केंद्र सरकार जैविक खेती के विकास पर दे रही है विशेष ध्यान
हमारे देश में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया गया था। इससे भारत में जैविक खेती करने वाले किसानों की संख्या तो पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा हो गई है परंतु फिर भी विश्व के जैविक उत्पादों के बाज़ार में भारतीय जैविक खेती का योगदान बहुत ही कम है। देश में मार्च 2019 तक केवल 34 लाख हैक्टेयर ज़मीन पर जैविक खेती की जा रही थी एवं वर्ष 2017-18 में जैविक उत्पादन मात्र 17 लाख मेट्रिक टन रहा। वर्ष 2018-19 में जैविक उत्पादों का निर्यात तो केवल 6.4 लाख मेट्रिक टन का ही था। इस प्रकार, वर्ष 2018-19 में विश्व जैविक व्यापार में भारत का योगदान मात्र 0.55 प्रतिशत का रहा था।
उक्त आँकड़ों के चलते जैविक खेती की वर्तमान स्थिति पर हाल ही में संसदीय समिती ने गम्भीर चिंता व्यक्त की है। संसदीय समिती की रिपोर्ट में कहा गया है कि जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जैविक उत्पादों का बाज़ार है उसमें भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। हमारे देश में कृषि कुल 14 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र में होती है उसमें जैविक कृषि केवल 1 या 2 प्रतिशत क्षेत्र पर ही होती है। इतने विशाल देश में मात्र 20 लाख हैक्टेयर क्षेत्र पर ही निर्यात करने योग्य फ़सलों की जैविक खेती की जा रही है। खेती के मामले में हमारे देश से कृषि उत्पादों यथा दाल, चावल, सोयाबीन आदि का निर्यात ज़्यादा किया जाता है। मूल्य वर्धित एवं प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात बहुत ही कम मात्रा में होता है। जबकि अन्य देशों में कृषि क्षेत्र के निर्यात में मूल्य वर्धित एवं प्रसंस्कृत उत्पादों का योगदान बहुत ज़्यादा है क्योंकि इन उत्पादों के निर्यात से किसानों को तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ होता है। भारत इस मामले में अन्य देशों से बहुत पीछे है।
देश में जैविक खेती बहुत ही कम क्षेत्र में होने के मुख्य कारणों में शामिल है किसानों में जानकारी का अभाव कि जैविक खेती किस प्रकार की जाती है एवं इसके क्या क्या फ़ायदे हैं। जैविक खेती में लागत तो कम रहता है परंतु शुरू शुरू में उत्पादकता भी कम हो जाती है, जो बाद के आने वाले वर्षों में सुधरने लगती है। इसकी जानकारी किसानों को देना बहुत ही आवश्यक है। किसान शुरू में तो जैविक खेती प्रारम्भ करता है परंतु तुलनात्मक रूप से उत्पादन कम हो जाने के कारण पुनः उर्वरक एवं कीट नाशक दवाओं का उपयोग शुरू कर देता है। जैविक खेती हेतु सरकार द्वारा भी विभिन्न प्रोत्साहन योजनाएँ चलायी जा रही है, जिनकी जानकारी किसानों को नहीं रहती है। संसदीय समिती ने भी अपनी रिपोर्ट में देश में जैविक कृषि की स्थिति में सुधार करने के उद्देश्य से सुझाव दिया है कि देश से जैविक उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के लिए जैविक उत्पाद ज़ोन बनाए जाने चाहिए और ई-जैविक बाज़ार स्थापित करने चाहिए। साथ ही, बायो-फ़र्टिलायज़र एवं बायो-पेस्टिसायड्ज़ पर सब्सिडी दी जानी चाहिए।
केंद्र में माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में जैविक खेती के विकास हेतु कई प्रयास प्रारम्भ किए गए हैं। बड़े-बड़े आदिवासी क्षेत्रों, वर्षा सिंचित क्षेत्रों एवं ऐसे क्षेत्र जहाँ उर्वरक का कम उपयोग होता है, उन्हें जैविक खेती क्षेत्रों में प्रोत्साहित/विकसित किया जा रहा है। इस प्रकार, 30 लाख हैक्टेयर नए क्षेत्र में जैविक खेती प्रारम्भ किए जाने की योजना है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लद्दाख क्षेत्र, अथवा इस तरह के कुछ विशेष क्षेत्र जहाँ विशेष प्रकार की पैदावार होती है, को भी जैविक खेती हेतु प्रोत्साहन योजना में शामिल किया जा रहा है। देश में जैविक खेती को बड़े पैमाने पर किए जाने की योजना बनाई गई है।
हमारे देश में राष्ट्रीय बाज़ार असंगठित है। व्यापार करने हेतु उत्पाद की मात्रा बड़ी होना चाहिए। इसलिए अब छोटे छोटे किसानों के समूह बनाकर आपस में जोड़ा जा रहा है। आज जैविक खेती में छोटे एवं सीमांत किसान संख्या में ज़्यादा जुड़ते जा रहे हैं, इसके लिए जैविक खेती में व्यापार सम्बंधी नियमों को आसान बनाया जा रहा है। इसके लिए उनके समूह और क्लस्टर बनाए जा रहे हैं क्योंकि अन्यथा उनकी उत्पादकता बहुत कम है। इनको योजनाओं के अंतर्गत लाया जा रहा है।
जैविक पदार्थों का व्यापार आसान बनाने के उद्देश्य से इसे ऑनलाइन व्यापार का हिस्सा बनाए जाने का भी प्रयास किया जा रहा है। ई-पोर्टल भी बनाए जा रहे हैं। “जैविक खेती.इन” पोर्टल कृषि मंत्रालय ने चालू किया है। ई-जैविक खेती पोर्टल भी चालू किया गया है। इन पोर्टल पर PGA द्वारा प्रमाणित किए गए जैविक उत्पाद उपलब्ध कराए जाते हैं। कोई भी किसान इन पोर्टल पर अपनी पैदावार की जानकारी डाल सकता है और क्रेता उसे ऑनलाइन ख़रीद सकता है। 2 लाख किसान इन पोर्टल पर अपने उत्पादों की जानकारी डाल चुके हैं और 800 से ज़्यादा उत्पाद बिक्री हेतु इन पोर्टल पर उपलब्ध हैं। 800 ख़रीदार भी इन पोर्टल पर रेजिस्टर्ड हैं। यह पोर्टल भारत सरकार से मान्यता प्राप्त है। इस पोर्टल पर प्राथमिक संसाधित उत्पाद ही उपलब्ध हैं और इस पर कोई भी व्यक्ति ख़रीदारी कर सकता है। विक्रेता और क्रेता आपस में सीधे ही जुड़ जाते हैं, एवं इसमें कोई भी बिचोलिया उपस्थित नहीं रहता है अतः उत्पाद सस्ती दरों पर उपलब्ध हो जाता है। यह क्रेता एवं विक्रेता दोनों के लिए ही फ़ायदे का सौदा बन जाता है, क्योंकि उत्पाद की क़ीमत दोनों मिलकर आपस में तय करते हैं। उक्त पोर्टल पर अन्य ई-कामर्स पोर्टल की तर्ज़ पर घर पहुँच सेवा भी उपलब्ध है। पेमेंट गेट-वे का भी प्रावधान है ताकि प्लास्टिक कार्ड से भुगतान किया जा सके।
जैविक उत्पाद महँगे बहुत हैं, इनकी वैद्यता की जाँच किस प्रकार की जाय। यह एक यक्ष प्रश्न के रूप में उपभोक्ताओं के पास सदैव ही बना रहता है। अतः देश में वर्तमान में जारी नियमों के अनुसार, कोई भी जैविक उत्पाद देश में तभी ही बेचा जा सकेगा जब उस उत्पाद का प्रमाणीकरण कर लिया गया है। हमारे देश में प्रमाणीकरण के दो प्रकार है। एक तो थर्ड पार्टी प्रमाणीकरण है दूसरे PGS का है। दोनों में से किसी एक प्रकार का प्रमाणीकरण होना ज़रूरी है। उसके आधार पर “जैविक भारत” का लोगो (LOGO) बनाया गया है। यह लोगो जैविक उत्पाद पर लगा होना चाहिए। उपभोक्ता को जैविक उत्पाद ख़रीदते समय यह देखना आवश्यक है कि उस उत्पाद पर लोगो लगाया गया है कि नहीं। एक प्रमाणीकरण का लोगो दूसरा “जैविक भारत” का लोगो। अगर ये दोनों लोगो उत्पाद पर लगे हैं तो जैविक उत्पाद पर विश्वास किया जा सकता है। उत्पाद पर QR कोड भी लगाया जाता है। उससे उत्पाद के बारे में सारी जाँच की जा सकती है। इससे उपभोक्ता का विश्वास बढ़ता है। जैविक उत्पाद की दृष्टि से 2017 से 2020 तक का समय देश में संक्रमण का समय है जिसमें वितरकों एवं विक्रेताओं को यह कहा गया है कि उनके पास पुराना जो ग़ैर प्रमाणीकृत जैविक उत्पाद हैं उन्हें ख़त्म कर दें और अब केवल प्रमाणीकरण युक्त उत्पाद ही बेंचे। 1 अप्रेल 2020 से यह नियम पूर्ण रूप से पूरे देश में लागू हो जाएगा और यदि विक्रेता ग़ैर प्रमाणीकृत उत्पाद बेचता है तो वह दंड का भागीदार होगा।
देश में जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण सम्बंधी कार्यक्रम यूरोपीयन यूनियन के साथ मिलकर चल रहा है। अमेरिका में हमारे देश के इस कार्यक्रम को समकक्ष मान्यता दी गई है। अभी कोरिया, ताईवान, कनाडा आदि देशों के साथ भी उक्त सम्बंध में भारत की बातचीत अंतिम चरण में है। शीघ्र ही इन देशों के साथ भी भारत की संधि हो जाएगी। अमेरिका एवं यूरोपीय देशों के साथ भारत पहिले ही संधि कर चुका है। ये इस बात का सूचक है कि भारतीय मानकों को ये देश भी स्वीकार कर रहे हैं। विश्व आज भारत पर इस मामले में विश्वास करता है। इसी कारण हमारे देश से जैविक उत्पादों का सर्वाधिक निर्यात अमेरिका (लगभग 52 प्रतिशत) और यूरोपीयन देशों (लगभग 42 प्रतिशत) को किया जा रहा है। हमारे देश का कृषि उत्पादों का निर्यात मुख्यतः पड़ोसी देशों एवं मध्य पूर्वी देशों के साथ है परंतु जैविक उत्पादों का लगभग सारा निर्यात विकसित देशों के साथ हो रहा है। इसलिए उत्पाद की मूल्य वसूली भी काफ़ी अच्छी है।
जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से देश में केंद्र सरकार की मुख्य रूप से दो योजनाएँ चल रही है। एक, “मिशन ओर्गानिक वैल्यू चैन डिवेलप्मेंट फ़ोर नोर्थ ईस्ट रीजन” एवं दूसरी, परम्परागत कृषि विकास योजना जो देश के बाक़ी हिस्सों में लागू है। इसके अंतर्गत किसानों को समूह बनाने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है, उन्हें जैविक खेती के फ़ायदे बताए जाते हैं, उनके जैविक उत्पाद के उत्पादन से लेकर उसके विक्रय होने तक की पूरी व्यवस्था समझाई जाती है। किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जहाँ यह समझाया जाता है की कब कब कौन से उत्पाद की कितनी कितनी मात्रा में खेती की जानी चाहिए। उस उत्पाद की खेती करने के क्या नियम हैं। इन उत्पादों में वैल्यू कैसे जोड़ी जा सकती है। देश के नोर्थ ईस्ट क्षेत्र को तो जैविक उत्पाद के हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में जैविक खेती की शुरुआत हुई थी एवं आज भी देश की कुल जैविक खेती का 25 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश (सोयाबीन, कपास) में ही हो रहा है। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात (तिलहन) एवं कर्नाटक (मसाले) राज्यों का नम्बर आता है। देश में विशेष रूप से जैविक उत्पादों से निर्मित खाद्य सामग्री के भोजनालय/जलपान गृह बन रहे हैं, जो देश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित भी कर रहे हैं। मणिपुर एवं नागालैंड में जैविक उत्पादों के बाज़ार को विकसित करने हेतु महिला उद्यमियों की संख्या बहुत ही तेज़ी से बढ़ रही है और ये महिलाएँ बहुत सफल भी हो रही हैं।
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