जलवायु परिवर्तन एक गम्भीर समस्या
जलवायु परिवर्तन पर हुए पेरिस समझौते के अन्तर्गत, संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश, इस बात पर राज़ी हुए थे कि इस सदी के दौरान वातावरण में तापमान में वृद्धि की दर को केवल 2 डिग्री सेल्सियस तक अथवा यदि सम्भव हो तो इससे भी कम अर्थात 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक रखने के प्रयास करेंगे। उक्त समझौते पर, समस्त सदस्य देशों ने, वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किए थे। परंतु, सदस्य देश, इस समझौते को लागू करने की ओर कुछ कार्य करते दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसी कारण को ध्यान में रखते हुए एवं सदस्य देशों से यह उम्मीद करते हुए कि वे जलवायु परिवर्तन सम्बंधी अपने वर्तमान लक्ष्यों को और अधिक बढ़ाने की घोषणा करेंगे, संयुक्त राष्ट्र संघ ने जलवायु परिवर्तन पर एक शिखर सम्मेलन का आयोजन अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में दिनांक 23 सितम्बर 2019 को किया। इस सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए भारत के प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत नवी ऊर्जा उत्पादन सम्बंधी अपने वर्तमान लक्ष्य 175 GW को दुगने से भी अधिक बढ़ाकर 450 GW करने का नया लक्ष्य निर्धारित करता है। माननीय प्रधान मंत्री महोदय ने सभी सदस्य देशों का आह्वान किया कि जलवायु परिवर्तन सम्बंधी समस्या पर अपनी सोच में व्यावहारिक परिवर्तन लाएँ एवं इसे एक जन आंदोलन का रूप दें।
कई अनुसंधान प्रतिवेदनों के माध्यम से अब यह सिद्ध किया जा चुका है कि वर्तमान में अनियमित हो रहे मानसून के पीछे जलवायु परिवर्तन का योगदान हो सकता है। कुछ ही घंटों में पूरे महीने की सीमा से भी अधिक बारिश का होना, शहरों में बाढ़ की स्थिति निर्मित होना, शहरों में भूकम्प के झटके एवं साथ में सुनामी का आना, आदि प्राकृतिक आपदाओं जैसी घटनाओं के बार-बार घटित होने के पीछे भी जलवायु परिवर्तन एक मुख्य कारण हो सकता है। एक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, यदि वातावरण में 4 डिग्री सेल्सियस से तापमान बढ़ जाय तो भारत के तटीय किनारों के आसपास रह रहे लगभग 5.5 करोड़ लोगों के घर समुद्र में समा जाएँगे। साथ ही, चीन के शाँघाई, शाँटोयु, भारत के कोलकाता, मुंबई, वियतनाम के हनोई एवं बांग्लादेश के खुलना शहरों की इतनी ज़मीन समुद्र में समा जाएगी कि इन शहरों की आधी आबादी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। वेनिस एवं पीसा की मीनार सहित यूनेस्को विश्व विरासत के दर्जनों स्थलों पर समुद्र के बढ़ते स्तर का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार, दुनिया में बढ़ते तापमान का विश्व की अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव हो रहा है। पिछले 20 वर्षों के दौरान जलवायु सम्बंधी आपदाओं के कारण भारत को 7,950 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ है। जलवायु सम्बंधी आपदाओं के चलते वर्ष 1998-2017 के दौरान, पूरे विश्व में 290,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान हुआ है। सबसे ज़्यादा नुक़सान अमेरिका, चीन, जापान, भारत जैसे देशों को हुआ है। बाढ़ एवं समुद्री तूफ़ान, बार बार घटित होने वाली दो मुख्य आपदाएँ पाईं गईं हैं। उक्त अवधि के दौरान, उक्त आपदाओं के कारण 13 लाख लोगों ने अपनी जान गवाईं एवं कुल मिलाकर 440 करोड़ लोग इन आपदाओं से प्रभावित हुए हैं।
उक्त वर्णित आँकड़ों से स्थिति की भयावहता का पता चलता है। अतः यदि हम अभी भी नहीं चेते तो आगे आने वाले कुछ समय में इस पृथ्वी का विनाश निश्चित है। जलवायु परिवर्तन की समस्या तो हम पिछले 50 सालों से महसूस कर रहे हैं, लेकिन पिछले 20-25 वर्षों से इस सम्बंध में केवल बातें ही की जा रही हैं, धरातल पर ठोस कार्यवाही कहीं कुछ भी दिखाई नहीं दे रही है। प्रथम विद्युत चलित कार, अमेरिका में, आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व चलाई गई थी, परंतु फिर भी आज हम जीवाश्म इंधन पर ही निर्भर हैं। यदि इसी स्तर पर हम जीवाश्म इंधन का उपयोग करते रहे तो वह दिन ज़्यादा दूर नहीं जब हम पूरी पृथ्वी को ही जला देंगे।
यहाँ यह प्रसन्नता का विषय है कि जी20 के सदस्य देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश पाया गया है, जो जलवायु परिवर्तन सम्बंधी किए गए अपने वायदों को निभाने की ओर संतोषप्रद रूप से कार्य करता दिख रहा है। यह आँकलन एक अंतरराष्ट्रीय मूल्याँकन संगठन द्वारा किया गया है। भारत तेज़ी से सौर ऊर्जा एवं वायु ऊर्जा की क्षमता विकसित कर रहा है। उज्जवला योजना एवं एलईडी बल्ब योजना के माध्यम से तो भारत पूरे विश्व को ऊर्जा की दक्षता का पाठ सिखा रहा है। ई-मोबिलिटी के माध्यम से वाहन उद्योग को गैस मुक्त बनाया जा रहा है। बायो इंधन के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, पेट्रोल एवं डीज़ल में ईथनाल को मिलाया जा रहा है। 15 करोड़ परिवारों को कुकिंग गैस उपलब्ध करा दी गई है। जल जीवन मिशन नामक महत्वाकांक्षी योजना को भी चलाया जा रहा है जिसके अंतर्गत देश के सभी ग्रामीण परिवारों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इस पूरी योजना पर 5,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का ख़र्चा होगा। सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त कर लेने का बीड़ा देश ने उठा लिया है। भारत द्वारा प्रारम्भ किए गए अंतरराष्ट्रीय सौर अलायंस के 80 देश सदस्य बन चुके हैं।
कुल मिलाकर अब विश्व के समस्त देशों को जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को रोकने के उद्देश्य से जीवाश्म ईंधन की ओर अपने रुझान को समाप्त करना होगा और कोयला एवं वातावरण में गैस छोड़ने वाले इंधन के उपयोग को पूर्णतः रोकना होगा। नवीकरण ऊर्जा का उत्पादन एवं उपयोग कुछ बढ़ा तो है परंतु अभी और बहुत आगे जाना है। इस सम्बंध में अनुसंधान, विज्ञान एवं तकनीक का और अधिक उपयोग करना होगा। अधिक से अधिक पेड़ों को रोपना होगा ताकि वातावरण में कार्बन डाई आक्सायड गैस की मात्रा कम होकर ओकसीजन गैस की मात्रा बढ़े। सौर ऊर्जा की लागत कोयले द्वारा उत्पादित ऊर्जा की तुलना में कम है, यदि इसे और कम किया जाता है तो सौर ऊर्जा को उपयोग करने की ओर लोग आकर्षित होंगे। इस प्रकार जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम किया जा सकेगा।
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