मौद्रिक नीति में ऋणों पर ब्याज की दरों में कमी का स्पष्ट संकेत 


दिनांक 7 अगस्त 2019 को भारतीय रिज़र्व बैंक ने मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) को, 30 आधार अंकों से कम कर, 5.75 प्रतिशत से घटाकर 5.40 प्रतिशत पर तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया है। फ़रवरी 2019 से लगातार चौथी बार भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो दर में 110 आधार अंकों की कमी की जा चुकी है। यह इसलिए सम्भव हो सका है क्योंकिं देश में मुद्रा स्फीति की दर लगातार नियंत्रण में बनी रही है। रेपो दर कम किए जाने का आशय यह होता है की विभिन्न बैंक यदि चाहें तो भारतीय रिज़र्व बैंक से आवश्यकता अनुसार सरकारी सिक्युरिटीज़ के विरुध इस घटी हुई ब्याज दर पर क़र्ज़ ले सकते हैं। अतः यदि बैंक को कम ब्याज की दर पर धन की उपलब्धि हो रही है तो उनसे भी यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे क़र्ज़दारों को भी कम ब्याज की दर पर ऋण उपलब्ध करवाएँगे। 

यह भी उम्मीद की गई है की भविष्य में भी मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में बनी रह सकती है अतः, ब्याज की दरों में और भी कमी की उम्मीद रखी जा सकती है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महँगाई की दर वर्ष 2019-20 के प्रथम 6 महीनों में 3 प्रतिशत से 3.1 प्रतिशत के बीच रहने की सम्भावना है जबकि वर्ष के दूसरे 6 महीनों में 3.5 प्रतिशत से 3.7 प्रतिशत के बीच रहने की सम्भावना है। जो कि, मुद्रा स्फीति नियंत्रण लक्ष्य के 4 प्रतिशत के अंदर ही है।  

रेपो दर में फ़रवरी से जून माह के बीच 75 आधार अंकों की कमी की जा चुकी थी तथा इस बीच भारीत औसत काल मनी दर में भी 78 आधार अंकों की कमी आई है। साथ ही, 10 वर्षीय बेंचमार्क सरकारी सिक्यूरिटी पर उपज की दर में भी 102 आधार आँको की कमी आई है। परंतु, विभिन्न बैंकों द्वारा अपने नए ऋण के ब्याज दरों में मात्र 29 आधार अंकों तक की ही कमी की है। इस आधार पर यह उम्मीद की जानी चाहिए की विभिन्न बैंक अपने नए ऋणों पर ब्याज दरों में काफ़ी कमी करेंगे।       

पिछले कुछ समय से देश के सकल घरेलू उत्पाद की वृधि दर में कुछ कमी देखने में आ रही है।  हालाँकि यह कमी केवल भारत ही नहीं परंतु विश्व के अन्य प्रमुख लगभग सभी देशों में देखने में आई है। इसका मुख्य कारण है अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध। अतः विश्व के  लगभग सभी मुख्य देशों द्वारा आसान मौद्रिक नीति की घोषणा की जा रही है। 

पिछले लगभग 6 माह से देश के ऑटो क्षेत्र में वृधि दर में तेज़ कमी देखने में आई है। इसका मुख्य कारण ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा प्रदान किए जा रहे ऑटो ऋण में आई कमी को बताया जा रहा है। अतः इस मौद्रिक नीति के माध्यम से ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की तरलता की स्थिति में सुधार करने के उद्देश्य से बैंकों द्वारा इन कम्पनियों को प्रदान किए जाने वाले ऋण की सीमा को बढ़ा दिया गया है। बैंक अब अपने टायर-एक की पूँजी के 15 प्रतिशत के स्थान पर 20 प्रतिशत तक की राशि का ऋण प्रत्येक ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनी को प्रदान कर सकेंगे। साथ ही, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण का प्रवाह बढ़ाने के उद्देश्य से ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा प्रत्येक कृषक को पूँजीगत ऋण (रुपए 10 लाख की राशि तक), सूक्ष्म एवं लघु उद्यमी को रुपए 20 लाख की राशि तक एवं होम ऋण रुपए 20 लाख की राशि तक के प्रदान किए गए ऋणों के विरुध इन कम्पनियों को विभिन्न बैंक ऋण प्रदान कर सकते है तथा ये ऋण इन बैंकों के लिए प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र में प्रदान किए गए ऋण की श्रेणी में गिने जाएँगे। उक्त निर्णय से उक्त क्षेत्रों से निर्यात के बढ़ने के साथ साथ रोज़गार के भी कई नए अवसर प्रतिपादित होंगे।  

साथ ही, केंद्र सरकार भी शीघ्र ही भारतीय बैंकों द्वारा, ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों द्वारा प्रदत्त, ऋणों को ख़रीदने हेतु नियमों को भी जारी किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने रुपए एक लाख करोड़ तक के इस तरह के ऋणों की ख़रीदी पर बैंकों को गारंटी प्रदान करने की घोषणा वर्ष 2019-20 के बजट में की थी। इससे भी ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों की तरलता में सुधार होगा और ये कम्पनियाँ होम ऋण एवं ऑटो ऋण पुनः प्रदान करना शुरू कर देंगे।   

कुछ और संकेतक भी स्पष्ट रूप से बता रहे हैं की आने वाले समय में देश में विकास की गति को बल मिलना चाहिए क्योंकि दक्षिण-पश्चिमी मानसून में गति आ रही है एवं यह अब लम्बी अवधि के औसत वर्षा से केवल 6 प्रतिशत कम रह गया है तथा देश में कुल 36 उप-विभागों में से 25 उप-विभागों में सामान्य या अधिक वर्षा हो चुकी है। इससे किसानों द्वारा की जा रही बुआई की गतिविधि में भी तेज़ी आई है। अच्छी फ़सल का सीधा फ़ायदा किसानों को होगा, जिनके हाथों में ख़र्च करने हेतु धनराशि पहुँचेगी जिससे वस्तुओं की माँग में वृधि होगी एवं उद्योग जगत के उत्पादों की बिक्री बढ़ेगी। देश में इस समय अधिशेष तरलता की स्थिति बनी हुई है क्योंकि दिनांक 6 अगस्त 2019 को भारतीय रिज़र्व बैंक के पास रिवर्स रेपो विंडो में विभिन्न बैंकों की रुपए 2 लाख करोड़ की राशि जमा थी। 

जुलाई माह में विनिर्माण सूचकांक बढ़कर 52.5 हो गया है जो जून माह में 52.1 था। यह उत्पादन में हुई वृधि, क्रेताओं से नए ऑर्डर्ज़ की प्राप्ति एवं भविष्य की माँग की स्थिति पर आशावाद के कारण सम्भव हो सका है। साथ ही, सेवा क्षेत्र का सूचकांक भी जुलाई माह में बढ़कर 53.8 हो गया है जो जून माह में 49.6 था। यह विदेशों से प्राप्त नए ऑर्डर्ज़, रोज़गार में वृधि एवं नए व्यवसाय में वृधि के कारण सम्भव हुआ है। 

शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी अप्रेल-मई 2019 में 6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रहा है। साथ ही, घरेलू पूँजी बाज़ार में शुद्ध विदेशी पोर्टफ़ोलीओ निवेश, 5 अगस्त 2019 तक, बढ़कर 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया है जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान रिणात्मक 8.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था। 

विदेशी मुद्रा भंडार 429 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच गया है। यह, इस वर्ष मार्च के बाद से 16.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वृधि दर्ज़ कर चुका है।      

अधिशेष तरलता की स्थिति के चलते एवं रेपो दर में की गई कमी की घोषणा के बाद भारतीय बैंकों द्वारा ऋणों पर ब्याज दरों में कमी की घोषणा शीघ्र ही की जानी चाहिए। भारतीय स्टेट बैंक ने तो 10 अगस्त 2019 से अपने समस्त ऋणों पर ब्याज की दरों में 15 आधार अंकों की कमी कर दी है। होम लोन पर ब्याज की दरों में, इस कमी को मिलाकर, कुल 35 आधार अंकों की कमी, अप्रेल माह से अब तक की जा चुकी है।