कुपोषण के ख़िलाफ़ जंग 

केंद्र सरकार द्वारा एक योजना तैयार की जा रही है जिसके अंतर्गत इस बात पर विचार किया जा रहा है कि देश के किस भाग में खाद्य पोषक तत्वों का उत्पादन कितनी मात्रा में किया जाय। ताकि, देश के सभी भागों में खाद्य पोषक तत्वों की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहे एवं उस क्षेत्र के निवासियों को किसी भी प्रकार के खाद्य पोषक तत्वों की कमी न रहे। इस क्षेत्र में केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, बिल गेट्स एवं मिरिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन तथा दीन दयाल अनुसंधान संस्थान मिलकर एक पोषक एटलस की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं ताकि वर्ष 2022 तक कुपोषण मुक्त भारत का निर्माण किया जा सके। विश्व बैंक द्वारा जारी वर्ष 2018 की कुपोषण सम्बंधी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को प्रतिवर्ष 1,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की भारी राशि का नुक़सान देश में व्याप्त कुपोषण के कारण होता है क्योंकि इससे उत्पादकता कम होती है, बच्चों में बीमारी अधिक होती है एवं उनकी असामयिक मृत्यु हो जाती है। साथ ही, यह मानव विकास तथा बच्चों की मृत्यु दर में कमी सम्बंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने को भी गम्भीर रूप से प्रभावित करता है।

भारत सरकार ने देश से कुपोषण का ख़ात्मा करने के उद्देश्य से पोषण अभियान नामक एक  महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की है जिसके अंतर्गत बहुत ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। इस योजना के अंतर्गत देश में प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की दर से कुपोषण को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जबकि देश के लम्बे इतिहास में बच्चों के अल्प वज़न को न्यूनतम स्तर पर लाने का लक्ष्य एक प्रतिशत से भी कम की दर से हासिल किया जाता रहा है। इसी प्रकार, बच्चों एवं महिलाओं में ख़ून की कमी को सामान्य स्तर पर लाने के लक्ष्य को भी प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की दर का रखा गया है। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केंद्र के विभिन्न मंत्रालय यथा, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, पेय जल एवं स्वच्छ्त्ता मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, प्रसारण मंत्रालय, आदि मिलकर काम कर रहे हैं। 

कुपोषण सम्बंधी उक्त महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल ज़रूर है परंतु नामुमकिन नहीं है क्योंकि सरकार ने मिशन इंद्र धनुष के माध्यम से भी बहुत महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल किया है। जैसे, वर्ष 2015 में मिशन इंद्र धनुष को लॉंच करने के पूर्व देश में बच्चों को टीका लगाने का केवल एक प्रतिशत का लक्ष्य ही हासिल किया जा रहा था। परंतु, मिशन इंद्र धनुष को लॉंच करने के बाद से 5 प्रतिशत प्रतिवर्ष का लक्ष्य निर्धारित किया गया, जबकि देश ने इस लक्ष्य को भी लाँघते हुए 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष का लक्ष्य हासिल कर लिया। 

केंद्र सरकार द्वारा प्रारम्भ किए गए पोषण अभियान के अंतर्गत, दरिद्र इलाक़ों में रह रहे बच्चों एवं महिलाओं विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता की ओर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है एवं सरकार भी इस समस्या को समुदाय प्रबंधन की दृष्टि से देख रही है। अतः देश में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए सभी हितधारकों को साथ जोड़कर इसे जन आंदोलन का रूप देना होगा। देश में केवल खाद्य पोषक तत्वों की उपलब्धता ही पर्याप्त नहीं है बल्कि देश के निर्धन परिवारों के बीच इसकी जानकारी पैदा करना भी ज़रूरी है कि किस प्रकार का खाद्य पोशाक तत्व उन्हें ग्रहण करना है। स्वास्थ्य सम्बंधी मुद्दे भी इस मिशन में शामिल हैं। पोषण एटलस एक प्रकार से एक क्रांतिकारी क़दम साबित होगा क्योंकि इससे देश के सभी क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में क़ेलोरी, पोशक तत्व, प्रोटीन, विटामिन, आदि की उपलब्धता का ध्यान रखा जाएगा। हमारा देश आकार में काफ़ी बड़ा है अतः देश के किसी भाग में किसी खाद्य पोशक तत्व का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता है एवं किसी भाग में बहुत कम अथवा बिल्कुल ही नहीं होता है। जिसके कारण उस खाद्य तत्व के कमी वाले क्षेत्र में ग़रीब परिवार इन तत्वों का खान-पान में उपयोग नहीं कर पाते हैं एवं कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। पोषण एटलस के चलते यदि खाद्य पोशक तत्वों का उत्पादन उसी क्षेत्र में होने लगेगा तो कुपोषण की समस्या को कुछ हद्द तक कम अथवा ख़त्म किया जा सकेगा। 

हाल ही में राष्ट्रीय पोषण सर्वे की रिपोर्ट जारी की गई है। जिसके अनुसार, देश में पोषण की कमी के साथ साथ पोषण की अधिकता भी एक समस्या के रूप में उभरकर सामने आया है। विशेष रूप से महानगरों में बच्चों के खान-पान में हुए भारी परिवर्तन के चलते कई बच्चों का वज़न सामान्य से बहुत अधिक पाया गया है। अगर इन बच्चों के वज़न को इसी प्रकार बढ़ने दिया गया तो ये बच्चे कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाएँगे। देश में 40 से 50 प्रतिशत बच्चों एवं महिलाओं में आइरन की कमी पाई गई है एवं ये लोग ख़ून की कमी की बीमारी का शिकार हैं। देश की 30 प्रतिशत जनसंख्या में पाया गया है कि वे आइरन का कम इस्तेमाल कर रहे हैं एवं साथ ही विटामिन डी की कमी भी देश के नागरिकों में पाई गई है। उक्त सभी समस्याएँ जन साधारण में मुख्य रूप से जानकारी के अभाव के चलते पैदा हुई हैं। क्योंकि, किस बीमारी के चलते किस प्रकार का भोजन लेकर विटामिन, आइरन, प्रोटीन, क़ेलोरी, पोशक तत्वों  की कमी को दूर किया जा सकता है, यह विशेष रूप से ग्रामीण इलाक़ों में लोगों को पता ही नहीं है। हालाँकि हाल ही में देश के बच्चों में विटामिन की कमी की समस्या में काफ़ी कमी आई है एवं आयोडीन की कमी के मामले भी भारी मात्रा में कम हुए हैं। अब देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन सँवर्ग खड़ा किया जा रहा है, जो नागरिकों में खान-पान सम्बंधी चेतना जागृत करेगा।

देश में अभी तक दरअसल केवल बीमारियों के इलाज करने पर ही विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। देश की जनता को यह शिक्षा भी दिए जाने की आवश्यकता है कि किस प्रकार का आहार विहार किया जाय, जिसके चलते बीमारी पैदा ही न हो। स्वच्छता अभियान की  जानकारी देकर इसे देश में सफल बनाना, इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण शुरुआत कहा जा सकता है। फिर, ग्रामीण इलाक़ों में स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों की शुरुआत, जिसमें इलाज के साथ-साथ सही खान-पान के बारे में भी जानकारी देना,  आयुशमान भारत मिशन की शुरुआत, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को विशेष रूप से ग्रामीण इलाक़ों में “आशा दीदी” की सहायता से और मज़बूत किया जा रहा है, आदि योजनाएँ भी इस क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होंगी। स्वास्थ्य शिक्षा को भी प्राथमिक स्तर पर ही लागू किया जाना चाहिए जिसमें विशेष रूप से कुपोषण के बारे में जानकारी एवं इसे खान-पान में परिवर्तन कर दूर करने के उपाय भी बताए जाने चाहिए। सामुदायिक स्तर पर भी जानकारी बढ़ाने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए। गर्भ-धारण करने जा रही महिलाओं को गर्भ-धारण के पूर्व ही सचेत कर दिया जाना चाहिए की गर्भ-धारण के बाद किस प्रकार का खान-पान लेना है जिससे ख़ून की कमी, आइरन की कमी ना तो गर्भवती महिला में हो और न ही नवजात शिशु में। आज तो गर्भवती महिलाओं को ख़ून की जाँच के बाद ही पता चलता है की उनमें ख़ून की कमी है। देश में ख़ून की कमी मुक्त भारत कार्यक्रम भी चालू कर दिया गया है।