हाल ही में यूनाइटेड नेशनस ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार भारतवर्ष में बहुआयामी ग़रीबी की दर जो वर्ष 2006 में 55.1 प्रतिशत थी वर्ष 2016 में घटकर 27.9 प्रतिशत हो गई है। इन 10 वर्षों के दौरान, भारत में, 27.10 करोड़ लोगों को बहुआयामी ग़रीबी से बाहर निकाल लिया गया है। इस प्रकार, भारत पूरे विश्व में इस नज़रिए से प्रथम स्थान पर रहा है। बहुआयामी ग़रीबी को नापने के पैमाने में मुख्यतः तीन पैरामीटर शामिल हैं। यथा, नागरिकों के स्वास्थ्य की स्थिति, नागरिकों के शिक्षा का स्तर एवं नागरिकों का जीवन स्तर। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग़रीबी तो विश्व के लगभग सभी देशों में व्याप्त है परंतु कई देशों में असमानता की दर बहुत अधिक पायी जा रही है।
भारतवर्ष में इन 10 वर्षों के दौरान ग़रीब वर्ग के पास सम्पति में वृधि, खाना पकाने के इंधन की उपलब्धता, स्वच्छता एवं पोषण के क्षेत्रों में अच्छी प्रगति देखने को मिली है। इन क्षेत्रों के अतिरिक्त आगे वर्णित दो अन्य क्षेत्रों में भी कुछ प्रगति देखने में आयी है। यथा, बिजली की अनुपलब्धता का प्रतिशत 9.1 प्रतिशत लोगों से घटकर 8.6 प्रतिशत हो गया है। आवास की अनुपलब्धता का प्रतिशत भी 44.9 प्रतिशत लोगों से घटकर 23.6 प्रतिशत हो गया है। साक्षरता दर में भी सुधार हो रहा है। पीने के पानी की उपलब्धता में कोई ख़ास सुधार देखने में नहीं आया है। उक्त क्षेत्रों में भारत द्वारा की गई उल्लेखनीय प्रगति के लिए यूनाइटेड नेशनस ने भारत की मुक्त कंठ से सराहना भी की है।
यूनाइटेड नेशनस द्वारा यह लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है कि वर्ष 2030 तक विश्व में अति-ग़रीब व्यक्तियों की संख्या, विश्व की कुल जनसंख्या का, मात्र 3 प्रतिशत तक नीचे आ जाना चाहिए। यह वर्ष 1990 में 36 प्रतिशत थी जो वर्ष 2015 में घटकर 10 प्रतिशत हो गई है। अति-ग़रीब व्यक्तियों की पहचान, उनकी प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डॉलर से भी कम आय के आधार पर की जाती है।
पिछले पाँच वर्षों के दौरान भारत सरकार ने उक्त वर्णित लगभग समस्त क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार के लिए कई योजनाओं को बहुत ही व्यवस्थित तरीक़े से सफलतापूर्वक लागू किया है। यथा, प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 1.5 करोड़ मकानों का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा चुका है एवं वर्ष 2022 तक 1.95 करोड़ और मकानों का निर्माण कर देश में समस्त परिवारों को आवास के साथ शौचालय, बिजली एवं गैस कनेक्शन भी उपलब्ध करा दिया जाएगा। उज्जवला योजना के अंतर्गत 7 करोड़ गैस के कनेक्शन प्रदान किए जा चुके हैं। 100 प्रतिशत गाँवों में बिजली उपलब्ध करा दी गयी है एवं अब समस्त परिवारों को बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित कर लिया गया है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत 9.6 करोड़ शौचालयों का निर्माण कर लिया गया है। वर्ष 2024 तक हर घर में स्वच्छ जल पहुँचाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है, इसके लिए अलग से एक जल शक्ति मंत्रालय का गठन भी भारत सरकार द्वारा कर लिया गया है।
देश के ग़रीब वर्ग का स्वास्थ सुधारने के उद्देश्य से आयुशमान भारत - प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना - लागू कर दी गयी है। जिसके अंतर्गत देश के 10 करोड़ परिवारों (50 करोड़ लोगों) को शामिल किया जा रहा है। साथ ही, प्रधान मंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना भी लागू की गई हैं। उक्त योजनाओं के लागू होने के बाद, शिशुओं के पोषण में सुधार होगा एवं बाल मृत्यु दर में भी कमी आएगी।
यूनाइटेड नेशनस द्वारा बहुआयामी ग़रीबी मापने के उपरोक्त वर्णित पेरामीटरस में से केवल ग़रीबों की सम्पति में वृधि करने हेतु भारत सरकार को कुछ अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। यथा, उन्हें रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराना, उनकी आय में वृधि करने हेतु उपाय करना, आदि। चीन ने आर्थिक प्रगति के माध्यम से बहुआयामी ग़रीबी से क़रीब क़रीब निजात पा ली है। चीन में बहुआयामी ग़रीबी की दर 3.9 प्रतिशत (5.37 करोड़ व्यक्ति) है जब कि भारत में यह दर 27.9 प्रतिशत (36.95 करोड़ व्यक्ति) है। चीन ने 1980 के दशक में लागू किए गए आर्थिक सुधारों के बाद से आर्थिक विकास की दर को काफ़ी तेज़ कर लिया था, जिसके कारण, इस दौरान, प्रति व्यक्ति आय में काफ़ी सुधार देखने को मिला था तथा इससे ग़रीब लोगों की सम्पति में भी वृधि देखने को मिली थी। भारत भी अब विश्व की सबसे तेज़ गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गयी है। अतः आशा करनी चाहिए की देश में ग़रीब लोगों की आय में भी वृधि होगी। इस प्रकार, इस बात की पूरी सम्भावना है कि भारत भी यूनाइटेड नेशनस द्वारा निर्धारित मानदंडो को वर्ष 2030 से बहुत पहिले संभवतह वर्ष 2024 तक ही हासिल कर लेगा।
3 Comments
Nice Article!
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteऐसा लगता है कि विदेशी सिर्फ आंकड़े देखते हैं, ज़मीनी हकीकत कुछ और दिखाती है
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