अब तो सरकारी क्षेत्र के बैंकों को लाभांश बाँटने योग्य बनना होगा 


आज से ठीक 50 वर्ष पूर्व, दिनांक 19 जुलाई 1969 को देश की उस समय की 14 सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की बैंकों (जिनकी ज़माराशि रुपए 50 करोड़ से अधिक थी) का राष्ट्रीयकरण किया गया था। बाद में, वर्ष 1980 में भी 8 अन्य निजी क्षेत्र की बैंकों (जिनकी ज़माराशि रुपए 200 करोड़ से अधिक थी) का राष्ट्रीयकरण किया गया था। राष्ट्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य, देश के सामान्य जन तक बैंकिंग सेवाएँ पहुँचाने का था। अतः शुरू में देश के शहरी इलाक़ों के साथ साथ ग्रामीण इलाक़ों में भी शाखाओं का जाल फैलाया गया। ऐसे ऐसे गावों में सरकारी क्षेत्र के बैंकों की शाखाएँ खोली गई थी, जहाँ पुलिस थाना भी उपलब्ध नहीं था। इस प्रकार, देश के सुदूर इलाक़ों  में सामान्य जन को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध करायी गईं। तब से, देश के आर्थिक विकास में, सरकारी क्षेत्र के बैंकों का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। विशेष रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों में, सरकारी क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों एवं कोआपरेटिव क्षेत्र के बैंकों का योगदान सदैव याद किया जाएगा। इस दौरान भारतीय बैंकिंग उद्योग में कई तरह के परिवर्तन देखने को मिले।  

कल्पना कीजिए उस समय की, जब सरकारी क्षेत्र के बैंक की शाखाओं में, अपना कार्य करवाना तो छोड़िए, इन शाखाओं में घुसना भी अपने आप में एक मुश्किल भरा कार्य हुआ करता था। भारी भीड़ का सामना करना होता था। किंतु, आज बैंकिंग व्यवहार के लिए बैंक की शाखा में जाने की आवश्यकता ही नहीं है। आज ग्रामीण क्षेत्रों में न केवल बैंकों की शाखाएँ मौजूद हैं बल्कि कई ग्रामीण तो आज मोबाइल बैंकिंग एवं नेट बैंकिंग का इस्तेमाल भी करने लगे हैं। बदलाव की इस बयार ने पिछले पाँच वर्षों में तीव्र गति पकड़ी है। डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से भारतीय बैंकिंग उद्योग में बहुत बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं। बैंक की शाखाओं की कार्यशैली में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से आप अपने घर बैठे ही बैंकिंग व्यवहार कर सकते हैं। मोबाइल बैंकिंग के बाद तो यह कहा जाने लगा है कि बैंक आपके ज़ेब में है। 

इस दौरान, देश के बैंकों में जन धन योजना के अंतर्गत कुल 36 करोड़ से अधिक नए जमा खाते खोले गए हैं, इन खातों का एक बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में ही खोला गया है। आज इन खातों में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि जमा हो गई है। एक माह में, जन धन योजना के अंतर्गत, 18 करोड़ जमा खाते खोलने का विश्व रेकार्ड भी भारत के नाम पर ही दर्ज है। अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए की वर्तमान में, भारतवर्ष में बैंकिंग उद्योग एक बार फिर परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है।

भारतवर्ष में, डिजिटल बैंकिंग की यदि चर्चा की जाय तो मई 2018 में 2.8 लाख करोड़ डिजिटल लेनदेन हो रहे थे, जो कि अप्रेल 2015 में केवल 0.5 लाख करोड़ ही थे। इससे न केवल इन बैंकों की उत्पादकता में वृधि हुई है, बल्कि सामान्यजन को बैंकिंग सेवाएँ भी त्वरित गति एवं आसानी से उपलब्ध होने लगी हैं। आज नेट बैंकिंग के माध्यम से किए गए लेनदेन की जानकारी तुरंत मिल जाती है अन्यथा यदि आप पुराने दिनो को याद करें तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर पैसा भेजने हेतु ड्राफ़्ट अथवा मेल ट्रांसफ़र का सहारा लेना पड़ता था तथा ड्राफ़्ट/मेल ट्रांसफ़र को गन्त्वय स्थान पर पहुँचने में ही कई बार 7 दिनो का समय लगता था। फिर, ड्राफ़्ट का भुगतान भी क्लीयरिंग हाउस के माध्यम से लेना होता था, यदि ड्राफ़्ट अदा किए जाने वाली शाखा में आपका जमा खाता न हो तो। आज नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, भीम ऐप, आरटीजीएस एवं एनईएफटी आदि सेवाओं के आने के बाद राशि का एक खाते से दूसरे खाते में हस्तांतरण बहुत ही आसान हो गया है। बैंक ड्राफ़्ट एवं मेल ट्रांसफ़र इतिहास बन गए हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान को राशि हस्तांतरण ही एक ऐसी सेवा है जिसकी सामान्यजन को अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। देश कैश-लेस बैंकिंग सेवाओं की और तेज़ी से बढ़ रहा है। डेबिट कार्ड, क्रेडिट कॉर्ड, ऐटीएम, आदि के माध्यम से भी राशि का भुगतान चाहे गए स्थान पर त्वरित गति से किया जा सकता है। 

आज बैकों में इस तरह के कई उत्पाद उपलब्ध हैं जिनका उपयोग कर बैंकिंग सेवाओं की उपलब्धता को त्वरित गति मिल जाती है। आवश्यकता है, सामान्य जन तक इन उत्पादों के उपयोग की जानकारी पहुँचाने की। आज देश में 100 करोड़ से अधिक लोग आधार कॉर्ड से जुड़ चुके हैं और वर्ष 2020 तक देश के 70 करोड़ लोगों के पास अपना स्मार्ट मोबाइल फ़ोन होगा। परंतु, फिर भी आज कई स्मार्ट फ़ोन का उपयोग करने वाले ग्राहक नेट बैंकिंग का उपयोग नहीं कर पाते हैं। उन्हें, इस मामले में बैंकों द्वारा जागरूक करने की आवश्यकता है। नेट बैंकिंग आदि उत्पादों के अधिक से अधिक उपयोग पर देश में हर व्यक्ति की एवं बैंकों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृधि अवश्य होगी। रोकड़ का लेन देन कम होता जाएगा जिससे देश का भी इस मद पर होने वाले हज़ारों करोड़ रुपए का ख़र्च बचाया जा सकेगा। अतः आज आवश्यकता इस बात की है की देश का हर नागरिक डिजिटल बैंकिंग को सीखने का प्रयास करे। इस हेतु यदि देश का पढ़ा लिखा वर्ग यह प्रण करे की वह हर सप्ताह कम से कम 5 लोगों को डिजिटल बैंकिंग करने हेतु प्रेरित करेगा एवं उन्हें इस हेतु पारंगत भी करेगा तो एक वर्ष के अंदर ही डिजिटल बैंकिंग के व्यवहारों में उल्लेखनीय वृधि दर्ज़ की जा सकती है।

बैंकिंग उद्योग किसी भी देश में अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग उद्योग में आ रही परेशानी  का निदान यदि समय पर नहीं किया जाता है तो आगे चलकर यह समस्या उस देश के अन्य उद्योगों को प्रभावित कर, उस देश के आर्थिक विकास की गति को कम कर सकती है। सरकारी  क्षेत्र के बैंकों की 50 वर्षों की विकास यात्रा भी बहुत आसान नहीं रही है। समय समय पर कई तरह की समस्याओं का सामना इन बैंकों को करना पड़ा है। चाहे वह ग़ैर निष्पादनकारी    आस्तियों से सम्बंधित समस्याएँ हों या कोरपोरेट गवर्नन्स से सम्बंधित मुद्दे हों अथवा बाज़ल-3 के नियमों के पालन करने से सम्बंधित परेशानियाँ हों। 31 मार्च 2018 को समाप्त वित्तीय वर्ष में तो भारतीय बैंकों की ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियाँ, कुल आस्तियों का, 11.3 प्रतिशत के उच्चतम स्तर पर पहुँच गईं थी। 

पिछले 5 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने लगातार सरकारी क्षेत्र के बैंकों की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हेतु ईमानदार प्रयास किए हैं। ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों से निपटने के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई। देश में सही ब्याज दरों को लागू करने के उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति बनायी गई। साथ ही, पिछले पाँच/छह वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने इंद्रधनुष योजना को लागू करते हुए, सरकारी क्षेत्र के बैंकों को लगभग दो लाख करोड़ रुपए की सहायता उपलब्ध करायी है। वर्ष 2019-20 के बजट में भी घोषणा की गई है की वर्ष 2019-20 में रुपए 70,000 करोड़ की पूँजी सरकारी क्षेत्र के बैंकों को उपलब्ध करायी जाएगी ताकि इन बैंकों की तरलता की स्थिति में सुधार हो (वैधानिक तरलता अनुपात एवं तरलता कवरेज अनुपात के पालन में आसानी हो), बाज़ल-3 के नियमों का पालन करने में सक्षम हों तथा देश के कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों को ऋण उपलब्ध कराने में आसानी हो। आज समस्त बैंकों से भी देश को यह अपेक्षा है कि विशेष रूप से कृषि तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को आसानी से ऋण उपलब्ध कराएँ ताकि देश के आर्थिक विकास को गति मिल सके तथा रोज़गार के नए अवसरों का सृजन किया जा सके, जो कि आज के समय की सबसे बड़ी माँग है। साथ ही, यह भी अपेक्षा है की, विशेष रूप से सरकारी क्षेत्र के बैंक, अपने ग़ैर निष्पादनकारी आस्तियों में सुधार कर अपनी लाभप्रदता में वृधि करें एवं अपने निवेशकों को पुनः लाभांश देना शुरू करें ताकि इनके राष्ट्रीयकरण के 50 वर्ष पूरे करने के उपलक्ष में ये अपने निवेशकों (केंद्र सरकार सहित) के लिए, पुनः कमाऊ पूत बन सकें।