विदेशी मुद्रा में सरकारी बांड्ज़ जारी करने से देश के वित्तीय बाज़ार पर दबाव कम होगा
केंद्र सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2024-25 तक 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के आकार का बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को निर्धारित समय सीमा में प्राप्त करने के लिए, देश के आर्थिक सर्वे 2019 में यह कहा गया है कि, भारत में आर्थिक विकास की दर को 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष के ऊपर ले जाना होगा, जो वर्तमान में लगभग 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष है। आर्थिक विकास की निर्धारित दर को प्राप्त करने हेतु देश में पूँजी की आवश्यकता होगी। यदि, वृधिशील पूँजी एवं उत्पादन अनुपात 4:1 का भी माना जाय, अर्थात उत्पादन की एक इकाई हेतु पूँजी की 4 इकाईयों की आवश्यकता होगी, तो 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के लिए 32 प्रतिशत सकल घरेलू बचत की आवश्यकता होगी। हालाँकि उत्पादकता में वृधि करके वृधिशील उत्पादन अनुपात को सुधारा जा सकता है, परंतु यदि रूढ़िवादी द्रशिटीकोन को अपनाते हुए भी चलें तो देश की सकल घरेलू बचत में उक्त वृधि दर की आवश्यकता तो होगी ही। वर्तमान में देश में बचत दर 30 प्रतिशत से कम है। अतः 8 प्रतिशत की विकास दर को प्राप्त करना एवं इसे बनाए रखना एक मुश्किल कार्य होगा और वह भी तब जब देश में विकास दर बढ़ाने हेतु माँग में वृधि एवं उपभोग में भी वृधि करना आवश्यक होगा। इस स्थिति में बचत दर में वृधि दर्ज़ करना और भी कठिन कार्य होगा। और, संभवत: इसी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने वर्ष 2019-20 का बजट पेश करते हुए संसद में घोषणा की थी की देश में विकास दर को तेज़ करने के उद्देश्य से केंद्र इस वर्ष, विदेशी मुद्रा में सरकारी बांड्ज़, विदेशी बाज़ार में जारी कर लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि जुटाएगा जिससे देश के वित्तीय बाज़ार पर दबाव को कम किया जा सके क्योंकि अन्यथा यह राशि केंद्र सरकार द्वारा देशी वित्तीय बाज़ार से उगाही जाती। साथ ही, यदि केंद्र सरकार यह राशि देशी वित्तीय बाज़ार से न उगाह कर विदेशी वित्तीय बाज़ार से विदेशी मुद्रा में उगाहती है तो देशी वित्तीय बाज़ार द्वारा यह बची हुई राशि देश के उद्योंगों को ऋण के रूप में उपलब्ध करायी जा सकेगी।
केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा सांसद में की गई उक्त घोषणा के साथ ही, देश में एक बहस सी छिड़ गई है की देश द्वारा विदेशी बाज़ार से विदेशी मुद्रा उगाहने से विश्व को ग़लत संदेश जाएगा क्योंकि विदेशों से विदेशी मुद्रा की उगाही कुछ असामान्य परिस्तिथियों में ही की जानी चाहिए, जबकि अभी देश की आर्थिक स्थिति काफ़ी मज़बूत होने के बावजूद विदेशों से पूँजी की उगाही क्यों की जाय?परंतु, यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक होगा की विदेशों से विदेशी मुद्रा की उगाही देश की आर्थिक वृधि दर तेज़ करने के उद्देश्य से की जा रही है। एसा कई अन्य देशों द्वारा भी समय समय पर किया जाता रहा है। भारत ने ज़रूर इस पथ का इस्तेमाल नहीं के बराबर किया है। इसी कारण से भारत का विदेशी मुद्रा में सम्प्रभु ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 3.8 प्रतिशत है। जबकि, अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अमेरिका के लिए यह प्रतिशत बहुत ही अधिक है। भारत का कुल विदेशी ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 19 प्रतिशत ही है तथा भारत का कुल ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद का 68.68 प्रतिशत है। देश का विदेशी व्यापार घाटा भी 0.7 प्रतिशत ही है। तथा देश के पास 430 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी भंडार भी मौजूद है। उक्त समस्त मानकों पर भारत की स्थिति बहुत ही संतोषजनक कही जा सकती है।
कई अर्थशास्त्रियों द्वारा यह तर्क भी दिया जा रहा है की चूँकि यह ऋण विदेशी मुद्रा में लिया जाएगा अतः इसका भुगतान भी विदेशी मुद्रा में ही करना होगा और आज से लेकर दीर्घक़ालीन अवधि (15 या 20 वर्षों) के पश्चात रुपए का बाज़ार मूल्य क्या होगा यह अभी से बताना बहुत मुश्किल कार्य है। अतः हम अपनी देयता का पता आज से 15-20 वर्षों पश्चात कैसे लगा पाएँगे? विदेशी बाज़ारों में ब्याज की दर (2-3 प्रतिशत के आसपास) हमारे देश में प्रचिलित ब्याज दर (7-8 प्रतिशत के आसपास) की तुलना में बहुत कम है। अतः भारत सरकार द्वारा विदेशी मुद्रा में जारी किए जाने वाले बांड्ज़ की ब्याज दर भी बहुत कम अर्थात 2-3 प्रतिशत के आसपास ही होगी। भारतीय रुपए एवं अमेरिकी डॉलर (यदि बांड्ज़ अमेरिकी डॉलर में जारी किए जाते हैं तो) की दर हेजिंग/स्वॉप के माध्यम से अभी से ही निश्चित की जा सकती है। हाँ, यहाँ हेजिंग/स्वॉप लागत (विनिमय लागत) ज़रूर इस 2-3 प्रतिशत ब्याज दर में जोड़नी होगी, जो कि लगभग 3 से 3.5 प्रतिशत के बीच हो सकती है। इसी तरह अन्य लागतों को जोड़कर इन बांड्ज़ की कुल लागत 6-7 प्रतिशत के बीच में रह सकती है। इस प्रकार, लागत तो भारत में लागू ब्याज दर की तुलना में थोड़ी ही कम होगी परंतु देश में अमेरिका डॉलर की आवक बढ़ने से भारतीय रुपए को मज़बूती प्रदान हो सकती है एवं देश में 15-20 वर्षों के लिए विदेशी पूँजी उपलब्ध हो जाएगी जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए अपना योगदान देती रहेगी। साथ ही, विदेशी बाज़ार में सस्ती ब्याज दरों पर यदि ये बांड्ज़ जारी होंगे तो देश में भी सरकार द्वारा जारी किए जा रहे अन्य बांड्ज़ पर आय (यील्ड) में कमी आ सकती है जिससे देश में ब्याज दरों में कमी आ सकती है तथा वित्त बाज़ार में तरलता की स्थिति में सुधार आएगा।
यदि हमारे देश में आर्थिक विकास की गति को तेज़ करना है एवं देश में पर्याप्त पूँजी उपलब्ध नहीं हो तो विदेशी पूँजी का उपयोग करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। और, अभी तो भारत की रेटिंग भी विदेशी बाज़ारों में काफ़ी अच्छी है। अतः विदेशी पूँजी आसान शर्तों पर एवं तुलनात्मक रूप से कम ब्याज की दर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। जापान में तो ब्याज की दर भी बहुत कम अर्थात 0.10 प्रतिशत ही है। यदि जापानी येन में भारत सरकार इन बांड्ज़ को जारी करती है तो ब्याज की दर बहुत ही कम रहने की सम्भावना होगी।
अतः भारत सरकार को विदेशी बाज़ारों में, विदेशी मुद्रा में बांड्ज़ को जारी करना चाहिए। हाँ, शुरू में इसका देश की अर्थ व्यवस्था पर प्रभाव आँकने के उद्देश्य से, छोटे छोटे हिस्सों यथा 3-4 बिलियन अमेरिकी डॉलर में ये सरकारी बांड्ज़ जारी किए जा सकते हैं तथा विदेशी मुद्रा में जारी किए जा रहे बांड्ज़ हेतु देश में ही इनके व्यापार करने के उद्देश्य से बाज़ार उपलब्ध कराने हेतु ये बांड्ज़ विभिन्न समय सीमा के लिए यथा 5 वर्ष, 10 वर्ष, 15 वर्ष, 20 वर्ष आदि हेतु जारी किए जा सकते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है, केवल 10 बिलीयन अमेरिकी डॉलर के बांड्ज़ विदेशी बाज़ारों में जारी करने से देश की अर्थव्यवस्था पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ने की सम्भावना लगभग शून्य ही होनी चाहिए।
6 Comments
Excellent blog.
ReplyDeleteएकदम सही आकलन और प्रस्तुति । सबनांनी जी आपको साधुवाद💐
ReplyDeleteGood analysis...sir. Very systematic way of approaching the issue.
ReplyDeleteQuite valuable insights.
ReplyDeleteG Prakash
Excellent blog. Sir
ReplyDeleteFantastic: very analytical n informative indeed
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