भारत में पर्यावरण को बचाने के लिए नवीकरण ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है


पिछले कुछ समय से भारत में नवीकरण ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने की दृष्टि से बहुत सराहनीय कार्य किया जा रहा है। नवीकरण ऊर्जा के अधिक उपयोग का सीधा सीधा प्रभाव जीवाश्म ऊर्जा (पेट्रोल एवं डीजल) के उपयोग में कमी के रूप में देखने को मिलेगा। जीवाश्म ऊर्जा का अधिक उपयोग देश के पर्यावरण को विपरीत रूप से प्रभावित करता है। जीवाश्म ऊर्जा का उपयोग जितना कम होगा उतना ही पर्यावरण पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। भारत पूरे विश्व में आज कच्चे तेल की सबसे अधिक मात्रा का आयात करने वाले देशों में शामिल है एवं इस मद पर देश की सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च की जा रही है। इसीलिए भारत में नवीकरण ऊर्जा के उत्पादन, जो कि आज के समय की मांग है, पर भी विशेष जोर दिया जा रहा है एवं वर्ष 2014 के बाद से देश में नवीकरण ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में 7,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया है। भारत आज एशिया में तीसरा सबसे बड़ा एवं विश्व में चौथा सबसे बड़ा सौर ऊर्जा का उत्पादन करने वाला देश बन गया है। वर्तमान में भारत की नवीकरण ऊर्जा की उत्पादन क्षमता 100 गीगावाट से अधिक है एवं अन्य 85 गीगावाट से अधिक पर तेजी से कार्य हो रहा है। देश में सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा के उत्पादन के लिए अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। लद्दाख में सौर एवं पवन ऊर्जा के उत्पादन के लिए बहुत कार्य किया जा रहा है। आजादी के 70 वर्षों के बाद भी देश के जिन दूर दराज के इलाकों में बिजली नहीं पहुंच पा रही थी अब वहां पर सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली पहुंचा दी गई है। नवीकरण ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भारत तेजी से बहुत आगे बढ़ गया है। वर्ष 2014 में 6,178 करोड़ यूनिट का उत्पादन हो रहा था, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 14,725 करोड़ यूनिट हो गया है। सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता भी वर्ष 2014 के 2.63 गीगावाट से बढ़कर वर्ष 2021 में 42.33 गीगावाट हो गई है। जून 2021 में देश में कुल ऊर्जा उत्पादन का एक बड़ा भाग जीवाश्म ऊर्जा का उपयोग कर किया जा रहा था। इसमें कमी किए जाने के प्रयास किए जा रहे है। अब तो राष्ट्रीय हाईड्रोजन मिशन की घोषणा भी कर दी गई है एवं ग्रीन हाईड्रोजन के क्षेत्र में लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रयास किए जा रहे है। भारत तेजी से ग्रीन इनर्जी आधारित अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। सौर ऊर्जा का निर्माण करने हेतु सम्बंधित संयत्रों का भारत में ही उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से 19,500 करोड़ रुपए की अतिरिक्त व्यवस्था, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के लिए, आम बजट 2022-23 में की गई है ताकि इन उत्पादों के निर्माण को भारत में ही बढ़ाया जा सके। इससे भारत में विदेशी निवेश में भी भारी वृद्धि होने की सम्भावना है। भारत में नवीकरण ऊर्जा के निर्माण की उत्पादन क्षमता के विस्तार में नित नए रिकार्ड बन रहे हैं। दिसम्बर 2021 तिमाही में 3.4 गीगावाट नवीकरण ऊर्जा निर्माण की उत्पादन क्षमता का विस्तार किया गया जो कि दिसम्बर 2020 तिमाही के 1.9 गीगावाट की तुलना में 80 प्रतिशत अधिक है।


इसी प्रकार देश को पर्यावरण के दुष्परिणामों से बचाने के उद्देश्य से गैस आधारित अर्थव्यवस्था स्थापित किए जाने के प्रयास भी तेजी से किए जा रहे हैं। एक राष्ट्र एक ग्रिड की अवधारणा पर भी कार्य प्रारम्भ किया जा चुका है ताकि देश में ऊर्जा के उपयोग में गैस के योगदान को 6 प्रतिशत से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक 15 प्रतिशत कर दिया जाय। 5 राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओड़िसा एवं पश्चिम बंगाल में ऊर्जा गंगा गैस पाइप लाइन योजना चालू की गई है। जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम कर बायो ईंधन के प्रयोग को बढ़ाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इस प्रकार भारत धीरे धीरे गैस आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की ओर अग्रसर है। मार्च 2021 में भारत सरकार ने 33,764 किलो मीटर गैस की नई पाइप लाइन बिछाने के कार्य को मंजूरी दे दी है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 900 किलोमीटर से अधिक की गैस पाइप लाइन न केवल बिछाई जा चुकी है बल्कि 18.2 लाख घरों को इस गैस पाइप लाइन से जोड़ दिया गया है। साथ ही, 894 नए सीएनजी स्टेशन भी स्थापित किए जा चुके हैं। पट्रोल में 20 प्रतिशत तक एथनाल को मिलाकर पेट्रोल के रूप में उपयोग करने की अनुमति प्रदान कर दी गई है। वर्ष 2030 तक डीजल में 5 प्रतिशत बायो डीजल को मिलाकर इसे डीजल के रूप में उपयोग करने की अनुमति भी दे दी गई है। 5 बायो मासड आधारित 2G एथनाल बायो रिफाईनरीज को स्थापित करने का कार्य भी द्रुत गति से चल रहा है।  


पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में टेलिकॉम के क्षेत्र में भी अतुलनीय विकास हुआ है। इससे भी पर्यावरण को स्वच्छ करने में बहुत सहयोग मिला है क्योंकि टेलिकॉम के विस्तार से लोगों के आवागमन में कुछ कमी आई है एवं इससे पेट्रोल एवं डीजल के उपयोग पर भी कुछ अंकुश लगा है। कोरोना महामारी के काल में जब लोगों का अपने घरों से निकलना लगभग बंद हो गया था तो ऐसी स्थिति में वातावरण में पर्यावरण में अत्यधिक सुधार दृष्टिगोचर हुआ था। कोरोना महामारी के दौर में वर्चूअल गोष्ठियां आयोजित करना, स्कूल बंद होने के बाद बच्चों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं प्रारम्भ करना, डॉक्टर द्वारा मरीजों का  ऑनलाइन इलाज करना, आदि भारत में टेलिकॉम क्षेत्र की सफलता की कहानियां बयां करता है। वर्ष 2014 से 2021 के बीच ब्रॉडबैंड उपयोगकर्ताओं की संख्या 1100 प्रतिशत से बढ़ गई है। इसी अवधि में डेटा टैरिफ की दरों में 95 प्रतिशत की कमी आई है। स्मार्ट फोन के उपयोग में 350 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है एवं प्रति व्यक्ति औसत डेटा के उपयोग में 12,000 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ग्रामीण इलाकों में भी ब्रॉड बैंड कनेक्शन 7678 प्रतिशत से बढ़ गए हैं। दिसम्बर 2020 तक 45,000 नए वाइफाई पहुंच केंद्र बना लिए गए हैं। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना में टेलिकॉम क्षेत्र के लिए यंत्रों का उत्पादन करने वाली इकाईयों को भी शामिल किया गया है ताकि विश्व स्तरीय उत्पादों का उत्पादन भारत में ही किया जा सके। 


देश में अधोसंरचना का तेज गति से विकास करने हेतु केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन द्वारा दिनांक 1 फरवरी 2022 को देश की संसद में प्रस्तुत किए गए आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में किए जाने वाले पूंजीगत खर्चों में अधिकतम 35.4 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए इसे वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए भारी भरकम राशि अर्थात 7.50 लाख करोड़ रुपए तक ले जाया गया है। यह आम बजट में किए जा रहे कुल खर्चों का 19 प्रतिशत है। जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 के आम बजट में 5.54 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत खर्चों का प्रावधान किया गया था, जो कुल खर्चों का 16 प्रतिशत रहा था। जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 के आम बजट में किए गए कुल खर्चों 34.83 लाख करोड़ रुपए के प्रावधान के बाद अब वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में कुल खर्चों को बढ़ाकर 39.45 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। अधोसंरचना को विकसित अवस्था में ले जाने से भी पर्यावरण में सुधार होगा क्योंकि इससे वाहनों की कार्यक्षमता के स्तर में भारी सुधार होगा और इन वाहनों द्वारा छोड़े जाने वाले दूषित गैसों के स्तर में कमी आएगी।