भारत के नेत्रत्व में दक्षिण एशिया का वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़ता योगदान   


हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी किए गए एक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, भारत के नेत्रत्व में दक्षिण एशिया तेज़ गति से विकास करते हुए  वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर में अपने आर्थिक योगदान को वर्ष 2040 तक 33 प्रतिशत तक ले जाने हेतु तैयार है। अतः यह क्षेत्र वैश्विक जीडीपी में वृद्धि की दृष्टि से एक केंद्र के रूप में उभर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उक्त अनुसंधान प्रतिवेदन हेतु दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान एवं मालदीव सहित कुल 6 देश शामिल किए हैं परंतु अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान को इसमें शामिल नहीं किया है।

उक्त अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, दक्षिण एशिया में युवा वर्ग की बढ़ती जनसंख्या, आर्थिक सुधारों का लागू किया जाना, इंफ़्रास्ट्रक्चर क्षेत्र को विकसित किया जाना एवं अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ना, दक्षिण एशिया में आर्थिक विकास के मुख्य कारक माने गए है। एक अनुमान के अनुसार इस क्षेत्र में वर्ष 2030 तक 15 करोड़ से अधिक नए लोग श्रम बाज़ार में पदार्पण करेंगे।     

हालाँकि एशिया पेसिफ़िक (चीन को मिलाकर) क्षेत्र भी विश्व की जीडीपी की वृद्धि में लगभग दो तिहाई हिस्से का योगदान करता है, इसमें चीन का योगदान 30 प्रतिशत का है एवं भारत का योगदान 15 प्रतिशत का है। अतः चीन एवं भारत तो अभी भी विश्व की आर्थिक प्रगति में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। परंतु यदि भारत अपनी अर्थव्यवस्था में कई सुधार कार्यक्रम लागू करे तो भारत के लिए विश्व के आर्थिक विकास में अपने योगदान को और बढ़ाने हेतु अपार सम्भावनाएँ मौजूद हैं। 

हमारे देश की औसत उम्र 27 वर्ष है इसलिए भारत को एक युवा देश कहा जाता है। देश के दक्षिणी भाग में ज़रूर औसत उम्र कुछ बढ़ रही है परंतु देश के पूर्वी एवं उत्तरी भागों में औसत उम्र अभी भी बहुत कम है और ये क्षेत्र देश के विकास के लिए एक इंजन का काम कर सकते हैं। अपनी मानव पूँजी को विकसित अवस्था में लाकर इसकी उत्पादकता बढ़ाना अब आवश्यक हो गया है ताकि अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी के योगदान को बढ़ाया जा सके। हालाँकि भारत में युवा पीढ़ी पहिले की तुलना में अधिक पढ़ी लिखी एवं स्वस्थ है परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में इनके कौशल को विकसित करने की आवश्यकता है। यह युवा पीढ़ी न केवल श्रम के रूप में उपलब्ध है बल्कि यह युवा वर्ग जब अपनी आय में वृद्धि करना शुरू करेगा तो यही वर्ग उपभोगता वर्ग के रूप में भी उपलब्ध होगा। इससे देश में उत्पादों की माँग में वृद्धि होगी एवं निवेश में वृद्धि होगी। अतः यह एक साइकल के तौर पर अपने आप कार्य करेगा एवं देश की आर्थिक तरक़्क़ी को गति देने में सहायक होगा। हमारे देश में तो रोज़गार के अवसरों में महिलायें केवल 20 से 27 प्रतिशत के बीच ही योगदान दे पाती हैं जबकि चीन में 63 प्रतिशत महिलाएँ रोज़गार में अपना योगदान दे रही हैं। अतः भारत की आर्थिक तरक़्क़ी में महिलाओं के योगदान को भी बढ़ाए जाने का मौक़ा उपलब्ध है।

देश में करों के क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों को लागू करने की आवश्यकता है। हालाँकि कारपोरेट करों एवं जीएसटी के क्षेत्र में सुधार कार्यक्रम तेज़ी से आगे बढ़ रहा है परंतु डायरेक्ट टैक्स कोड को भी शीघ्र ही लागू किये जाने की आवश्यकता है। देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा निवेश करने के पूर्व उन्हें यह भरोसा होना ज़रूरी है कि भारत में करों की दरें विश्व के अन्य देशों के साथ न केवल प्रतिस्पर्धी हैं बल्कि इन्हें लागू किए जाने के नियम भी आसान हैं। 

शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार कार्यक्रम लागू किए जाने की आवश्यकता है। आज लोगों में, वैश्विक माहौल के अनुरूप, कौशल की आवश्यकता ज़्यादा है। विनिर्माण के क्षेत्र में  व्यावहारिक प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। देश में कृषि विश्वविद्यालयों में कुल उपलब्ध सीटों में बहुत सीटें ख़ाली रह जाती हैं। अतः अधिक से अधिक युवा वर्ग को कृषि के क्षेत्र की ओर आकर्षित करने की आवश्यकता है ताकि कृषि के क्षेत्र में नवोन्मेश किए जाकर इन्हें नयी योजनाओं के माध्यम से लागू किया जा सके एवं इस क्षेत्र की उत्पादकता, जो विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है, को सुधारा जा सके।  

अब कृषि के क्षेत्र में भी गेहूँ, चावल, गन्ना आदि उत्पादों की खेती जिसमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है एवं इसके कारण ज़मीन में पानी का स्तर लगातार तेज़ी से  गिरता जा रहा है के चलते अब सोचने की आवश्यकता है कि इन मदों की पैदावार किस प्रकार आगे जारी रखी जा सकती है।  कृषि के क्षेत्र में बढ़े स्तर पर सुधार कार्यक्रम को आज लागू किए जाने की आवश्यकता है। प्रधान मंत्री ग्रामीण सड़क योजना, प्रधान मंत्री आवास योजना आदि जैसी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण इलाक़ों में रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित किए जाने की आज आवश्यकता है। रोज़गार के अधिक अवसर निर्मित होने से उपभोग को बढ़ावा मिलेगा एवं बाज़ार में उत्पादों की माँग का निर्माण होगा। कृषि की सहायक गतिविधियों यथा डेयरी, मछली पालन आदि जैसी रोज़गारनोमुखी योजनाओं को भी आगे बढ़ाने की आज आवश्यकता है। आज देश में ग़रीब वर्ग को वस्तुओं को सब्सिडी दरों पर उपलब्ध कराने के स्थान पर एक ओर तो ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में उपभोक्ता के हाथ में अधिक से अधिक राशि पहुचाये जाने की आवश्यकता है ताकि उनकी क्रय शक्ति बढ़े वहीं दूसरी ओर उपभोग की वस्तुओं की उपलब्धता को, सस्ती दरों पर, सुनिशिचित किए जाने की आवश्यकता है ताकि लोगों को न्यूट्रिशन से भरपूर भोजन सस्ती दरों पर आसानी से उपलब्ध हो सके। 

भारत में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण को भी एक अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए। चीन में 10 लाख से अधिक की जनसंख्या वाले 160 शहर हैं, जबकि भारत में इस तरह के केवल लगभग 50 शहर ही है। चीन के इन शहरों में विकसित श्रेणी के इंफ़्रास्ट्रक्चर को उपलब्ध कराया जाकर इन्हें वैश्विक स्तर का शहर बना दिया गया है। जबकि भारत में अभी भी इस ओर काम किया जा रहा है।      

निर्यात के क्षेत्र का विस्तार किए जाने की भी आवश्यकता है। आज विश्व के कुल निर्यात में भारत का योगदान मात्र 2 प्रतिशत से भी कम है। जबकि, अन्य छोटे देशों जैसे वियतनाम एवं बांग्लादेश आदि से निर्यात में तेज़ वृद्धि होते देखा जा रहा है। अतः हमारे देश से निर्यात को बढ़ाने हेतु भी कई प्रयास करने होंगे। हमारे देश से निर्यात को बढ़ाने के लिए यहाँ के उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए जाने की आवश्यकता है। विभिन्न देशों से मुक्त व्यापार समझौते करने होंगे, परंतु इस बात का ध्यान रखना आवश्यक होगा कि इन समझौतों से देश के कृषकों एवं उद्योंगों को किसी प्रकार का नुक़सान न हो। क्योंकि, कालांतर में कुछ देशों के साथ इस प्रकार के समझौते किए गए हैं जिससे भारत का व्यापार घाटा इन देशों के साथ तेज़ी से बढ़ा है। मुक्त व्यापार समझौतों में सेवा क्षेत्र के अंतर्गत मानव संसाधन को भी शामिल किया जाना चाहिए, अभी तक मानव संसाधन को इसमें शामिल ही नहीं किया जाता है।