देश के नागरिकों में ख़ुशी का संचार ही आर्थिक नीतियों की सफलता का पैमाना बने
किसी भी देश की आर्थिक नीतियों की सफलता का पैमाना, वहाँ के समस्त नागरिकों में ख़ुशी का संचार, ही होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति सामान्यतः ख़ुशी तभी प्राप्त कर सकता है जब उसकी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो जाती हो। शुरुआती दौर में तो रोटी, कपड़ा और मकान की प्राप्ति ही सामान्य जन को ख़ुश रख सकती है। परंतु यह अंतिम ध्येय नहीं हो सकता है। राष्ट्र तेज़ी से तरक़्क़ी करे एवं सम्पूर्ण विश्व में एक आर्थिक ताक़त बन कर उभरे तथा इसके नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय में तीव्र गति से वृधि हो, इन लक्ष्यों की प्राप्ति के साथ साथ भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद दोनों में समन्वय स्थापित करना भी आवश्यक है।
भारतवर्ष की आज़ादी के लगभग 72 वर्षों के बाद भी, इस देश के नागरिकों को आज अपनी आवश्यक ज़रूरतों की पूर्ति हेतु अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार तो इस संघर्ष के बाद भी परिवार के समस्त सदस्यों के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी अत्यंत कठिन कार्य हो जाता है। अतः देश पर शासन करने वाले सताधारी दलों का यह दायित्व होना चाहिए की देश में रह रहे नागरिकों को रोज़गार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध करवाएँ जायें जिससे उनके द्वारा उनके परिवार के समस्त सदस्यों का पालन पोषण आसानी से किया जा सके। समाज में यह कहा भी जाता है की “भूखे पेट भजन ना हो गोपाला”। जब देश के नागरिकों की भौतिक आवश्यकताएँ ही पूरी नहीं होंगी तो वे अध्यात्मवाद की और कैसे मुड़ेंगे। चाणक्य ने तो यहाँ तक कहा है कि अर्थ के बिना धर्म नहीं टिकता।
आज जब हम भारतवर्ष में देखते हैं कि देश की लगभग एक चौथाई आबादी, आज भी ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने को मजबूर है, तब यह अनायास ही आभास होने लगता है कि क्या देश में आर्थिक नीतियों का क्रियान्वयन पूर्णतह सफल नहीं रहा है। श्रम करना नागरिकों का मूलभूत कर्तव्य है अतः देश में निवास कर रहे नागरिकों के लिए, सरकार की और से रोज़गार क़े अधिकार की गारंटी भी होनी चाहिए।
देश की कुल आबादी का एक बहुत बड़ा भाग आज भी गाँवों में ही निवास करता है। गाँवों में निवास कर रहे नागरिकों के लिए रोज़गार के अवसर वहीं पर प्रतिपादित किए जाने चाहिए जिससे ये नागरिक अपने परिवार का लालन पोषण गाँव में ही कर सके एवं इन नागरिकों का शहर की ओर पलायन रोका जा सके।
भारतवर्ष की आर्थिक प्रगति में कृषि क्षेत्र के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। प्रायः यह पाया गया है कि जिस किसी वर्ष में कृषि क्षेत्र में विकास की दर अच्छी रही है तो उसी वर्ष देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृधि दर भी अच्छी रही है। ठीक इसके विपरीत, जिस किसी वर्ष में कृषि क्षेत्र में विकास की गति कम हुई है तो देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृधि दर भी कम ही रही है। इसका सीधा सा कारण यह है कि कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या के अधिक होने के कारण, एवं इस क्षेत्र पर निर्भर लोगों की आय में कमी होने से अन्य क्षेत्रों, यथा उद्योग एवं सेवा, द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग में भी कमी हो जाती है। अतः इन क्षेत्रों की विकास दर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसलिए भारतवर्ष की आर्थिक नीतियाँ कृषि एवं ग्रामीण विकास केंद्रित होना चाहिए एवं रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर भी कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ही उत्पन्न होने चाहिए। कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों के सम्पन्न होने पर उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों में भी वृधि दर में तेज़ी आने लगेगी।
कई विकसित देशों में प्रायः यह देखा गया है कि कृषि क्षेत्र के विकसित हो जाने के बाद ही औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई है। इससे आर्थिक वृधि की दर में तेज़ गति आई है। क्योंकि, उद्योगों को कच्चा माल प्रायः कृषि क्षेत्र द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है। यदि कृषि क्षेत्र विकसित अवस्था प्राप्त नहीं कर पाता है तो कच्चे माल के अभाव में उस देश के उद्योगों को पनपने में दिक़्क़त का सामना करना पड़ सकता है। हाँ, उस कच्चे माल का आयात करके तो उस तात्कालिक कमी की पूर्ति सम्भव है परंतु लम्बे समय तक आयात पर निर्भर रहना स्वदेशी औद्योगिक क्रांति के लिए यह ठीक नीति नहीं कही जा सकती। अगर देश के उद्योग अपने कच्चे माल की पूर्ति के लिए अपने देश के कृषि क्षेत्र पर अपनी निर्भरता बढ़ाते हैं तो इससे देश के ही कृषि क्षेत्र का तेज़ गति से विकास होगा। कृषि क्षेत्र पर निर्भर जनसंख्या की आय में वृधि होगी और इन्हीं उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग में वृधि होगी। परिणामतः देश की तरक़्क़ी में स्वदेशी योगदान होगा।
भारतवर्ष में आज भी कृषि क्षेत्र के विकास की असीमित संभावनाएँ मौजूद हैं। किसानों की आय बहुत ही कम है, वे अपने परिवार के सदस्यों की आवश्यक ज़रूरतों की पूर्ति कर पाने में भी अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं। परिणामतः कई जगह तो किसान आत्महत्या जैसे कठोर क़दम उठाने को मजबूर हैं। स्वाभाविक रूप से ग्रामीण इलाक़ों में निवास कर रहे लोगों के आर्थिक उत्थान पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है।
केंद्र में माननीय श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के, वर्ष 2014 में, सत्ता में आने के बाद से ही ग़रीब तबके के लोगों के लिए कई योजनाओं का सफलता पूर्वक किर्यान्वयन किया गया है। इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं, उज्जवला योजना - जिसके अंतर्गत 7 करोड़ से अधिक एलपीजी के कनेक्शन दिलवाए गए हैं। प्रधान मंत्री आवास योजना - जिसके अंतर्गत 1.50 करोड़ आवासों का निर्माण किया जा चुका है। सौभाग्य योजना - जिसके अंतर्गत 100 प्रतिशत गाँवों में बिजली उपलब्ध करवा दी गई है। स्वच्छ भारत अभियान - जिसके अंतर्गत 9.60 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है। वित्तीय वर्ष 2019-20 का बजट प्रस्तुत करते हुए देश की वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन द्वारा देश मी संसद में यह घोषणा की गई है की, गाँव, ग़रीब एवं किसान को केंद्र में रखकर, उक्त योजनाओं को और आगे बढ़ाने हेतु कार्य किया जाएगा। जैसे, प्रधान मंत्री आवास योजना के अंतर्गत 1.95 करोड़ नए आवासों का निर्माण वर्ष 2022 तक किया जाना प्रस्तावित है ताकि “हर परिवार को आवास” के नारे को धरातल पर लाया जा सके। सौभाग्य योजना के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को बिजली का कनेक्शन उपलब्ध कराया जाना प्रस्तावित है साथ ही एलपीजी कनेक्शन भी दिलवाया जाना प्रस्तावित है।
किसानों की आय दुगनी करने के उद्देश्य से किसानों को अन्नदाता से ऊर्ज़दाता बनाने हेतु एक योजना लायी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत, ग्रामीण इलाक़ों में ख़ाली पड़ी बंजर ज़मीन पर किसान, बिजली उत्पादन हेतु, सोलर पावर के संयत्र लगा सकेंगे। इन संयंत्रो से उत्पादित बिजली को सरकार द्वारा ही बिकवाने की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही, मच्छली पालन योजना को भी बढ़ावा दिया जाएगा। भारतीय किसानों ने दलहन की खेती के मामले में पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्रांतिकारी कार्य किए हैं, जिससे दलहन की उपज में उल्लेखनीय वृधि दर्ज़ की गई है। अब भारतीय किसानों से तिलहन के क्षेत्र में भी इसी तरह के क्रांतिकारी कार्य किए जाने की उम्मीद की जा रही है ताकि तिलहन के आयात पर ख़र्च की जा रही बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को बचाया जा सके। वर्ष 2024 तक ग्रामीण इलाक़ों के हर घर में जल पहुचाने की व्यवस्था किया जाना भी प्रस्तावित है। इसके लिए अलग से “जल शक्ति मंत्रालय” बनाया गया है। प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत देश के 97 प्रतिशत गाँवों को समस्त मौसम में उपलब्ध सड़कों के साथ जोड़ दिया गया है। अब इन सड़कों को अपग्रेड किया जाएगा। प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान भी चलाया जा रहा है, इस अभियान के अंतर्गत 2 करोड़ से अधिक ग्रामीणों को डिजिटल क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जा चुका है। इस योजना को और अधिक जोश के साथ आगे बढ़ाया जाएगा ताकि अधिक से अधिक ग्रामीणों को डिजिटल क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया जा सके। इससे ग्रामीणों की उत्पादकता में उल्लेखनीय वृधि दर्ज़ होगी।
मूल प्रश्न यह है कि केंद्र एवं राज्यों की विभिन सरकारों द्वारा तो ग़रीबों, किसानों, पिछड़ें वर्गों आदि के लिए कई योजनाएँ बनाई जा रही हैं परंतु क्या देश का शिक्षित वर्ग भी इन योजनाओं को सफलता पूर्वक लागू कराने में अपना योगदान नहीं दे सकता है। देश की सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए एवं ग़रीब तबके को इन योजनाओं की जानकारी देने एवं उनके द्वारा इन योजनाओं का लाभ उठाने हेतु मदद करनी चाहिए। देश के इस वर्ग को यदि हम आर्थिक रूप से ऊपर उठाने हेतु मदद करते हैं तो न केवल यह एक मानवीय कार्य होगा बल्कि इससे देश के कृषि क्षेत्र के साथ साथ औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों में भी विकास को गति मिलेगी क्योंकि यह वर्ग इन क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के लिए एक बाज़ार के रूप में भी विकसित होगा।
अतः न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संस्थाओं, युवा वर्ग एवं पढ़े लिखे नागरिकों को भी आगे आकर देश के ग़रीबों, किसानों, पिछड़े वर्गों, आदि की मदद करनी होगी ताकि इस वर्ग में भी ख़ुशी का संचार किया जा सके, जो इनका हक़ है।
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