व पर पानी की बर्बादी होती है। कुल मिलाकर पश्चिमी देशों द्वारा आज सनातन भारतीय संस्कृति पर आधारित हिन्दू परम्पराओं पर लगातार प्रहार किए जा रहे हैं। 

इसी प्रकार, भारतीय संस्कृति पर हमला करते हुए “माई बॉडी माई चोईस”; “हमको भारत में रहने में डर लगता है”; आदि नरेटिव स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। वाशिंगटन पोस्ट एवं न्यूयॉर्क टाइम्ज लम्बे लम्बे लेख लिखते हैं कि भारत में मुसलमानों पर अन्याय हो रहा है। कोविड महामारी के दौरान भी भारत को बहुत बदनाम करने का प्रयास किया गया था। वर्ष 2002 की घटनाओं पर आधारित एक डॉक्युमेंटरी को बीबीसी आज समाज के बीच में लाने का प्रयास कर रहा है। अडानी समूह, जो कि भारत में आधारभूत संरचना विकसित करने के कार्य का प्रमुख खिलाड़ी है, की तथाकथित वित्तीय अनियमितताओं पर अमेरिकी संस्थान “हिंडनबर्ग” अपनी एक रिपोर्ट जारी करता है ताकि इस समूह को आर्थिक नुक्सान हो और यह समूह भारत की आर्थिक प्रगति में भागीदारी न कर सके। हैपीनेस इंडेक्स एवं हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति को झूठे तरीके से पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान जैसे देशों से भी बदतर हालात में बताया जाता है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारतीय मुसलमानों की स्थिति के बारे में तब विपरीत बात करते हैं जब भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका के दौरे पर होते हैं। ऐसा आभास होता है कि भारत के विरुद्ध यह अभियान कई संस्थानों एवं देशों द्वारा मिलाकर चलाया जा रहा है।

पश्चिमी देशों द्वारा भारत के विरुद्ध चलाए जा रहे इस अभियान (झूठे विमर्श) को आज तोड़ने की आवश्यकता है। इसके लिए उनके प्रत्येक विमर्श को अलग अलग रखकर भिन्न भिन्न तरीकों से तोड़ना होगा। जैसे किसी विज्ञापन में भारतीय परम्पराओं का निर्वहन करने वाली महिला यदि बिंदी नहीं लगाएगी तो उस उत्पाद को नहीं खरीदेंगे, यदि किसी फिल्म में भारतीय संस्कृति एवं आध्यातम का मजाक उड़ाया जाता है तो उस फिल्म का भारतीय समाज बहिष्कार करेगा। भारतीय त्यौहारों के विरुद्ध किये जा रहे प्रचार, जैसे दिवाली पर फटाके जलाने से पर्यावरण को नुक्सान होता है, होली पर पानी की बर्बादी होती है, शिवरात्रि पर दूध बहाया जाता है, आदि के विरुद्ध भी उचित प्रतिकार किया जाना चाहिए। यह हमें समझना होगा कि भारतीय परम्पराएं आदि-अनादि काल से चली आ रही हैं और यह संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर विश्वास करती है। अतः पूरे विश्व में यदि शांति स्थापित करना है तो भारतीय संस्कृति पर आधारित दर्शन ही इसमें मददगार हो सकता है, इससे पूरे विश्व की भलाई होगी।